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आगम शास्त्र जैन शासन की आधारशिला

जैनाचार्य विजय रत्न सूरीश्वर ने कहा है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि विशिष्ट सत्ताओं पर व्यक्ति बदलते रहते हैं, क्योंकि देश संविधान के आधार पर चलता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी संविधान से बंधे हैं।इसी तरह तारक,तीर्थंकर,परमात्मा ,गणधर भगवंतों को त्रिपदी रुप श्रुत ज्ञान प्रदान करते हैं।

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आगम शास्त्र जैन शासन की आधारशिला

सेलम.जैनाचार्य विजय रत्न सूरीश्वर ने कहा है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि विशिष्ट सत्ताओं पर व्यक्ति बदलते रहते हैं, क्योंकि देश संविधान के आधार पर चलता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी संविधान से बंधे हैं।इसी तरह तारक,तीर्थंकर,परमात्मा ,गणधर भगवंतों को त्रिपदी रुप श्रुत ज्ञान प्रदान करते हैं। उस त्रिपदी के आधार पर गणधर भगवंत द्वादशांगी की रचना करते हैं। जैनाचार्य यहां आदीश्वर भवन में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन कर रहेथे।उन्होंने कहा द्वादशांगी के आधार पर जैन संघ की सारी व्यवस्था चलती है। स्वयं तीर्थंकर भगवंत भी अपने पद पर गणधर और आचार्य की स्थापना करते हैं और शासन की सारी जिम्मेदारी उन्हें सौंपते हैं।आचार्य के स्थान पर व्यक्ति बदलते रहते हैं।परन्तु वे सभी आचार्य भी शासन का संचालन स्वमति कल्पना से नहीं बल्कि आगम शास्त्र के आधार पर करते हैं।
जैनाचार्य ने कहा कि जिस प्रकार गृहस्थ को अपने पास रहे धन को सुरक्षित रखने की चिंता होती है। , क्योंकि धन के आधार पर उसका जीवन है। उसी प्रकार श्रुत ज्ञान रुपी आगम शास्त्र ही जैन शासन की आधारशिला है। अत: शासन की रक्षा के लिए श्रुत ज्ञान रूप आगम शास्त्रों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि श्रुत की रक्षा के लिए पुराने ज्ञान भंडारों का जीर्णोद्धार करें एवं नए ज्ञान भंडारों की स्थापना करके उनका सुयोग्य संचालन करना चाहिए। ताड़पत्र व वर्षों तक चलने वाले टिकाऊ कागजों के आगम का लेखन व प्रकाशन करने में अपनी शक्ति के अनुसार योगदान देना चाहिए।
धर्मसभा में बताया गया कि शुक्रवार को आचार्य सेलम से ईरोड़ की ओर प्रस्थान करेगा। वे २९ अप्रेल को ईरोड़ में प्रवेश करेंगे।