script

यहां जमीन से निकला शिवलिंग, खुद नाग-नागिन करते हैं पूजा

locationनई दिल्लीPublished: Jan 08, 2019 12:53:38 pm

Submitted by:

Soma Roy

संगमेश्वर मंदिर में मौजूद शिवलिंग अपने आप जमीन के अंदर से निकला है, ये बहुत चमत्कारी है

sangmeshwar mahadev

यहां जमीन से निकला शिवलिंग, खुद नाग-नागिन करते हैं पूजा

नई दिल्ली। भगवान भोलेनाथ के दुनिया भर में भक्त हैं। उनके चमत्कारों के किस्से सुनकर सब हैरान हो जाते हैं। शिव की यही महिमा पिहोवा के संगमेश्वर महादेव मंदिर में देखने को मिलती है। बताया जाता है कि यहां खुद नाग-नागिन का जोड़ा भोलेनाथ की आराधना करता है।
1.शिव जी का यह चमत्कारिक मंदिर पिहोवा से करीब चार किलोमीटर दूर अरुणाय गांव में स्थित है। इसका नाम संगमेश्वर महादेव है।

2.इस मंदिर की खासियत है कि यहां स्थापित शिवलिंग की उत्पत्ति अपने आप भूमि से हुई है। स्थानीय लोगों के अनुसार बहुत साल पहले जमीन के अंदर से एक शिवलिंग निकला हुआ पाया गया था।
3.इस मंदिर में त्रयोदशी के दिन का विशेष महत्व है। लोगों का मानना है कि यहां दर्शन करने एवं इस दिन पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

4.ये मंदिर इस वजह से भी खास है कि यहां शिव जी पूजा करने के लिए नाग—नागिन का जोड़ा आता है। ऐसी घटना साल में एक बार होती है।
5.स्थानीय लोगों का मनाना है कि नाग—नागिन यहां आकर भोलेनाथ की पूजा करते हैं और चुपचाप चले जाते हैं। वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

6.शिव जी का ये मंदिर अरुणा नदी के किनारे स्थित है। ये नदी में अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि सरस्वती जी को श्राप से मुक्ति पाने के लिए इस नदी ने अहम भूमिका निभाई थी।
7.पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ के बीच अपनी अहमियत दिखाने की होड़ लगी थी। तब विश्वामित्र ने अपने प्रभाव से सरस्वती को उस जगह ले आए थे। इसी दौरान उन्होंने ऋषि वशिष्ठ को मारने के लिए शस्त्र उठाया था, लेकिन देवी सरस्वती ने वशिष्ठ मुनि को बचाने के लिए उन्हें बहाकर ले गई थी।
8.देवी सरस्वती के इस कार्य से नाराज होकर ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें श्राप दे दिया। उन्होंने देवी सरस्वती को मलिन होने का श्राप दिया था।

9.इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भोलेनाथ का ध्यान किया था। शिव जी ने देवी सरस्वती को इसका उपाय बताया। इसके तहत अरुणा नदी के किनारे करीब 88 हजार ऋषियों ने जप किया था। जिससे सरस्वती और अरुणा नदी का संगम हुआ।
10.दोनों नदियों के इसी मिलन के चलते इस मंदिर का नाम संगमेश्वर महादेव पड़ा। लोगों का मानना है कि जिस तरह से शिव जी ने देवी सरस्वती के कष्ट दूर किए हैं, वैसे ही वो भक्तों की भी मुसीबतें दूर करते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो