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विश्व के करीब 25 प्रतिशत टीबी के मरीज भारत में
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक दुनिया से टीबी अर्थात क्षय रोग को समाप्त करने को कहा है लेकिन भारत ने इस चुनौती को पांच वर्ष पूर्व 2025 तक ही पूर्ण खत्म करने का निश्चय किया है। वर्तमान में विश्व के करीब 25 प्रतिशत टीबी के मरीज भारत में हैं। टीबी के कारण होने वाली मृत्यु में से 25 से 30 प्रतिशत अपने देश में होती है। इस समस्या का बड़ा कारण है डीआरटीबी (ड्रग रेसिस्टेन्ट टीबी) है। इसको आम भाषा में बिगड़ी हुई टीबी भी कहते हैं। समय पर इलाज लेने से ये ठीक हो जाती है।
इनको खतरा: फेफड़ों, मस्तिष्क, लसिका ग्रन्थि, हड्डियों, पेट, जननांगों आदि की टीबी के मरीजों को डीआरटीबी हो सकती है।
क्या है डीआरटीबी
सामान्य टीबी के इलाज के दौरान लापरवाही से डीआटीबी होती है। जिस टीबी में उपचार के दौरान फस्र्ट स्टेज की कोई एक या अधिक दवाएं रोगी पर बेअसर हो जाती है। इसके कारण सामान्यत: टीबी के छह माह तक चलने वाले उपचार की अवधि बढ़ जाती है व सेकंड स्टेज की दवाएं लेते हैं।
लक्षण और जांच
इसके लक्षण सामान्य टी.बी. के जैसे होते है। इसमें खांसी, बलगम, बुखार, रात के समय पसीना आना, छाती में दर्द, मुंह से खून आना प्रमुख है। सामान्य टीबी के रोगी को डीआरटीबी होने का अंदेशा होने पर उसकी जांच की जाती है। फेफड़ों की टीबी वाले रोगी का बलगम व अन्य अंगों की टीबी रोगियों का अंग विशेष के आधार पर द्रव्य या ऊतक का सैंपल लेकर सीबीनॉट (जीन एक्सपर्ट) जांच के लिए भेजते हंै।
9-11 माह तक इलाज
डीआरटीबी रोगी की काउंसलिंग के बाद सामान्यत: 9 से 11 माह तक इलाज चलता है। गर्भवती महिलाओं का 24-27 माह तक उपचार होता हैं। दवा दिन में दो बार लेनी होती है। कई बार दवा का दुष्प्रभाव भी हो सकता है। रोगी एवं परिजनों की भी काउंसलिंग की जाती है। रोगी को भोजन में ज्यादा प्रोटीन (चना, दाल व दूध) लेना चाहिए।
डॉ. विनोद कुमार गर्ग, क्षय व श्वास रोग विशेषज्ञ
Published on:
17 Apr 2019 10:53 am
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