जिनवाणी निंदा अभिमान नहीं सिखाती
जो मनुष्य केवल जैनागम का ही अध्ययन करता है। उसे उस वक्त ज्ञान से कुछ लाभ नहीं होता। जो ज्ञान व्यवहार में उपलब्ध नहीं होता वह सत्य होते हुए भी अनुपयोगी है।
कोयंबटूर•Sep 20, 2019 / 12:08 pm•
Dilip
जिनवाणी निंदा अभिमान नहीं सिखाती
कोयम्बत्तूूर. जो मनुष्य केवल जैनागम का ही अध्ययन करता है। उसे उस वक्त ज्ञान से कुछ लाभ नहीं होता। जो ज्ञान व्यवहार में उपलब्ध नहीं होता वह सत्य होते हुए भी अनुपयोगी है। इसका कारण यह है कि साहित्य सिर्फ पढ़ा, उसे जीवन में नहीं उतारा। आधा भरा हुआ सदैव झलकेगा, पूरा भरा नहीं झलकता। हमें थोड़ा ज्ञान होता है और हम स्वयं को ज्ञानी समझने लगते हैं और पर निंदा में लग जाते हैं। जिनवाणी कभी निंदा या अभिमान की प्रेरणा नहीं देती। वह तो सरल व समभाव की प्रेरणा देते हैं।
ये बातें मुनि हितेशचंद्र विजय ने Coimbatore आर.जी. स्ट्रीट स्थित जैन आराधना भवन में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम के तहत धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि किसी को किसी धर्म या संत की निंदा करने का अधिकार नहीं है। किसी की निंदा या बुराई कर आप खुद का पतन कर लेंगे। उन्होंने कहा कि आम आदमी व संतों के बीच यही फर्क है। वास्तविकता यह है कि जो बात आचरण में लाने के लिए है, उसे निंदा में लगा देते हैं। बोलना आसान है लेकिन इसे आचरण में लाना कठिन है। उसे तो सिर्फ अनुभव से जाना जा सकता है। अनुभव दूसरों पर निर्भर होता है। उसे अधूरा समझा जाए प्रत्येक मनुष्य की प्रवृत्ति स्वर्ग की ओर जाने की होती है क्योंकि वह आनंद चाहता है। लेकिन स्वर्ग से भी आयु पूर्ण कर यहीं आना है। या त्रिर्यंच में जाकर भोगना है। आनंद चाहते तो निर्वाण की चाह करो वहां से आना नहीं पड़ता। निर्वाण सरल बनने, निंदा प्रवृत्ति या खोट निकालना छोडऩे पर ही संभव है। पाश्र्वनाथ जैन सेवा मंडल के रजत जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में शुक्रवार को पहले दिन १८ अभिषेक पूजन होगा।