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मोक्षनगरी गया जाने से पहले अयोध्या में पिंड दान का है बड़ा महत्व

धार्मिक नगरी अयोध्या में सरयू के घाट पर तर्पण के लिए उमड़ी भारी भीड़

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मोक्षनगरी गया जाने से पहले अयोध्या में पिंड दान का है बड़ा महत्व

अयोध्या : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की नगरी में वर्ष भर पर्व त्यौहार के मौके पर शुभ कार्य व धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं लेकिन पितृपक्ष लगते ही वर्ष में 15 दिन के लिए यह सभी शुभ कार्य रुक जाते हैं. पितृ पक्ष के मौके अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करने का कार्य करते हैं. पितृ पक्ष पर वैसे तो गया में तर्पण और श्राद्ध का महत्व माना जता है लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार धार्मिक नगरी अयोध्या में भी अपने पूर्वजों को जल से तर्पण देने और श्राद्ध करने से आत्मा को शान्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होता है. इसी मनोकामना को लेकर लोग सरयू नदी में पिंड दान करने अपने दिवंगत माता पिता और पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए अयोध्या आते हैं.

अयोध्या सरयू घाट पर करें पिंड दान
अयोध्या में सरयू तट के किनारे पित्रो को जल से तर्पण तथा घाटों के किनारे ब्राह्मणों का भोजन कराकर श्राद्ध करने से पूर्वजो की आत्मा को शान्ति तथा परिवार में सुख शांति मिलता हैं.
पौराणिक मान्यता के अनुसार अयोध्या में दो प्रमुख ऐसे स्थान भरतकुंड व सहस्त्रधारा लक्ष्मण घाट हैं.क्यों कि सहस्त्रधारा लक्ष्मण घाट के पास ही भगवान लक्ष्मण ने अपना प्राण त्यागा था जब भगवान श्री राम को मालूम हुआ कि लक्ष्मण ने अपने प्राण त्याग दिया तो भगवान् श्री राम वहां पर गए और वहां पर गुरु वशिष्ठ ने ही कहा कि अब इनका शरीर तो नहीं है लेकिन अब उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करिए साथ ही उन्होंने यह भी कहा की आज से जो भी व्यक्ति इस स्थान पर पिंडदान करेगा उसके पूर्वजों की आत्मा की शांति मिलेगी और वह सीधे स्वर्ग में प्रस्थान करेंगे

पूर्वजों के शांति के लिए जल से देते हैं तर्पण

जगद्गुरु राम दिनेशाचार्य ने बताया कि वर्ष में भादौ माह के समाप्त होते ही पितृपक्ष की शुरुवात हो जाता हैं जो कि 15 दिनों तक रहता हैं इस पक्ष में लोग अपने मृत पूर्वजों के लिए तर्पण व श्राद्ध कर पिंड दान करते हैं. अयोध्या में पिण्ड दान करने से पूर्वजो को शान्ति मिलती है. सभी पूर्वज प्रेतयोनि से मुक्त कर होकर पृत्रयोनि में जाते हैं जो कि हमारे परिवार की रक्षा भी करते हैं.इसके साथ पूर्वजों की आत्मा को शान्ति के तर्पण भी किया जाता हैं. तथा बताया कि आज की इस आधुनिक युग में भी यह प्रथा चलती आ रही हैं |