दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन का औपचारिक स्वागत, दोनों देशों के बीच अहम बैठक क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर भानुमति तथा जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक आईपीसी में मृत्युदंड का प्रावधान है, तब तक ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ मामलों में मौत की सजा देने के लिए अदालतों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने अपने ही एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भरतीय दंड विधान में मृत्युदंड का होना भारतीय संविधान की व्यवस्थाओं के अनुसार वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में दिया जाने वाला मृत्युदंड संवैधानिक प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पूरी तरह पालन करता है।
क्या है मामला शीर्ष अदालत की ‘सजा ए मौत’ को वैध ठहराने वाली यह टिप्पड़ी तब आई जब निर्भया केस के दो दोषियों विनय शर्मा और पवन गुप्ता की ओर से पेश एडवोकेट दलील दी कि मृत्यदंड दुनिया के कई देशों में अवैध घोषित हो चुका है।
बता दें कि देश का बहुचर्चित निर्भया रेप कांड में 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुआ था।16 दिसंबर की रात चलती बस में 6 लोगों ने 23 साल की निर्भया के साथ बलात्कार किया था। इन बलात्कारियों में एक नाबालिग भी था। इस घटना में निर्भया के मित्र को इतना पीटा गया था कि वह बेहोश हो गया। इसके बाद दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसे अधमरी हालत में सड़क किनारे फेंक दिया गया। घटना के बाद से जीवन और मृत्यु के बीच झूलती निर्भया ने सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में 29 दिसंबर को दम तोड़ दिया था।
बुराड़ी मौत कांड: 250 लोगों से पूछताछ, फिर भी खाली हैं पुलिस के हाथ दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च, 2014 को दोषियों को मृत्युदंड देने के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की थी। इसके बाद दोषियों ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थीं जिन पर न्यायालय ने पांच मई 2017 को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।