2002 में भाई अफजाल की हार से बौखला गया था मुख्तार पूर्वांचल के जरायम की दुनिया में 30 सालों से अधिक समय से अपनी काली करतूतों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले माफिया मुख्तार अंसारी और पूर्व विधायक कृष्णानंद राय और उनके करीबी रहे बृजेश सिंह की दुश्मनी जगजाहिर रही है। इसमें 2002 के विधानसभा चुनाव ने आग में घी डालने का काम किया। चुनाव में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर कृष्णानंद राय से मुख्तार अंसारी का बड़ा भाई और पांच बार के विधायक रहे अफजाल अंसारी चुनाव हार गए थे।
पूर्वांचल में खूनी संघर्ष का है लंबा इतिहास उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में वर्चस्व के लिए खूनी संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है। साल 1996 और 1999 में गाजीपुर लोकसभा का चुनाव मनोज सिन्हा ने जीता था। दोनों ही चुनावों में मनोज सिन्हा का कृष्णानंद राय और उनके लोगों ने खुलकर समर्थन किया था। मुख्तार को यह बात पसंद नहीं आया। इस बीच नया मोड़ तब आया जब 2002 के विधानसभा चुनाव में गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से अफजाल अंसारी चुनाव हार गए।
मनोज सिन्हा के बढ़ते वर्चस्व से बौखलाया मुख्तार गाजीपुर में मनोज सिन्हा के बढ़ते वर्चस्व और कृष्णानंद राय की जीत से मुख्तार अंसारी खेमा बौखला गया। 2004 का लोकसभा चुनाव नजदीक आया तो खूनी संघर्ष एक बार फिर शुरू हुआ। फरवरी 2004 में कृष्णानंद राय के खास रहे अक्षय कुमार राय उर्फ टुनटुन पहलवान की गाजीपुर में सरेआम हत्या कर दी गई। 26 अप्रैल 2004 को कृष्णानंद राय के करीबी झिनकू की हत्या कर दी गई। फिर मोहम्मदाबाद रेलवे फाटक के समीप बीजेपी कार्यकर्ता शोभ नाथ राय की हत्या कर दी गई।
27 अप्रैल 2004 को दिलदारनगर में राम अवतार की गोली मार कर हत्या कर दी गई। लोकसभा चुनाव के बाद बाराचवर विकास खंड मुख्यालय पर कृष्णानंद राय के करीबी अविनाश सिंह पर अंधाधुंध फायरिंग की गई। अक्टूबर 2005 में एक मामले में अपनी जमानत रद्द करा कर मुख्तार अंसारी जेल चला गया था। इसके लगभग एक महीने बाद नवंबर 2005 में कृष्णानंद राय और उनके काफिले में शामिल 7 अन्य लोगों पर 500 राउंड से ज्यादा फायरिंग कर मौत के घाट उतार दिया गया था।
साल 2005 में हुई थी कृष्णानंद राय की हत्या 29 नवंबर 2005 गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद से तत्कालीन बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय समेत 7 लोगों को गोलियों से भून दिया गया था। कृष्णानंद राय पर 500 राउंड फायरिंग हुई थी। इस हमले में एके-47 का इस्तेमाल किया गया था। कृष्णानंद राय पड़ोस के सियारी गांव में जाने की तैयारी कर रहे थे। एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने के लिए उन्हें चीफ गेस्ट बनाया गया था। बगल के गांव जाना था। लिहाजा राय बेफिक्र थे। बुलेटप्रूफ गाड़ी घर में ही छोड़ दी थी। वह दूसरी गाड़ी से निकले। यह उनकी जिंदगी की आखिरी भूल साबित हुई थी।
जानें कैसे हुई थी कृष्णानंद राय की हत्या विधायक कृष्णानंद राय के भाई रामनारायण राय ने इस पूरी घटना पर कोर्ट में बयान दिया था। उन्होंने बताया था कि टूर्नामेंट का उद्घाटन करने के बाद कृष्णानंद राय शाम के करीब 4 बजे अपने गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना राय, रमेश राय, श्याम शंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह के साथ कनुवान गांव की ओर जा रहे थे। राम नारायण राय के अनुसार, वह खुद दूसरे लोगों के साथ कृष्णानंद राय की गाड़ी से पीछे चल रही गाड़ी में सवार थे।
बसनियां चट्टी गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर आगे जाने पर सिल्वर ग्रे कलर की एसयूवी सामने से आई। उसमें से 7-8 लोग निकले। उन्होंने एके-47 से फायरिंग करना शुरू कर दी। इसमें विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की मौत हो गई। मामला गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाना क्षेत्र के अंतर्गत दर्ज किया गया। पोस्टमार्टम में कृष्णानंद राय के शरीर से अकेले 67 गोलियां निकली थीं। यह घटना उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे सनसनीखेज राजनीतिक हत्याओं में दर्ज हो गई।
हत्या में आया मुन्ना बजरंगी का नाम कृष्णानंद राय के हत्या के समय मुख्तार अंसारी गाजीपुर जेल में बंद था। हत्या के वारदात को अंजाम देने वालों में मुख्तार अंसारी गिरोह के शूटरों में मुख्य रूप से अताउर रहमान उर्फ बाबू उर्फ सिकंदर, संजीव जीवा उर्फ माहेश्वरी, मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय विश्वास नेपाली और रिंकू तिवारी शामिल थे।