
बच्चों में सोशल नेटवर्किंग, गैजेट्स और तकनीक की बढ़ती दीवानगी ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है। लेकिन सिर्फ पैरेंट्स ही नहीं, इन तकनीकों व गैजेट्स से जुड़ी कंपनियां भी अपने उत्पादों के प्रति खासकर बच्चों में बढ़ती लत को लेकर चिंतित हैं। डर इस बात का कि कहीं हमारे बच्चे इस वर्चुअल दुनिया में इतना न खो जाएं कि वो वास्तविक जिंदगी के संघर्ष और परेशानियों का सामना ही न कर पाएं।
टेक्नोलॉजी ने की बच्चों के लिए पैदा की दिक्कतें
पिछले वर्ष जनवरी में एप्पल कंपनी के दो शेयर होल्डर ग्रुप ने बच्चों में आईफोन की लत को देखते हुए इस ओर ध्यान देने को कहा। गूगल के हाल के डवलपर प्रोग्राम कॉन्फ्रेंस में स्मार्टफोन और तकनीक के बेहतर ढंग से नियंत्रित उपयोग पर जोर दिया गया। यहां कहना उचित होगा कि हमारी पीढ़ी के टीनएजर्स और युवाओं को यह समझना होगा कि तकनीक से उत्पन्न लतों पर नियंत्रण रखना भी उतना ही जरूरी है जितना कि अच्छी डिजिटल सिटीजनशिप को बढ़ावा देना।
ध्यान भटकाने वाली चीजें
डेढ़ दशक पहले बच्चों के होमवर्क, घर के सामान्य काम, प्रोजेक्ट आदि में बाधा डालने वालों में उनके भाई-बहन, पालतू जानवर, लंच या डिनर और दिन में सोने जैसे बहुत ही सामान्य कारण थे। आज बच्चे इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, फोर्टनाइट, यू-ट्यूब, नेटफ्लिक्स और सामान्य मैसेजिंग ऐप्स के कारण अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
एकाग्रता की दिक्कत
वर्तमान में स्कूल के ब्लैक बोर्ड्स डिजिटल बोर्ड में और कक्षाएं एज्यूसेट में तब्दील हो गई हैं। क्लास में टीचर इन तकनीकों से पढ़ाते हैं तो बच्चे अपने डिवाइस पर पढ़ते हैं। यू-ट्यूब और स्नैपचैट के आदी बच्चों को टैब या कंप्यूटर पर क्लासवर्क या होमवर्क करने में एकाग्रता की दिक्कत आती है। छात्रों को टीचर के साथ संवाद के बावजूद सीखने में परेशानी होती है। 2015 में अलबर्टा में 1800 टीचर्स एवं 400 स्कूल प्रिंसीपल्स पर हुए सर्वे में 67 फीसदी ने माना था कि क्लास में डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और इनसे ध्यान भटकने के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है।
Published on:
27 Jan 2021 07:52 pm
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