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पितृ पक्ष 2018 : इस बार 16 दिनों के हैं पितृ पक्ष, ऐसे करें पिंडदान

पूर्वजों की मृत्यु की तारीख न पता होने पर पितृ पक्ष पर इस तरह करें श्राद्ध प्रक्रिया, मिलेगा पुण्य फल

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tarpan

पितृ पक्ष 2018 : इस बार 16 दिनों के हैं पितृ पक्ष, ऐसे करें पिंडदान

नई दिल्ली। यूं तो पितृ पक्ष 15 दिनों के होते हैं, लेकिन इस साल ये 16 दिनों के होंगे। इसकी शुरुआत आज से हो रही है। हालांकि आज पूर्णिमा श्राद्ध है, जबकि प्रतिपदा 25 सितंबर को है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान बहुत आवश्यक होता है। तो क्या है इसकी प्रक्रिया और किस तिथि पर करें श्राद्ध आइए जानते हैं।

1.इस बार पितृ पक्ष 24 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। इसे पूर्णमा श्राद्ध कहते हैं। जबकि प्रतिपदा श्राद्ध 25 सितंबर को होगी। इसी तरह 26 सितंबर को द्वितीय श्राद्ध, 27 सितंबर को तृतीय श्राद्ध, 28 सितंबर को चतुर्थी श्राद्ध, 29 सितंबर को पंचमी श्राद्ध, 30 सितंबर को षष्ठी श्राद्ध, 1 अक्टूबर को सप्तमी श्राद्ध, 2 अक्टूबर को अष्टमी श्राद्ध, 3 को नवमी श्राद्ध, 4 अक्टूबर को दशमी श्राद्ध, 5 अक्टूबर को एकादशी श्राद्ध, 6 अक्टूबर को द्वादशी श्राद्ध, 7 अक्टूबर 2018 को त्रयोदशी श्राद्ध और 8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या व महालय अमावस्या है।

2.पितृ पक्ष की प्रक्रिया को श्राद्ध और तर्पण भी कहते हैं। ये अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ती है। इसकी शुरुआत प्रतिपदा तिथि से होती है। जबकि समाप्ति अमावस्या पर होती है।

3.पितृ पक्ष पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। मगर इसके कुछ नियम होते हैं। इसके तहत अगर घर में किसी रिश्तेदार या परिवार के सदस्य की अकाल मृत्यु (किसी दुर्घटना में मृत्यु व आत्महत्या) हुई हो तो उन्हें पितृ पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए।

4.अगर किसी के पिता की मृत्यु हो गई हो तो उन्हें अष्टमी तिथि को तर्पण करना चाहिए। जबकि माता के देहान्त होने पर तर्पण की प्रक्रिया नवमी तिथि को करनी चाहिए।

5.अगर आप किसी साधु-संत या अपने गुरू का श्राद्ध कर रहे हैं तो ये द्वादशी के दिन किया जाना चाहिए। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलने के साथ उनकी आप पर कृपा होगी।

6.अगर किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो वे श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन यानि अमावस्या को तर्पण कर सकते हैं। इस दिन को सर्व पित्र श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन आप किसी भी पितर का श्राद्ध कर सकते हैं।

7.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध क्रिया किसी तीर्थ स्थान, संगम व नदी के पास जाकर करना अच्छा माना जाता है। यदि ये संभव न हो तो आप घर पर खुद व किसी पंडित की निगरानी में पूजा कर सकते हैं।

8.श्राद्ध क्रिया के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा सांसारिक मोह माया से अलग नहीं हो पाती। इसलिए वह प्रेत लोक में भी भटकती रहती है। आत्मा को पितृलोक भेजने के लिए पिंडदान (सपिंडन) करना चाहिए। पिंडदान में पके चावल, आटा, घी एवं तिल को मिलाकर उसके पांच पिंड बनाने चाहिए।

9.गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के तेरह दिन बाद शरीर से निकली आत्मा यमनपुरी पहुंचने के लिए निकलती है। ये भूख और प्यास से ग्यारह महीने तक भटकती है। फिर बारहवें महीने में वह यमनपुरी (यमराज के दरबार) पहुंचती है। इसलिए माना जाता है कि तर्पण व पिंडदान से आत्मा को संतुष्टि मिलती है।

10.पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध क्रिया पुरूषों द्वारा ही किया जाना चाहिए। इसे पुत्र, पोता, नाती, भाई, भतीजा, चाचा के लड़के एवं खानदान की सात पुश्ते कर सकती हैं।