
कमला दादी प्यार से खिलाती है क्र१ में एक इडली
कोयम्बत्तूर. बढ़ती महंगाई Inflation के दौर में भी कुछ लोग जरुरतमंदों को कम कीमत पर शुद्ध और पौष्टिक आहार Food उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। इनका मकसद लाभ कमाना नहीं बल्कि जरुरतमंदों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराना है। जब जुनून लोगों की सेवा का हो तो उम्र भी बाधक नहीं बनती। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं 80 वर्षीय वृद्धा के. कमलाताल यानी कमला दादी।
कमलाताल कोयम्बत्तूर Coimbatore शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर पेरुर Perur के पास वेलयमपालयम Velampalaiyam गांव में रहती हैं। कमलाताल Kamalatal आज भी एक रुप One rupees में इडली Idli के साथ गर्म सांबर और मसालेदार चटनी देती हैं और वह भी बिल्कुल घर जैसा। सस्ता होने के बावजूद उसमें कमला दादी का प्यार भरा होता है। घर से ही पिछले 30 साल से दुकान चलाने वाली कमलाताल की पहचान आसपास के इलाकों में 'एक रुपए इडली वाली दादी' Idli wali Dadi के रुप में है।
कमलाताल ने 30 बरस पहले जब दुकान शुरू की थी तब 50 पैसे में एक इडली बेचती थीं। करीब 10 साल पहले उन्होंने इसकी कीमत बढ़ाकर 1 रुपए कर दी। कमलाताल कहती हैं कि कई लोगों ने महंगाई को देखते हुए कीमत बढ़़ाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि ग्राहकों में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर और स्कूली बच्चे हैं।
कमलाताल कहती हैं कि वे दुकान मुनाफे केे लिए नहीं चलातीं, उनका मकसद जरुरतमंद और भूखों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराना है। कमलाताल रोजाना करीब एक हजार इडली बेच लेती हैं और इनसे उन्हें करीब 200 रुपए की कमाई हो जाती हैं। कमलाताल कहती हैं कि उनके गांव और आसपास के इलाकों में रहने वाले अधिकांश लोग निम्र-मध्यम आय वर्ग के हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इनमें से अधिकांश दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। इन लोगों के लिए रोजाना 15-20 रुपए देकर किसी होटल में एक प्लेट इडली खाना संभव नहीं है। आसपास के होटलों में तीन-चार इडली एक प्लेट में मिलती है जो शारीरिक श्रम करने वाले इन लोगों के लिए पर्याप्त नहीं होती। कमला कहती हैं कि उनका ध्यान सिर्फ इन लोगों की भूख पर है और इसीलिए वे एक इडली के लिए सिर्फ एक रुपए लेती हैं। इससे उन मजदूरों को भी परिवार के लिए भी कुछ कमाई बचाने में मदद मिलती है और मुझे भी फायदा होता है। हालांकि,मुनाफा काफी कम होता है लेकिन मेरे लिए यह काफी है। कमलाताल की दुकान पर सिर्फ मजदूर ही नहीं खाते बल्कि स्कूल में पढऩे वाले बच्चे भी नाश्ता करते हैंं।
कमला कहती हैं कि वे इस उम्र में भी इसलिए काम करती हैं कि ताकि उन पर विश्वास करने वाले स्कूली बच्चों और श्रमिकों को निराशा नहीं हो। बढ़ती उम्र को देखते हुए परिवार के लोग कई बार उन्हें दुकान बंद करने के लिए कह चुके हैं लेकिन वे कहती हैं कि जब तक शरीर साथ दे रहा है तब तक वे काम करती रहेंगी। कमलाताल कहती हैं कि उन्हें इन लोगों के लिए खाना बनाकर खुशी मिलती है और इससे मुझे में स्फूर्ति भी बनी रहती है। ग्राहकों की मांग पर कमलाताल ने ही हाल में ही ऊलंदू बोंडा (उड़द की दाल का पकौड़ा) भी बनाना शुरू किया है जिसे वे 2.50 रुपए प्रति नग बेचती हैं।
कमलाताल बताती हैं कि पति की मौत के बाद उनके पास कोई काम नहीं था। घर के लोग खेतों पर काम करने चले जाते थे और वे अकेली होती थीं। खुद को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने सुबह के समय घर में ही इडली बनाकर बेचने का काम शुरू किया। बाद में यह काम काफी चलने लगा। सिर्फ दोपहर तक ही दुकान चलाने वाली कमलाताल की दिनचर्या सूर्योदय से पहले ही शुरू हो जाती हैं। नित्य कर्मों और पूजा-पाठ से निवृत्त होने के बाद खेत से ताजी सब्जियां लाती हैं। सब्जियों को काट कर सांबर बनाने के लिए चढ़ा देती हैं और फिर खलबट्टे (ओखली-मूसल) पर चटनी पीसती हैं। सुबह आठ बजे उनकी दुकान खुल जाती है। वे बिना किसी मशीनी सहयोग के आज भी परंपरागत तरीके से इडली-सांबर-चटनी बनाती हैं।
कमलाताल की इडली खाने वाले उसके स्वाद के मुरीद हैं। वे स्वाद का राज पूछने पर बताती हैं कि आज भी वे मसाला और चटनी पत्थर के सिलबट्टे पर पीसने के साथ ही इडली-सांबर भी मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी से बनाती हैं। वे बताती हैं कि रोजाना चार घंटे इडली बैटर तैयार करने के लिए छह किलो चावल और उड़द की दाल पत्थर की चक्की पर पीसती हैं।
कमलाताल दुकान का पूरा काम अकेले करती हैं। कमला के पास एक तीन स्तरीय इडली मेकर हैं जिसें एक बार में 36 इडली बनती है। चटनी रोज बदलती है लेकिन वे कई सब्जियों से मिश्रित सांबर ही बनाती हैं ताकि वह पौष्टिक हो। यहां इडली सौगान या केले के पत्ते पर परोसी जाती है।
Published on:
04 Sept 2019 11:29 pm
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