
तीन साल तक नियमित दवा लेने से पूरी तरह ठीक हो सकती है यह बीमारी।
मिर्गी का सटीक इलाज प्रत्यक्षदर्शी द्वारा बताए गए विवरण व हिस्ट्री पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें यह पहचानना मुश्किल होता है कि यह ट्रू सीजर (मिर्गी) है या फिर स्यूडो सीजर (हिस्टीरिया)। इसमें तकनीक अहम भूमिका निभा सकती है। ऐसी ही एक तकनीक है मोबाइल फोन जिससे डॉक्टर मिर्गी रोग की पहचान आसानी से कर सकते हैं। अगर किसी मरीज को दौरा पड़े तो तुरंत मोबाइल पर उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कर लेने से इलाज में सहूलियत हो जाती है। मिर्गी पूरी तरह ठीक हो सकती है बशर्ते इसकी पहचान समय पर हो व मरीज डॉक्टर द्वारा बताई दवाइयां नियमित लेते रहें। आइये जानते हैं इस रोग से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में...
क्या है मिर्गी -
मस्तिष्क में सूूचनाओं के आदान-प्रदान के दौरान विद्युत प्रवाह अचानक असामान्य रूप से बढ़ जाए तो मांसपेशियों में अनियंत्रित हरकतें दिखने लगती हैं। इसे फिट आना या सीजर कहते हैं। बार-बार सीजर आने से यह मिर्गी का रूप धारण कर लेता है।
दौरा आने पर क्या करें, क्या न करें -
मरीज को किसी एक साइड करवट से लेटा दें, कपड़े ढीले कर दें, शरीर को दबाएं नहीं, तलवे न रगड़ें, प्याज, जूते, चप्पल, मोजे आदि न सुंघाएं। मुंह में दवा या कोई अन्य चीज जबरदस्ती न डालें, इससे मरीज के दांत टूटने, ब्लीडिंग या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। चेहरे पर पानी के छींटे भी न मारें। भीड़ इकट्ठी न होने दें। आमतौर पर कुछ मिनटों में मरीज खुद ही सामान्य हो जाता है।
वीडियो रिकॉर्डिंग -
किसी व्यक्ति को मिर्गी रोग होने की आशंका हो तो उसके परिजनों, दोस्तों आदि को चाहिए कि वे मोबाइल से दौरों की वीडियो रिकॉर्डिंग कर लें व डॉक्टर को दिखाएं। इससे वे आसानी से पता लगा सकेंगे कि यह ट्रू सीजर है या स्यूडो सीजर। इससे रोग की पहचान व इलाज में मदद मिल सकती है।
वीडियो ई.ई.जी -
इसमें मशीन से मस्तिष्क की ई.ई.जी व वास्तविक शारीरिक क्रियाओं की 2 घंटे की वीडियो रिकॉर्डिंग होती है। इससे ई.ई.जी के विश्लेषण में मदद मिलती है।
एम्बुलेटरी ई.ई.जी -
यह मुश्किल व जटिल मामलों में होती है। इसमें 24 घंटे तक की ई.ई.जी रिकॉर्ड की जाती है। इस दौरान मरीज दिनचर्या के कार्य कर सकता है।
एम.आर.आई -
यह रुटीन जांच है। एपीलेप्सी प्रोटोकॉल का उपयोग कर एम.आर.आई जांच से मस्तिष्क के विकारों को पहचानने में मदद मिलती है।
मरीज ध्यान रखें -
रात में 7 व दिन में 1 घंटे की नींद जरूर लें। 6 माह में एक बार भी दौरा न आने पर ही ड्राइविंग करें। बाइक चलाते समय हेलमेट पहनें। ऐसा कोई व्यायाम या खेल न खेलें जिनसे सिर में चोट लगने का खतरा हो। दवा व खाना समय पर लें।
दौरा पड़े तो स्प्रे करें दवा -
मिर्गी के उपचार के लिए कई दवाएं, स्प्रे व इंजेक्शन उपलब्ध हैं। लेकिन दौरा आने की स्थिति में डॉक्टर द्वारा निर्देशित मात्रा से स्प्रे करना मददगार साबित होता है।
शल्य क्रिया -
ऑपरेशन की जरूरत महसूस होने पर रोग की सही पहचान में इनवेजिव ई.ई.जी, स्पेक्ट, पैट स्कैन व एंजिओग्राफी सहायक होती हैं।
रोग के प्रकार -
मिर्गी किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को हो सकती है। इसके कारण व प्रकार अलग-अलग होते हैं।
जनरलाइज्ड टोनिक-क्लोनिक सीजर : इसमें मरीज बेहोश हो जाता है। मुंह से झाग निकलने लगता है। हाथ-पांव ऐंठ जाते हैं। इसका दौरा पूरे शरीर में पड़ता है।
सिंपल पार्शियल सीजर : शरीर के सिर्फ एक हिस्से में झटके आते हैं जैसे हाथ, पैर, चेहरे आदि।
कॉम्प्लेक्स पार्शियल सीजर: यह शरीर के एक हिस्से में ही होता है। मरीज यदि अखबार पढ़ रहा हो तो दौरा आने पर उसे उल्टा करके पढ़ने लगता है। इसमें बेहोशी नहीं आती, हाव-भाव बदल जाते हैं।
मायोक्लोनिक सीजर : इसका दौरा बचपन से किशोरावस्था तक आता है। बार-बार बच्चे के हाथ से ब्रश गिरना, दूध पीते समय गिलास छूट जाना आदि इसके लक्षण हैं।
एबसेंस सीजर : बच्चा कुछ देर के लिए दिमागी रूप से अनुपस्थित हो जाता है- जैसे लिखते-लिखते दो चार लाइनें छोड़ देना आदि।
मिर्गी कई तरह की होती है, लेकिन लोग सिर्फ बड़ी मिर्गी यानी जनरलाइज्ड टोनिक-क्लोनिक सीजर के बारे में ही जानते हैं। इसके अलावा ऐसी कई प्रकार की मिर्गी है जिसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। इसके इलाज के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि मिर्गी किस प्रकार की है, क्योंकि मरीज को दवाई उसके हिसाब से ही दी जाती है।
Published on:
01 Apr 2019 03:13 pm
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