17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अधिक वजन और कई कारण करते हैं किडनी को बीमार

अधिक वजन के कारण शरीर में जमा वसा कई अंगों पर असर डालता है जिसमें किडनी ज्यादा प्रभावित होती है।

3 min read
Google source verification

image

Shankar Sharma

Sep 04, 2018

अधिक वजन और कई कारण करते हैं किडनी को बीमार

अधिक वजन और कई कारण करते हैं किडनी को बीमार

अधिक वजन के कारण शरीर में जमा वसा कई अंगों पर असर डालता है जिसमें किडनी ज्यादा प्रभावित होती है। दुनियाभर के अधिक वजनी लोगों में 83 फीसदी किडनी संबंधी रोगों की आशंका रहती है। जिसमें सीकेडी, किडनी का कैंसर व पथरी प्रमुख हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2025 तक मोटापा विश्वभर में 18 फीसदी पुरुषों व २१त्न से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। आज भारत में 100 में से 17 लोग किडनी की बीमारी से पीडि़त है। जिनमें से 6त्न लोग बीमारी की तीसरी स्टेज पर हैं। भारत में हर वर्ष 2 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु किडनी फेल होने से होती है। मोटापे से ग्रसित व्यक्तियों में 2 से 7 गुना ज्यादा गुर्दा रोगों के होने की आशंका रहती है।

इन वजहों से होता नुकसान
किडनी, ब्लैडर या प्रोस्टेट का कैंसर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किडनी को बीमार करता है। कुछ आनुवांशिक डिसऑर्डर जैसे सिकल सेल एनीमिया या किडनी का चोटिल होना, रक्त को पतला करने वाली दवा, कैंसर के उपचार के लिए ली जाने वाली दवाएं, अत्यधिक वर्कआउट या नियमित कई किलोमीटर दौडऩा भी किडनी पर असर डालता है।

यूरिनरी टै्रक्ट और किडनी में खराबी आने से यूरिन में रक्त आने की समस्या हो सकती है जिसे हिमेटूरिया कहते हैं। इसमें लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढऩे से यूरिन का रंग गुलाबी, लाल या काला दिखाई देने लगता है। कई बार यूरीन में ब्लड क्लॉट निकलने पर दर्द हो सकता है। रोगी को सिर्फ यही लक्षण दिखते हैं इसलिए इसे नजरअंदाज किए बिना डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।

किडनी पर अचानक चोट लगना हाइपर फिल्ट्रेशन कहलाता है। जिसमें इसपर मेटाबॉलिक दबाव बढऩे से अपशिष्ट पदार्थों की संख्या अधिक हो जाती है और इस अंग का कार्य बढऩे से किडनी के बगल में छेद भी बढ़ जाते हैं जहां से प्रोटीन का रिसाव शुरू हो जाता है। यह स्थिति धीरे-धीरे किडनी को काफी नुकसान पहुंचाती है। इसे ओबेसिटी संबंधी किडनी डिजीज कहते हैं।

इस अंग के प्रभावित होने पर यह शरीर में पानी, नमक और अपशिष्ट पदार्थों का बैलेंस नहीं बना पाती। ऐसे में नमक की अधिकता ब्लड प्रेशर बढ़ाती है। वहीं अन्न की मात्रा में वृद्धि से हृदय की एलबीएच नामक दीवार मोटी हो जाती है जिससे हार्ट फेल का खतरा रहता है। अपशिष्ट पदार्थों की अधिकता दिमाग के अलावा हृदय की बाहरी परत (एपिकार्डियम) और पाचनतंत्र पर असर करती है। इससे व्यक्ति को पैरों में सूजन और बार-बार उल्टी की समस्या होती है। साथ ही किडनी ही विटामिन-डी का निर्माण करती है। इस अंग की खराबी हड्डियों को भी कमजोर करती है। पॉलीसिस्टिक किडनी रोग आनुवांशिक है। इसमें किडनी में तरल पदार्थ के लगातार जमने से अल्सर बन जाते हैं। जिससे किडनी का कार्य बाधित होता है।

मधुमेह रोगी को डायबिटिक नेफ्रोपैथी की समस्या हो सकती है। गुर्दों की बेहद सूक्ष्म वाहिकाएं जो रक्त साफ करती हैं, शरीर में शुगर का स्तर बढऩे से इन वाहिकाओं को नुकसान होता है। धीरे-धीरे इस परेशानी से किडनी काम करना बंद कर देती है। किडनी रोगी में मधुमेह का खतरा एक तिहाई होता है।

शरीर का फिल्टर प्लांट
शरीर का मुख्य अंग किडनी सोडियम, पोटेशियम, पानी, फास्फोरस आदि का संतुलन बनाए रखती है। विषैले पदार्थों व जमा अतिरिक्त तरल को यूरिन के जरिए बाहर निकालकर खून साफ करती है। कुछ कारणों से गुर्दों का कार्य बाधित होने से रक्त का शुद्धिकरण नहीं होता व विषैले पदार्थों की अधिकता हृदय रोग, हाई बीपी, पित्त की थैली-हड्डियों में कैंसर की आशंका बढ़ाती है।

ये हैं प्रमुख जांचें
लक्षणों का पता लगाने के लिए दूरबीन से ब्लैडर और यूरेथ्रा की जांच होती है। अल्ट्रासाउंड, ब्लड, यूरिन, किडनी फंक्शन व इमेजिंग टैस्ट व किडनी बायोप्सी से रोगों की पहचान होती है। यह रक्त में क्रिएटिनिन व यूरिया के रूप में व्यर्थ पदार्थों का स्तर बताने के अलावा अंग के आकार व स्वरूप पर नजर रखते हैं।

प्रभावी है इलाज
यदि व्यक्ति पहले से किसी रोग से पीडि़त है तो सबसे पहले इनके इलाज के लिए दवाएं देते हैं ताकि ये गंभीर रूप लेकर किडनी को प्रभावित न करे। शुरुआती अवस्था में किडनी रोगों का इलाज दवाओं से होता है। डायलिसिस के अलावा खराब किडनी को हटाकर उसकी जगह स्वस्थ किडनी प्रत्यारोपित करते हैं।