scriptवैश्विक क्षितिज पर राजनीति व धर्म के द्वंद्व का उत्तर है गोरखनाथ पीठ | Gorakhnath Mandir is milestone of Religion and political activities | Patrika News
गोरखपुर

वैश्विक क्षितिज पर राजनीति व धर्म के द्वंद्व का उत्तर है गोरखनाथ पीठ

ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 50वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धान्जलि सभा

गोरखपुरSep 18, 2019 / 01:04 am

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

gorakhnath mandir

Gorakhnath mandir

जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ ने राजनीति को धर्म के खुटें से बाँधा। महन्त दिग्विजयनाथ, महन्त अवेद्यनाथ एवं महन्त योगी आदित्यनाथ वैश्विक क्षितिज पर राजनीति और धर्म के द्वन्द्व के उत्तर हैं। दुनिया के राजनीति इतिहास में इस पीठ ने उस विशिष्ट परम्परा को प्रतिष्ठित किया है जो धर्म और राजनीति को सिक्के का एक पहलू मानती है। जो परम्परा राजनीति को भी लोक कल्याण का साधन मानती है।
अयोध्या से आए स्वामी वासुदेवाचार्य मंगलवार को गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 50वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धान्जलि सभा को संबोधित कर रहे थे।
स्वामी वासुदेवाचार्य ने कहा कि भारत की इस सनातन परम्परा के वैचारिक अधिष्ठान को इस पीठ ने वर्तमान युग में व्यवहारिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया है। मध्य युग से लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम तक व्याप्त धर्म, राष्ट्र और राजनीति को एक साथ साधने का प्रयत्न करने वाले ऋषियों की एक लम्बी परम्परा है। किन्तु वह परम्परा वर्तमान युग में आकर श्रीगोरक्षपीठ में आकार पाती है। इस मठ के पीठाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ आज राजनीति और धर्म के एकाकार होने के यदि प्रतिमान बने हैं तो उसका श्रेय युगपुरुष महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एवं राष्ट्रसन्त महन्त अवेद्यनाथ उन दृढ़ संकल्पों को जाता है जहां उन्होंने राष्ट्रधर्म को ही धर्म माना। महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एक क्रान्तिकारी थे। उन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में आधात्मिक पुट दिया। वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। जब देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को स्वीकार करने अथवा उस पर स्पष्ट मत रखने में शासन सत्ता संकोच कर रही थी, उन्होंने इस बात की स्पष्ट घोषणा की कि हिन्दुत्व ही भारत की राष्ट्रीयता है। भारत का विकास हिन्दुत्व के वैचारिक अधिष्ठान पर ही सम्भव है। आजाद भारत का पुनर्निर्माण उसकी संास्कृतिक विरासत पर ही करना होगा तभी स्वाभिमानी, स्वावलम्बी और सम्प्रव भारत खड़ा होगा। उन्होंने ज्ञान को कर्म में ढालने और कर्म को ज्ञान में ढालने की वह अद्भुत परम्परा प्रारम्भ की जिसे उनके उत्तराधिकारी पीठाधीश्वरों ने लोक मत का परिष्कार कर लोक जागरण कर भारत में जन-जन तक पहुॅचाया। महन्त अवेद्यनाथ महाराज द्वारा जनअभियान चलाकर महन्त दिग्विजयनाथ के वैचारिक अधिष्ठान को जनान्दोलन बना दिया गया और महन्त योगी आदित्यनाथ आज उसी जनान्देालन के प्रतिफल है। धारा 370 और 35 ए हटाकर केन्द्र की मोदी सरकार ने देश को एक करने में बड़ा काम किया है यह दोनों पूज्य महाराज के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
महंत दिग्विजयनाथ महराज महाराणा प्रताप की तरह सोचते थेः उमा भारती

पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने कहा कि वर्तमान युग में साधु-सन्तों को मठ-मन्दिरों से बाहर निकालकर देश और समाज के लिए काम करने का मार्ग इस पीठ ने दिखाया। मोदी-योगी देश के विकास पुरूष है। ये दो व्यक्ति नही बल्कि राष्ट्र के वैचारिक अधिष्ठान के प्रतिकूल है। इस पीठ के पीठाधीश्वरों को जन और धन का जीतना व्यापक समर्थन मिला उतना शायद ही किसी पीठ को मिला हो। लेकिन उस व्यापक जन समर्थन को इस पीठ ने राष्ट्र और समाज के हित में समर्पित कर दिया। इस पीठ के पीठाधीश्वर आध्यामिक परम्परा एंव ऊर्जा के प्रतिनिधि हैं। महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एवं महन्त अवेद्यनाथ महाराज इसी परम्परा के निर्माणकर्ता है। दिग्विजयनाथ को महाराणा प्रताप का वंशज बताते हुए कहा कि राष्ट्रहित में दिग्विजयनाथ जी महाराणा प्रताप जी की तरह ही सोचते थे। उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज राष्ट्र के उन नायकों में से हैं जिन्होंने न केवल अध्यात्मिक क्षेत्र से भारत को उन्नत किया अपितु भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी महती भूमिका निभाई। इनके अन्दर सिद्धान्त के प्रति जबरदस्त आक्रामकता दिखती थी। कभी भी सिद्धान्तों के प्रति इन्होंने समझौता नहीं किया। राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज सैद्धान्तिक विनयशीलता के प्रतिमूर्ति थे। किसी भी प्रकार की समस्या लेकर जो भी व्यक्ति उनके पास आता था वे उसकी समस्या का बिना किसी भेद-भाव के त्वरित निदान करते थे। यह एक सन्त ही कर सकता है। लोकसभा एवं विधानसभा में निष्पक्ष, नीडर आवाज बनी है श्रीगोरक्षपीठ। राजनीति का शुद्धिकरण करने का अभियान महन्त दिग्विजयनाथ जी ने चलाया जो अनवरत अबतक श्रीगोरक्षपीठ की महन्त परम्परा का हिस्सा बन चुकी है।
भारत को भारत बने रखने की कुुंजी सनातन धर्म व संस्कृति में: योगी आदित्यनाथ

अध्यक्षता कर रहे मुख्यमंत्री गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने राष्ट्रधर्म को सभी धर्मो से ऊपर माना। उन्होंने माना कि भारत को यदि भारत बने रहना है तो इसकी कुन्जी सनातन हिन्दू धर्म एवं संस्कृति में है। महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज आनन्दमठ की सन्यासी परम्परा के वे साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का आरोप लगा। चैरी-चैरा काण्ड में महन्त दिग्विजयनाथ को आरोपित किया गया। ये घटनायें इस बात की प्रमाण है कि गोरक्षपीठ ने उस सन्यासी परम्परा का अनुशरण किया जो मानती रही है जो राष्ट्रधर्म ही हमारा धर्म है। राष्ट्र की रक्षा भी सन्यासी का प्रथम कर्तव्य है। गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वरों द्वारा प्रारम्भ की गई यह परम्परा आगे भी निरन्तर चलती रहेगी। श्रीगोरक्षपीठ द्वारा संचालित सभी संस्थायें जहाॅ भी जो भी अच्छा हो उसके साथ खड़ी हो और उसके साथ चलें। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का पूरा श्रेय महन्त दिग्विजयनाथ महाराज को है। महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की पहल और उनके अहर्निश प्रयत्न से ही गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना हो सकी। महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने यदि अपने दो महाविद्यालयों सहित पूरी सम्पत्ति विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु दान न की होती तो गोरखपुर में विश्वविद्यालय की सपना अधूरा रहता। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने महन्त जी के निर्देशन पर अपना पूरा योगदान दिया और आज गोरखपुर उच्च शिक्षा का एक प्रतिष्ठित केन्द्र बना हुआ है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् तबसे अबतक गोरखपुर विश्वविद्यालय को अपनी संस्थाओं की तरह ही संरक्षित एवं सवंर्धित करती रही है।
उन्होंने कहा कि समर्थ भारत और समृद्धि की पूरी परिकल्पना भारत के संविधान में निहित है। भारत के अनेक मनीषियों एवं बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने भारत का जो संविधान हमें दिया है वह उसी भारत के निर्माण का आधार है जैसा भारत हम चाहते है। भारत की ऋषि परम्परा एवं भारत के संत परम्परा ने जिस भारत की परिकल्पना प्रस्तुत की है उसे हमे भारत के संविधान में देख सकते है। भारतीय संस्कृति में छुआछूत, ऊॅचनीच जैसी किसी भेदभाव को स्थान प्राप्त नही है और यही बात भारत का संविधान भी कहता है। श्रीगोरखनाथ मन्दिर में सभी पंथों के योगी-महात्मा रहते है। दोनों ब्रह्मलीन महन्त जी महाराज ने हिन्दुत्व को ही श्रीगोरखनाथ मन्दिर का वैचारिक अधिष्ठान बनाया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज गोरखपुर में जो कुछ भी गौरव प्रदान करने वाली चीजें हैं उनमें पूज्य दोनों ब्रह्मलीन सन्तों का सर्वाधिक योगदान रहा। जब वाराणसी में विश्वनाथ जी के मन्दिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था तब महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ने अपने आन्दोलन के माध्यम से मन्दिर का दरवाजा सबके लिए खुलवाया। इसी प्रकार मेरे गुरूदेव राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने मीनाक्षीपुरम् में दलितों को सम्मान दिलाने के लिए आन्दोलन किया तथा उनके साथ बैठकर सहभोज कर हिन्दू समाज को जोड़ने का काम किया।
पीठाधीश्वरों के शरीर बदले, किन्तु प्राण और आत्मा वहीं रहीः स्वतंत्रदेव

