23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बच्चा अकेले ज्यादा खेले व नजरें मिलाने से कतराए तो ध्यान दें

ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलप-मेंटल डिसऑर्डर है। इसमें बच्चा आमतौर पर किसी चीज में दिलचस्पी नहीं दिखाता। लड़कियों के मुकाबले लड़कों में इस डिसऑर्डर के मामले अधिक (4:1) देखे गए हैं। जागरूकता के अभाव में कई बार बच्चे के इस डिसऑर्डर के बारे में समय पर पता ही नहीं चल पाता। कुछ ऐसे लक्षण हैं जिससे आसानी से यह समझा जा सकता है कि बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है या नहीं।

2 min read
Google source verification

जयपुर

image

Jyoti Kumar

Aug 03, 2023

child_care.jpg

ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलप-मेंटल डिसऑर्डर है। इसमें बच्चा आमतौर पर किसी चीज में दिलचस्पी नहीं दिखाता। लड़कियों के मुकाबले लड़कों में इस डिसऑर्डर के मामले अधिक (4:1) देखे गए हैं। जागरूकता के अभाव में कई बार बच्चे के इस डिसऑर्डर के बारे में समय पर पता ही नहीं चल पाता। कुछ ऐसे लक्षण हैं जिससे आसानी से यह समझा जा सकता है कि बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है या नहीं।

इन लक्षणों पर गौर करें
किसी चीज में रुचि न दिखाना, जीवंत के बजाय निर्जीव वस्तुओं (खिलौने, किताब) से ज्यादा जुड़ाव रखना, खुद को एक्सप्रेस करने में असहज होना, किसी भी चीज को बार-बार दोहराना, आइ कॉन्टेक्ट न करना, भावनाएं न समझ पाना, खुशी-परेशानी न बताना, अकेलापन अधिक पसंद होना आदि।

यह भी पढ़ें: अगर आप भी पहनते हैं टाइट जींस तो हो जाएं सावधान, 6 बीमारियां बना सकती है अपना शिकार

इस उम्र से ही नजर रखें
दो वर्ष की उम्र से ही ऐसे बच्चों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, लेकिन कई बार पेरेंट्स ऐसे लक्षणों पर ध्यान नहीं देते हैं। इसलिए जब भी आपको लगता है कि बच्चे का व्यवहार अलग है तो उस पर ध्यान देना शुरू कर दें।

बच्चे से उग्र व्यवहार न करें
कई बार पेरेंट्स बच्चे को कुछ सिखाते हैं, लेकिन वह सीख नहीं पाता तो वे बिना उसकी स्थिति को समझे दूसरे बच्चों से उसकी तुलना करते हुए उसके साथ उग्र हो जाते हैं। ऐसा न करें। बच्चे के मन पर असर पड़ता है। पेरेंट्स को यह भी समझना चाहिए कि बच्चे को ऑटिज्म के अलावा कोई अन्य समस्या तो नहीं है। कई बार ऐसा होता है कि ऐसे बच्चों में दौरे पडऩा, लर्निंग डिसेबिलिटी, एंग्जाइटी जैसे लक्षण भी नजर आते हैं।

यह भी पढ़ें: Reduce Cancer Risk: सिर्फ 5 मिनट के इस काम से कैंसर का खतरा होगा कम, नई स्टडी में हुआ खुलासा

पेरेंट्स क्या करें
शिशु रोग विशेषज्ञ से परामर्श: लक्षण नजर आएं तो बच्चे को शिशु रोग विशेषज्ञ के पास जरूर लेकर जाएं। कोई डायग्नोसिस है तो सही उपचार करवाएं।
बिहेवियरल थैरेपी: ऐसे बच्चों को अपनी देखभाल खुद करने और सोशल, स्पीच और लैंग्वेज स्किल आदि सिखाने के लिए बिहैवियरल थैरेपी दी जाती है।
पैट थैरेपी दें कुछ रिसर्च में सामने आया है कि जिन परिवारों में पालतू रखे जाते हैं, वहां ऑटिज्म पीडि़त बच्चों में सुधार अधिक देखा गया है।
स्पेशल लर्निंग: इस डिसऑर्डर के साथ बच्चे इंटरेक्टिव नहीं होते। ऐसे में उन्हें स्पेशल टीचर्स ही पढ़ा सकते हैं।
स्ट्रेंथ का प्रभावी इस्तेमाल: इनकी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ है, इनका बोरियत महसूस न करना। ये किसी काम को 50 बार भी कर सकते हैं। इनकी स्ट्रेंथ का प्रभावी इस्तेमाल करने के लिए टीचिंग प्रोग्राम ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे सीखकर ये बेहतर जीवन जी सकें।