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Stay Healthy – खुद पर हावी ना होने दें माइग्रेन

माइग्रेन का मतलब ही आधे सिर का दर्द है, महिलाएं, पुरुषों की तुलना में इसकी चपेट में ज्यादा आती हैं

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Stay Healthy - खुद पर हावी ना होने दें माइग्रेन

माइग्रेन का मतलब ही आधे सिर का दर्द है। महिलाएं, पुरुषों की तुलना में इसकी चपेट में ज्यादा आती हैं। लेकिन हर सिरदर्द माइग्रेन नहीं होता। लक्षणों की ठीक से जानकारी हासिल करने के बाद ही जाना जा सकता है कि यह माइग्रेन है या कोई अन्य समस्या।

इस रोग के लक्षण
सिर में तेज दर्द होना, सिर के एक हिस्से में लगातार दर्द, किसी भी तरह की रोशनी से दर्द में इजाफा, जी मिचलाना, 4 घंटे से लेकर तीन दिन तक दर्द बने रहना, कभी-कभी लगातार एक हफ्ते तक दर्द बने रहना। कई बार माइग्रेन होने के बाद मरीज 1-2 महीने तक आराम से रहता है। लेकिन इस बीच उसे गर्दन और कंधों में दर्द महसूस हो सकता है। सिरदर्द होने से पहले ही मरीज को आभास हो जाता है कि उसे तेज सिरदर्द होने वाला है। इस आभास को औरा कहते हैं। दर्द से एक घंटा पहले औरा शुरू हो जाता है। ऐसा महसूस होता है कि सिर फट जाएगा। यह दर्द आधे सिर के अलावा माथे, जबड़े और आंख के नीचे भी होता है।

इस बीमारी के प्रकार
माइग्रेन दो प्रकार का होता है। पहला क्लासिकल माइग्रेन और दूसरा कॉमन माइग्रेन। क्लासिकल माइग्रेन में मरीज को औरा होता है और फिर सिरदर्द होता है। कॉमन माइग्रेन में औरा नहीं होता। अधिकतर लोग इसकी चपेट में ही आते हैं।

इन्हें हो सकता है माइग्रेन
किशोरावस्था से पहले लड़कियों की तुलना में लड़कों को माइग्रेन अधिक होता है। इस बात के महत्वपूर्ण प्रमाण मिले हैं कि महिलाओं के गिरते-बढ़ते एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर का माइग्रेन से संबंध हो सकता है।

लाइफस्टाइल बदलना जरूरी
अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करें। रोजाना योग, प्राणायाम करें और मेडिटेशन का नियमित अभ्यास करें। कब्ज न होने दें और फाइबर युक्त भोजन करें। तला-भुना ज्यादा ना खाएं। कॉफी व तंबाकू उत्पादों का सेवन न करें। बादाम तेल से सिर की मालिश करने पर भी आराम मिलता है।

होम्योपैथिक इलाज
होम्योपैथी में रोगी के लक्षणों के आधार पर उचित पोटेंसी की दवा दी जाए तो कुछ महीनों के उपचार से रोगी ठीक हो जाता है। होम्योपैथी की नेट्रम म्यूर, पल्सेटिला, साइलेशिया, सेग्यूनेरिया, नेट्रम सल्फ, बेलेडोना, आर्सेनिक आदि दवाएं कारगर साबित हुई हैं।दवाओं के अलावा रिलेक्सेशन थैरेपी, लाइफस्टाइल में बदलाव और साइकोथैरेपी से इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।