
जेल का नाम सुनते ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी सलाखों के पीछे जाने से डरता है, लेकिन देश में एक ऐसा भी जेल है जहां लोग खुशी से जाना चाहते हैं। इसके लिए वे पैसे तक चुकाने को तैयार है। इस जेल में कोई लग्जरी सुविधाओं के न होने के बावजूद लोग कैदी बनने को तैयार है। तो क्या है इसकी वजह आइए जानते हैं।

यह जेल तेलंगाना के मेढ़क क्षेत्र में बना हुआ है। जिसका नाम 'संगारेड्डी जेल' ये अपनी लंबी—लंबी दीवारों, काल कोठरियों और पुलिस के कड़े सुरक्षा इंतजामों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस जेल की और एक पहचान है वो है यहां का जीवन। लोग इस जेल में कैदियों की तरह रहने आते हैं।

ये एक ऐसा अनोखा जेल संग्राहलय है जहां कैदियों की हथकड़ी, उनके कपड़े, जंजीरे, बर्तन आदि देखने को मिलेंगे। यहां उन सारी चीजों का संग्रह किया गया है जिनकी एक जेल में जरूरत होती है।

लोग यहां कैदी बनकर दिन बिताना चाहते हैं। इसके लिए वे रुपए भी चुकाते हैं। यहां वे मुजरिमों की तरह दिन गुजारते हैं। यहां उन्हें असली कैदियों की तरह ही काम करना पड़ता है। साथ ही उन्हें दिया जाने वाला खाना और कपड़े भी वही होते हैं जो जेल की ओर से दिया जाता है। यहां कोई सुख—सुविधाएं नहीं मिलती है।

ये एक पर्यटन स्थल के तौर पर बन गया है। इसके लिए एक टिकट काउंटर भी बनाया गया है। यहां जेल के अंदर जाने के लिए 500 रुपए का टोकन लेना होता है। इस दौरान आपको नियमों के पालन के लिए आपको एक फॉर्म भरना होता है।

यहां आने पर आपका सामान जमा कर लिया जाता है और जेल से जुड़े जरूरी सामान दिए जाते हैं। इसमें खाने के बर्तन, कम्बल, चादर आदि दिए जाते हैं। जेल में आने के बाद उन्हें श्रम भी करना पड़ता है।

साल 2016 में इसके पास एक और जेल बना दिया गया है। इसलिए इसमें रह रहे कैदियों को दूसरे जेल में शिफ़्ट कर दिया गया है। अब पुरानी जेल को पूरी तरह से म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है।

अब इस म्यूजियम में धीरे—धीरे सुविधाओं को शामिल किया जा रहा है। अब एक मसाज क्षेत्र भी बनाया गया है। इस अनोखे जेल म्यूजियम में दिन गुजारने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी कई लोग आ रहे हैं।

ये जेल करीब 225 साल पुरानी है। किसी जमाने में ये एक खौफनाक जेल हुआ करता था। मगर बाद में इसकी हालत खराब हो गई। तब इसे दोबारा से ठीक कराकर एक म्यूजियम बनाया गया है।

इस जेल का निर्माण 'सालरजंग' के समय लगभग सन् 1796 में करवाया गया था। 1947-48 के समय इस जेल के प्रमुख एक 'दारोगा' थे। उन्होंने इस अनोखे कॉन्सेप्ट को लाने की कोशिश की थी। ये जेल करीब तीन एकड़ में फैला हुआ है।