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शरीर के दूसरे अंगों पर भी असर करती है टीबी

टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस संक्रामक रोग है जो माइको बैक्टीरियम बैक्टीरिया की वजह से फैलता है। भीड़भाड़ वाली जगह या ऐसी जगह जहां टीबी से पीडि़त रोगी छींकत

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Mukesh Kumar Sharma

Mar 23, 2018

Tuberculosis

Tuberculosis

टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस संक्रामक रोग है जो माइको बैक्टीरियम बैक्टीरिया की वजह से फैलता है। भीड़भाड़ वाली जगह या ऐसी जगह जहां टीबी से पीडि़त रोगी छींकता या खांसता है तो इस दौरान स्वस्थ व्यक्ति में बैक्टीरिया सांस के जरिए सबसे पहले फेफड़े पर असर करता है। इसके बाद यह शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर उनकी कार्यप्रणाली को खराब कर देता है। इन दिनों इस रोग के मामलों में कमी आई है।

लेकिन एचआईवी रोगी और जिन लोगों में किसी रोग के लिए ली जाने वाली दवाएं बेअसर होने लगती हैं उनमें इसकी आशंका अधिक रहती है।

लक्षण, जो बताते हैं रोग

रोग के लक्षण प्रभावित अंग के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। यदि व्यक्ति की सांसनली और फेफड़ों पर असर होता है तो तेज व दर्द वाली खांसी, सीने में दर्द और खांसी के साथ कई बार रक्त आने जैसी समस्या हो सकती है। जो कि दो हफ्ते से ज्यादा भी हो सकती है। इसके अलावा अन्य अंगों पर असर होने से सामान्यत: शारीरिक कमजोरी, चक्कर आना, वजन घटना, भूख न लगना, बुखार, सोते समय ज्यादा पसीना आना और ठंड लगना मुख्य है।

जांच व टीके से बचाव संभव

जिनमें रोग की आशंका अधिक होती है उनके लिए बैक्टीरिया की आशंका को दूर करने के लिए मैन्टॉक्स टैस्ट करते हैं। इसके अलावा बच्चों में रोग से बचाव के लिए बीसीजी वैक्सीन जन्म के समय और दो साल के होने पर लगाई जाती है।

सामान्य व्यक्ति को दो हफ्ते से अधिक खांसी होने पर बलगम की जांच करानी चाहिए। टीबी की पुष्टि होने पर तुरंत इलाज लें। खांसते-छींकते समय मुंह पर साफ कपड़ा रखें। एचआईवी से बचाव के लिए सुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित इंजेक्शन या रक्त से बचना ही उपाय है।

एचआईवी रोगी हो तो...

संशोधित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अनुसार टीबी रोगी की एचआईवी जांच जरूरी है। वहीं, एचआईवी रोगी की खांसी, बुखार, वजन में कमी या शाम के समय पसीना आने की स्थिति में बलगम की विशेष जांच होनी चाहिए। टीबी की पुष्टि के बाद रिफाम्पिसिन दवा देते हैं। एमडीआर टीबी (दवाओं का बेअसर होना) के बारे में भी बताया जाता है।

दवाओं से इलाज

एंटीबायोटिक्स से बैक्टीरिया खत्म करते हैं। प्रभावित अंग व रोग की गंभीरता पर इलाज की अवधि तय होती है। एचआईवी व टीबी रोगी को दोनों की दवा एक ही केन्द्र से मिलती है। टीबी की दवा शुरू करने के लगभग 15 दिन बाद एचआईवी की दवा देते हैं। इलाज नई पद्धति - ‘99 डॉट्स’ ( हर मरीज को एक माह की दवा देना) से किया जाता है।

प्रमुख जांचें

टीबी के बैैक्टीरिया की जांच के लिए स्किन टैस्ट, स्प्यूटम माइक्रोस्कोपी, कल्चर टैस्ट के अलावा चेस्ट एक्स-रे भी करते हैं।

उद्देश्य- मरीज घटें

इस वर्ष मनाए जा रहे विश्व टीबी दिवस की थीम विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘यूनाइट टू एंड टीबी: लीव नो वन बिहाइंड’ रखी है। इसका उद्देश्य विश्वभर के हर व्यक्तिको इस बीमारी से जुड़ी जानकारी के बारे में जागरूक कराना और साफ-सफाई को ध्यान में रखते हुए रोग से जान गंवाने वालों की संख्या कम करना है।

ब्रेन टीबी का गंभीर अवस्था में पता चलता है

ते ज सिरदर्द, गर्दन में झटका, धुंधला दिखाई देने के साथ थकान, उल्टी या असमंजस की स्थिति बने तो ये लक्षण दिमाग में टीबी के हो सकते हैं। ब्रेन टीबी में लापरवाही बरतना घातक हो सकता है। आमतौर पर इसके लक्षणों की पहचान शुरुआत में न होकर गंभीर अवस्था में हो पाती है।

पहचान मुश्किल क्यों

सामान्यत: दिमाग के टीबी में लक्षणों की पहचान मुश्किल होती है। रोगी का इलाज न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ी समझकर चलता रहता है। यही कारण है कि टीबी की पहचान गंभीर अवस्था में हो पाती है। दिमागी परेशानी से जुड़े अन्य लक्षणों के अलावा व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने में तकलीफ होना, हर बात पर विचार करने में जरूरत से ज्यादा समय लगाना, कुछ विशेष परिस्थितियों में संवेदनशीलता लगभग खत्म होने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं।

इन्हें ज्यादा खतरा

फेफड़ों के टीबी के मरीजों में इसके दिमाग तक फैलने की आशंका ज्यादा रहती है। ऐसे मरीजों को समय पर इलाज या दवाओं का पूरा कोर्स लेना चाहिए। पहले से किसी रोग से पीडि़त, कमजोर इम्यूनिटी या संक्रमण, मधुमेह, किडनी फेल्योर, चार साल से कम उम्र के बच्चे, शराब पीने वाले व जिन्हें पहले भी टीबी हो चुकी है, उन्हें खतरा रहता है।

कैल्शियम जरूरी

दिमागी कार्यप्रणाली के अलावा रोग से लडऩे की क्षमता बढ़ाने के लिए मरीज को कैल्शियमयुक्त चीजें जैसे दूध या दूध से बने उत्पाद, मौसमी फल जैसे सेब, अनार, संतरा, अंगूर, तरबूज आदि खाने की सलाह देते हैं। खानपान में चाय, कॉफी , अचार या सॉस आदि से परहेज कराते हैं।