
TRENDING news of BHAUM PRADOSH VRAT on 15 September 2020, POOJA VRAT VIDHI
भगवान शिव की स्तुति व आशीर्वाद प्राप्त करने का एक प्रमुख पर्व प्रदोष को भी माना जाता है। एक ओर जहां उत्तर भारत में इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसे प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से यह व्रत शिव व शक्ति को समर्पित है। यह व्रत शुक्ल व कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि पर पड़ता है। वर्ष में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। प्रत्येक वार के हिसाब से प्रदोष व्रत है। सात वारों के लिए सात व्रत हैं। प्रदोष व्रत की मान्यता और इसका फल वार के अनुसार बदल जाता है।
ऐसे में सितंबर 2020 में व्रत 15 सितंबर को रखा जाएगा। वहीं यह व्रत मंगलवार के दिन पड़ने के कारण यह भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से स्कंद पुराण में वर्णन किया गया है। जिसके अनुसार साधक प्रदोष व्रत का पालन अपने जीवन में हर तरह के सुख की प्राप्ति के लिए करता है। इस व्रत को स्त्री और पुरूष दोनों कर सकते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक पर भगवान शिव की कृपा दृष्टि बनती है। जिससे साधक अपने पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है।
वहीं इस बार हिन्दू पंचांग के अनुसार इस दिन विशेष संयोग बन रहा है। यह संयोग है भौम प्रदोष व्रत के दिन दो तिथियों का। दरअसल प्रदोष व्रत कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है और वर्तमान में कृष्ण पक्ष चल रहा है।
भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Bhauma Pradosh Vrat Shubh Muhurat)
पूजा का शुभ मुहूर्त – 15 सितंबर, मंगलवार – 06:26 PM से 07:36 PM तक
इस पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि भी पड़ती है यानि मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि दोनों एक साथ पड़ रहे हैं। दोनों तिथियां भोलेनाथ शिव शंकर को प्रिय हैं। इसलिए धार्मिक दृष्टि से यह संयोग बहुत ही शुभ होता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है। इसके साथ ही इस वर्ष का मघा श्राद्ध भी 15 सितंबर को है। त्रयोदशी तिथि के दिन होने वाली श्राद्ध को मघा श्राद्ध कहते हैं, जो मघा और त्रयोदशी के योग में आता है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत पूजन हेतु सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल है। पूजन से पूर्व साधक स्नान कर सफेद रंग का स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद भगवान शिव के मंदिर जाएं। मंदिर नहीं जा सकते हैं तो यह पूजन साधक घर पर भी कर सकते हैं। अब आप शिव जी का अभिषेक करें और उन्हें बेल पत्र चढ़ाएं। इसके बाद अगरबत्ती व धूप से पूजा कर ओम नमः शिवाय का जाप करें। जाप पूर्ण होने के बाद साधक प्रदोष व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें। इसके संपन्न होने के बाद आरती कर प्रसाद को लोगों में बांट दें। फिर फलाहार कर अगले दिन शिव की विधिवत पूजा कर व्रत को खोलें।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हिंदू धर्म में प्रत्येक मास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण तारीख होती हैं जो पूजापाठ और व्रत करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन्हीं में से एक प्रदोष व्रत भी होता है। इस महीने आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत 15 सितंबर, मंगलवार को पड़ रहा है। यानी इस बार का प्रदोष भौम प्रदोष कहलाएगा। आइए जानते हैं क्या है भौम प्रदोष का यह संयोग और प्रदोष व्रत से जुड़ी खास बातें…
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस बार के भौम प्रदोष व्रत में एक खास संयोग पड़ रहा है। भौम प्रदोष व्रत है जिस दिन होता है उस दिन त्रयोदशी मंगलवार को पड़ती है और इस बार मंगलवार को ही यानी त्रयोदशी के दिन से ही चतुर्दशी लग रही है, जो कि बहुत ही खास संयोग माना जा रहा है। दरअसल त्रयोदशी के दिन ही चतुर्दशी का लग जाना धार्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है। इसलिए इस बार के प्रदोष व्रत का खास महत्व माना जा रहा है।
होती है मोक्ष की प्राप्ति...
शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत से हजारों यज्ञों को करने का फल प्राप्त होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है और संतान दीर्घायु होती है।
इस दिन व्रत करने वाले को बह्म बेला में उठकर पूजा करनी चाहिए और व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। फिर शिवजी की पूजा अर्चना करके सारा दिन उपवास करना चाहिए। शिवजी की पूजा में बेलपत्र, भांग, धतूरा, पुष्प, फल और मिष्ठान का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद भोग लगाएं और शिव मंत्र का जप करें।
जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष हो उन्हें भौम प्रदोष व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से मंगल का अशुभ प्रभाव दूर होता है। अगर आप मूंगा धारण करने का विचार कर रहे हैं तो आपके लिए यह दिन सबसे उपयुक्त है। इस दिन हनुमानजी के मंदिर में जाकर दीपक जलाएं और सिंदूर का चोला भी चढ़ा सकते हैं।
भौम प्रदोष व्रत आरती/ शिव आरती (Bhauma Pradosh Vrat Aarti/ Shiv Aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ॐ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ॐ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ॐ॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ॐ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ॐ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालनकर्ता ॥ॐ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ॐ॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ॐ॥
Published on:
14 Sept 2020 10:38 am
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