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गुवाहाटी

मानवता की ऐसी अद्भुत मिसाल कायम करने से पहले हजार बार सोचना पड़ेगा

गरीब ठेलेवाले ( Poor ricksha puller human story ) गौतम दास ने ऐसा काम कर दिखाया जिसे करने से पहले सभी आय वर्ग के लोग हजार ( Think thousand times about this kind of humanity ) बार सोचेंगे। ( Pain of Poors ) दूसरों के दर्द को देखकर गौतम की इंसानियत न सिर्फ जाग उठी बल्कि जीवन भर की खून-पसीने की गाढ़ी ( Charity life’s income ) कमाई गरीबों के लिए लगा दी।

गुवाहाटीApr 13, 2020 / 06:42 pm

Yogendra Yogi

मानवता की ऐसी अद्भुत मिसाल कायम करने से पहले हजार बार सोचना पड़ेगा

मानवता की ऐसी अद्भुत मिसाल कायम करने से पहले हजार बार सोचना पड़ेगा

अगरतला (त्रिपुरा): ( Assam News ) गरीब ठेलेवाले ( Poor ricksha puller human story ) गौतम दास ने ऐसा काम कर दिखाया जिसे करने से पहले सभी आय वर्ग के लोग हजार ( Think thousand times about this kind of humanity ) बार सोचेंगे। दूसरों के दर्द को महसूस करना अलग बात है और उस दर्द को कम ( Pain of Poors ) या खत्म करने के लिए अपनी भूमिका सुनिश्चित करना बिल्कुल अलग बात है। बस दूसरों के इसी दर्द को देखकर गौतम की इंसानियत न सिर्फ जाग उठी बल्कि जीवन भर की खून-पसीने की गाढ़ी ( Charity life’s income ) कमाई गरीबों के लिए लगा दी। यह बात दीगर है गौतम भी उन्हीं गरीबों में से एक है।

खुद भी गरीब है
त्रिपुरा का यह ठेलेवाला ने गरीब लोगों की मदद के लिए आगे आया और मानवता की मिसाल पेश की। गौतम दास (51) नामक ठेलेवाला हर रोज 200 रुपए कमाता है। उसके पास दस हजार रुपए की बचत थी। कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन शुरु हुआ तो हर रोज कमाने-खानेवालों के सामने जैसे पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन दास ने अपनी बचत से आठ हजार रुपए खर्च कर गरीबों को खाने का सामान मुहैया कराया।

जमापूंजी से गरीबों को भोजन
दास अगरतला के पास ही स्थित साधुटिला में एक कच्चे मकान में रहता है। उसकी पत्नी का देहांत कुछ साल पहले हो गया था। उसके बच्चे अलग रहते हैं। दास का कहना है कि जब लॉकडाउन शुरु हुआ तो मैं अपने से दूसरों की तुलना में ज्यागा भाग्यशाली माना क्योंकि मेरे पास तो कुछ जमा पूंजी थी। तभी मैंने इससे उन लोगों की मदद की ठानी जो मेरी तरह सौभाग्यशाली नहीं थे। लॉकडाउन के पहले मेरी रोज की कमाई लगभग दो सौ रुपए थी। इससे ही मैंने बचत कर दस हजार रखे थे।

अपने जैसे दूसरों के बारे में सोचा
लॉकडाउन के दौरान मेरी जीविका के बारे में सोचते हुए मैंने अपने ही तरह के उन लोगों के बारे में सोचा जिनकी बचत तो दूर कमाई ही नहीं थी। तभी मैंने इनकी मदद का फैसला किया। मैं राशन की दुकान से चावल और दाल ले आया और पैकेट बनाकर अपने ही ठेले पर गरीब लोगों में वितरित किया। अब तक मैं 160 परिवारों की मदद कर चुका हूं। इसके लिए आठ हजार रुपए खर्च किए हैं। लॉकडाउन के दौरान गरीब लोगों को खाने-पीने के सामान की जुगाड़ करने में दिक्कतें हो रही हैं। लॉकडाउन बढ़ता है तो मैं मेरे जैसे गरीब लोगों की मदद को जारी रखूंगा।

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