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वैज्ञानिक शोधों का केंद्र भी मन और शरीर

jain acharya ratnasen pravachan विज्ञान के सभी शोधों के केन्द्र में मन व शरीर है जबकि धर्म में आत्मा केंद्र होता है।

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कोयम्बत्तूर. विज्ञान Science के सभी शोधों के केन्द्र में मन व शरीर है जबकि धर्म में आत्मा केंद्र होता है।
यह बात आचार्य विजय रत्नसेन सूरिश्वर ने मंगलवार को Coimbatore धर्मसभा ( Tamil Nadu ) को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि शरीर व मन से भी आत्मा की शांति अधिक महत्वपूर्ण है लेकिन शरीर व मन के सुखों को पाने के लिए हम आत्मा को भूल जाते हैं। आत्मा शरीर से ज्यादा कीमती है। जैसे एक वाहन में यात्री व वाहन चालक दोनों होते हैं। यात्री चाहे कितने भी हो लेकिन एक मात्र वाहन चालक की इच्छा पूर्ण करते हैं उसके बिना गंतव्य तक नहीं पहुंचा जा सकता।
आचार्य ने कहा कि इसी प्रकार शरीर रुपी वाहन में आत्मा चालक के रूप में है। इंद्रियां मन आदि यात्री हैं। शरीर, इंद्रीय मन आदि का अस्तित्व और महत्व आत्मा के कारण हैं। आत्मा के बिना इंद्रीय व शरीर का कोई महत्व नहीं है। शरीर से आत्मा निकल जाने के बाद शरीर मुर्दा कहलाता है। यह सत्य जानते हुए भी हम आत्मा के कल्याण करने में आगे बढ़ाने वाले परमात्मा और सद्गुरू के वचनों को भूल जाते हैं और शरीर के संबंधों को संभालने की मूर्खता करते हैं।

आचार्य ने कहा कि परमात्मा और सद्गुरू हमारी आत्मा के सच्चे संबंधी हैं। बाकी शरीर के संबंधी, धन, रूप, स्वजन, गाड़ी, बंगला स्वार्थ संबंधी हैं। तीर्थंकर परमात्मा ने केवल ज्ञान के जरिए जगत कल्याण के लिए धर्म का मार्ग बताया है। रोगों के विकार के लिए दवाओं की तरह ही आत्मा के रोगों को दूर करने के लिए परमात्मा के वचन को साथ रखना जरुरी है। जैसे अनिच्छा से शक्कर खाने पर भी वह मिठास ही देती है उसी प्रकार अनिच्छा से प्रवचन सुनने के बाद आचरण करने पर भी आत्महित होता है। प्रवचन से ही आत्मा के रोगों का पता व उनको दूर करने का उपाय मिलता है। उन्होंने कहा कि आत्मिक शुद्धि के लिए नियमित प्रवचन का श्रवण करना चाहिए।
भाव यात्रा कार्यक्रम 4 जुलाई को
जीरावाला पाश्र्वनाथ की भावयात्रा का संगीतमय कार्यक्रम ४ जुलाई को सुबह ९ बजे शुरू होगा। १० जुलाई को आरएस पुरम स्थित बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन संघ में ८.३० बजे गाजे बाजे के साथ चातुर्मासिक प्रवेश होगा।