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष में आध्यात्मिक शक्ति का जागरण करने में महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रहीं है। आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का आह्वान राष्ट्रधर्म बन गया। आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के साथ इस पीठ के पीठाधीश्वरों ने कभी समझौता नही किया। पीठाधीश्वरों के शरीर बदले, किन्तु प्राण और आत्मा वहीं रही। परिणामतः महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज और अब उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज प्रखर राष्ट्रवाद के ध्वजवाहक बनें। इस पीठ के भी वैचारिक अधिष्ठान को विचलित करने के अनेक प्रयत्न हुए। सत्ता के इस षड्यंत्रों को इस पीठ ने डटकर सामना किया और भारत कि उस सन्यासी परम्परा को आगे बढ़ाया जो अपने वैचारिक अधिष्ठान के लिए ही जीती-मरती है।
महन्त दिग्विजयनाथ का नाम आते ही गोरखपुर का विकास दिखताः रमापति शास्त्री

यूपी के समाज कल्याण मंत्री व गोरखपुर के प्रभारी मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा कि गोरक्षपीठ की यह श्रद्धांजलि सभा इसलिये विशिष्ट है कि संसद और विधान सभाओं में राष्ट्र और समाज से सम्बन्धित जिन महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा नही हो पाती वह विषय इस श्रद्धांजलि सभा में विचार किये जाते है। उन्होंने कहा कि युगपुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज का नाम आते ही गोरखपुर का विकास दिखता है। मदन मोदन मालवीय इन्जीनियरिंग कालेज, गोरखपुर विश्वविद्यालय, पालीटेक्निक, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की संस्थाएँ दिखाई देती है। हिन्दुत्व का मानसम्मान दिखता है। राष्ट्र पर मर-मिटने वालों की फौज खड़ा करने का जज्बा दिखता है। भारत-नेपाल सम्बन्धों की मिठास दिखती है। ऐसे युगपुरुष को ही देश और समाज याद करता है।

महाराणा प्रताप शिक्षा के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि शिक्षा, चिकित्सा एवं सेवा के क्षेत्र में श्रीगोरक्षपीठ ने जो प्रतिमान खड़ा किया है वह पूरे देश में कहीं दिखाई नही पड़ता। धर्म, आध्यात्म और राष्ट्रीयता को एकसाथ जोड़कर शिक्षा और सेवा के माध्यम से इस लक्ष्य को पूरा करने का सुनियोजित प्रयत्न महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ने प्रारम्भ किया था। लगातार तीन पीढ़ी तक शिक्षा, चिकित्सा एवं सेवा का जो प्रभावपूर्ण ढांचा महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने खड़ा किया है इसकी दूरदृष्टि महन्त दिग्विजयनाथ महाराज जी ने दी थी। गोरक्षपीठ ने ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज के समय से ही धर्म के साथ-साथ राष्ट्रीय एवं सामाजिक मुद्दों पर हिन्दू समाज का नेतृत्व किया है।
जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी राघवाचार्य महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ हमारे प्रेरणास्रोत है। ब्रह्मलीन दोनों महन्त महाराज केवल समाज के लिए नहीं धर्माचार्यो के लिए भी एक आदर्श है। नाथ सम्प्रदाय के होते हुये भी पंथ अथवा अपने सम्प्रदाय से उपर उठकर उन्होंने हिन्दुत्व के लिए कार्य किया और राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की धुरी बने।
श्रद्धान्जलि सभा में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की सभी संस्थाओं की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की गई। डाॅ. शैलेन्द्र प्रताप सिंह, डाॅ. प्रदीप राव, डाॅ. मांगलिका त्रिपाठी, अजीथा डीएस, प्रो. सुमित्रा सिंह, डाॅ. अरविन्द कुमार चतुर्वेदी, डाॅ. अरूण कुमार सिंह, उर्मिला शाही, रंजना सिंह, शशिप्रभा शुक्ला, सुधीर कुमार सिंह, मेजर पाटेश्वरी सिंह, कलाधर पौड़याल, गोपल कुमार वर्मा, बसंत ंिसंह, शशिप्रभा सिंह, डाॅ.चन्द्रजीत यादव, अश्वनी कुमार सिंह, रमेश उपाध्याय, अजीत श्रीवास्तव, डाॅ. डीपी सिंह, बिग्रेडियर केपीबी सिंह आदि ने अपनी-अपनी संस्थाओं की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का प्रारम्भ दोनों ब्रह्मलीन महाराज के चित्र पर पुष्पांजलि से हुआ। वैदिक मंगलाचरण डाॅ रंगनाथ त्रिपाठी, श्रीगोरक्षाष्टक पाठ पुनीष पाण्डेय, दिग्विजय स्त्रोत पाठ शिवांश मिश्र ने किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो