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स्वार्थ ने व्यक्ति को धर्म परमार्थ से दूर किया

मानव के मन को जानना हर किसी के बस में नहीं है। देवता भी नहीं समझ पाते कब व्यक्ति अपने विचारों से बदलता है। स्वार्थ से मानव मन जितना लिप्त है उतना ही धर्म व परमार्थ से दूर है हमारा समस्त जीवन परिस्थितिवश बन गया है आसपास के वातावरण अनुसार हम मन की वृत्ति बना लेते हैं।

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स्वार्थ ने व्यक्ति को धर्म परमार्थ से दूर किया

स्वार्थ ने व्यक्ति को धर्म परमार्थ से दूर किया

कोयम्बत्तूर. मानव के मन को जानना हर किसी के बस में नहीं है। देवता भी नहीं समझ पाते कब व्यक्ति अपने विचारों से बदलता है। स्वार्थ से मानव मन जितना लिप्त है उतना ही धर्म व परमार्थ से दूर है हमारा समस्त जीवन परिस्थितिवश बन गया है आसपास के वातावरण अनुसार हम मन की वृत्ति बना लेते हैं। कब मन का स्वरूप बन जाए कहा नहीं जा सकता। यह बात मुनि हितेशचंद्र विजय ने सुव्रत जिन मंदिर ध्वजारोहण के मौके पर गुरूवार को आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति कामयाबी के शिखर पर पहुंचना चाहता है।यदि वह एक बार असफल हो जाए तो मन में ग्लानि पैदा कर लेता है। असफलता वह सड़ा हुआ बीज है जो कभी भी अंकुरित नहीं होता। उसे नकार कर पुन: प्रयत्न करने से सफलता हमारे कदमों को चूमेगी। बुराई को हटा कर श्रेष्ठ विचार के साथ कदम बढ़ाएंगे तो सभी कार्य सफल होगा। उन्होंने कहा कि असफल होने पर क्रोध को नहीं आने दें वह सारे कार्य बिगाड़ देता है। वहीं सहनशीलता, प्रेम और कार्य के प्रति समर्पण से मनुष्य मंजिल तक पहुंच सकता है। क्रोध से दूरियां बढ़ती है केवल प्रेम ही अपनों से अपनों को करीब लाता है। किसी कार्य की असफलता आगे किए जाने वाले कार्य को सफलतापूर्वक करने की प्रेरणा देती है। स्कूल में पढऩे वाला बच्चा एक बार फेल हो जाए तो वह स्कूल नहीं छोड़ देता वरन पुन: करियर बनाने में जुट जाता है। सफल बनने का मात्र एक उपाय मन का मनोबल है। उसे जाग्रत रखे मन को परास्त न होने दें मंजिला आपके करीब होगी।