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कृत्रिम पैर से जीवन में नया कदम

जीवन में आगे बढ़ते कदमों को कई बार तन की बाधा रोक लेती है। मन भी ठहर जाता है। किसी हादसे, चोट, जन्मजात विकृति या गंभीर बीमारियों के...

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Mukesh Kumar Sharma

Jun 13, 2018

artificial leg

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जीवन में आगे बढ़ते कदमों को कई बार तन की बाधा रोक लेती है। मन भी ठहर जाता है। किसी हादसे, चोट, जन्मजात विकृति या गंभीर बीमारियों के कारण हाथ या पैर गवां चुके ऐसे लोगों को जीवन में नया कदम बढ़ाने का हौसला व हिम्मत दे रहे हैं कृत्रिम हाथ-पैर। जयपुर के रिहेबिलीटेशन मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. अनिल जैन से पत्रिका ने जाना कि वे किस तरह जयपुर फुट व कैलिपर्स के जरिये लोगों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं।

दो तरह के कृत्रिम पैर

मरीज की जरूरत के अनुसार दो प्रकार के कृत्रिम पैर बनाए जाते हैं। पहले को प्रोस्थेसिस और दूसरे को आर्थोसिस कहते हैं। जयपुर फुट : प्रोस्थेसिस (कृत्रिम अंग) को आम भाषा में जयपुर फुट कहते हैं। यह उन लोगों को लगाया जाता है जिनके अंग किसी दुर्घटना, चोट, जन्मजात या किसी बीमारी के कारण काटना पड़ा हो।


कैलिपर : आर्थोसिस को कैलिपर भी कहते हैं। यह कृत्रिम पैर नहीं, बल्कि कमजोर पैरों को सपोर्ट करता है। इसे पोलियो पीडि़त, फ्रेक्चर, गंभीर बीमारियों में कमजोर हुई पैरों की हड्डियों व लकवे से पीडि़त को लगाया जाता है। आर्थोपेडिक डॉ. पी. के. सेठी (दिवंगत) की टीम ने १० साल के शोध के बाद विकसित कैलिपर का वजन पहले की तुलना बहुत कम कर इसे आरामदायक बना दिया है।

जयपुर फुट यह उन मरीजों को लगाया

जाता है जिनके पैर या पैर का कोई हिस्सा किसी दुर्घटना, चोट, बीमारी आदि के कारण कट गया हो।

सपोर्टर

कई बार जिनके पैरों की अंगुलियों व आकार में विकृति हो उन्हें यह सपोर्टर पहनाया जाता है।

पोलियो कैलिपर

कैलिपर उनको पहनाया जाता है जिनके अंग होते हैं लेकिन अंगों को प्रयोग करने की ताकत नहीं होती है। यह मजबूती देता है।

ऐसे बनते हैं पैर

डॉ.जैन ने बताया कि जयपुर फुट चार प्रकार के रबड़ और कैलिपर प्लास्टिक शीट से बनाए जाते हैं। इसमें कुशन कम्पाउंड (जोडऩे), स्किन रबड़ (कलर), टायर कॉर्ड (मजबूती) और ट्रीड कम्पाउंड (ताकि घिसे नहीं) का प्रयोग होता है। नाप लेने के बाद पीओपी का पक्का फ्रेम बनाते हैं। इस पर स्पंज की परत चढ़ाकर पॉलिप्रोपाइलिंग थर्मोप्लास्टिक चढ़ाया जाता है। इसे वैक्यूम मोल्डिंग मशीन की मदद से १८० डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर प्लास्टिक और स्पंज को जोड़ा जाता है। इनमें कुछ एक दिन में बन जाते हैं जबकि घुटने से नीचे वाले पैर के लिए सात दिन व पूरा पैर बनाने में १५ दिन लगते हैं।

कृत्रिम पैर व कैलिपर्स बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को लगाए जा रहे हैं। ये लचीले व मजबूत हैं और रोजमर्रा का काम करने में सहायक हैं। वजन के आधार पर इनकी मजबूती तय होती है।

सावधानियां

दिनभर लगाने के बाद भी कृत्रिम पैर व कैलिपर्स बहुतों को एलर्जी नहीं करते हैं। लेकिन कुछ लोगों को ऐसी परेशानी हो सकती है। इसके लिए २-३ घंटे के अंतराल पर स्किन में हवा लगने के लिए निकाल दें। सुरक्षा के लिए पहनते समय मोजे का प्रयोग करें। अगर लूज या टाइट होता है तो जबरन न पहनें, तत्काल बदल दें। बच्चों में उम्र के साथ इसे बदलते रहना होता है।

ये हैं फायदे

डॉ. जैन व उनकी टीम के बनाए जयपुर फुट व कैलिपर्स की मदद से हर उम्र के स्त्री-पुरुष अपने रोजमर्रा के कामकाज आसानी से कर लेते हैं। कृत्रिम पैर के बावजूद कपड़े धोने, पैरों से सिलाई मशीन चलाने, खेतों में काम, इंडियन टॉयलेट का प्रयोग, टै्रक्टर चला सकते हैं। कुछ तो दूसरी व तीसरी मंजिल तक सीढिय़ां चढ़ लेते हैं। एक महिला तो आठ ज्योतिर्लिंग की यात्रा तक कर आईं हैं।

अभिनेत्री ने फिल्म के लिए बनवाया खास पैर

डिस्कवरी चैनल पर हाल ही शुरू कार्यक्रम ‘एच. आर.एक्स हीरोज’ में शारीरिक रूप से अपंग नौ व्यक्तित्त्वों की कहानी दिखाई गई। इनमें से एक कहानी नृत्यांगना जयपुर फुट लगा रही सुधा चंद्रन की भी थी। सुधा चंद्रन का रोल करने वाली अभिनेत्री तानुका लघाटे के दोनों पैर सही हैं। लेकिन किरदार में जान डालने के लिए उन्होंने डॉ. जैन से कृत्रिम पैर बनवाया व उसे लगाकर डांस किया।