
प्रमाद मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु
कोयम्बत्तूर. आत्म साधना के मार्ग में आगे बढऩे के लिए प्रमाद सबसे बड़ा शत्रु है। ऐसा व्यक्ति जीवन में धर्म साधना नहीं कर सकता। प्रमाद में व्यक्ति अपना अमूल्य समय गंवा देता है। प्रमाद के पांच भेद हैं। इनमें मद्य, विषय, कषाय, निद्रा व विकया।
यह बात जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट उपाश्रय में धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि मद्य, शराब आदि का व्यसनी व्यक्ति अच्छी तरह से धर्म साधना नहीं कर सकता। शराब आदि का व्यसनी व्यक्ति भोजन बगैर रह सकता है लेकिन शराब के बिना नहीं रह सकता। नशे वाला व्यक्ति जिनवाणी नहीं सुन सकता। पांच इंद्रियों के विषय में शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रति जो आसक्त है वह धर्माराधना नहीं कर सकता। इंद्रीय विष की पराधीनता के कारण भंवरे, मछली, पतंगा, हिरण को मौत के घाट उतरना पड़ा। मनुष्य यदि पांच इंद्रियों का गुलाम होगा तो उसकी हालत सोची जा सकती है।
उन्होंने कहा कि इंद्रियों का असंयम पतन का मार्ग है। इनके संयम से उत्थान संभव है। इंद्रियों की पराधीनता हमें धर्म श्रवण व धर्म आचरण से वंचित रख सकती है।
उन्होंंने कहा कि कषाय क्रोध, मान, माया व लोभ के रूप में आत्म धन को लूटते हैं। स्वतंत्र रूप से भी धर्म श्रवण व आचरण में बाधक हैंं। निंद्रा हमारे अमूल्य समय को खा जाती है। यद्यपि दर्शनावरणीय कर्म के उदय के कारण नींद आती है फिर भी कर्म व पुरुषार्थ के जरिए उसे कम किया जा सकता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि आहार व निंद्रा बढ़ाने से बढ़ते हैं और घटाने से घटते हैं।
ऋषभदेव के १००० वें वर्ष में प्रमाद, निद्राकाल अहोरात्र था जबकि भगवान महावीर के साढ़े बारह वर्ष के काल में निद्रा काला अंतर्मुहूर्त मात्र ही था। निद्रा रूपी प्रमाद के अधीन बने चौदह पूर्वधर महर्षि भी अनंत काल के लिए निगोद में रह जाते हैं।
उन्होंने कहा कि कई लोगों को नींद खूब आती है। प्रवचन के दौरान भी सो जाते हैं। प्रमाद का पांचवां विषय विकया है। अर्थात् विपरीत कथा। धर्म कथा एक प्रकार का स्वाध्याय है और आत्मा के लिए एकांत हितकर है। जबकि विकया आत्मा को आत्महित से दूर ले जाती है। इसमें चार प्रकार की कथा होती है स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा व राज कथा। स्त्री के रूप सौंदर्य की बात करना, भोजन के स्वाद संबंधी बात करना, किसी देश संबंधी निरर्थक बातें करना और राजनीति संबंधी व्यर्थ बातें करने को विकया कहते हैं। २९ सितम्बर को 'मन के जीते जीतÓ विषय पर प्रवचन होंगे।
Published on:
28 Sept 2019 01:28 pm
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