कान में कुंडल है योगी की पहचान
ऐसी मन्यता है कि ‘शिव है तो योग है’, ‘योग है तो योगी है’, ‘योगी है तो शक्तियां हैं’। इन्हीं शक्तियों से शुरू हुआ नाथ पंथ। इस पंथ का भगवान शिव से गहरा जुड़ाव है। कहा जाता है गुरु गोरखनाथ भी भगवान शिव का ही अवतार है। गोरखनाथ मंदिर में पहुंचने के बाद वहां के पुजारी योगी सोमनाथ नेे बताया, “योगी बनने के लिए कानों में कुंडल होना सबसे जरूरी है। योगी के कानों में कुंडल के साथ ऊपर से नीचे तक कान भी काटे रहते हैं और कानों में बड़े-बड़े छेद रहते हैं।”
कान छेदने की प्रक्रिया सबसे खास
योगी सोमनाथ ने आगे बताया, “नाथ बनने के लिए कान छेदने की प्रक्रिया सबसे खास होती है। कान फाड़ने का मतलब कष्ट सहन की शक्ति होती है। नाथ संप्रदाय में कान में बाली पहनने के लिए सबसे पहले एक खास पोजीशन में बैठना होता है। फिर कान को छेदा नहीं जाता बल्कि, चीरा जाता है। चीरने के बाद उस पर भभूत लगा देते हैं।”