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स्वास्थ्य

मधुमेह छीन न ले आंखों की रोशनी

क्या आप डायबिटीज से पीडि़त हैं और आंखों से जुड़ी कुछ आम समस्याओं से जूझ रहे हैं तो सतर्क हो जाएं, डायबिटिक रेटिनोपैथी की शिकायत हो सकती है।

Sep 20, 2019 / 02:12 pm

Divya Sharma

Diabetic Retinopathy : Causes. Symptoms & Treatment

मधुमेह छीन न ले आंखों की रोशनी

1-2 बार साल में सामान्य लोगों को आंखों की जांच करवानी चाहिए।
25 में से एक नवजात में आंखों संबंधी जन्मजात समस्या
80 साल से कम 41 फीसदी बुजुर्ग देश में विजन संबंधी समस्या से पीडि़त।
आंख के आगे के हिस्से में लेंस होता है और पीछे वाले हिस्से में रेटिना। ज्यादातर रोग इसी से जुड़े होते हैं। रेटिना की बाहरी परत पर मौजूद ब्लड वैसल्स में होने वाले रक्त संचार में दिक्कत होने से आंखों के स्वास्थ पर गलत असर पड़ता है। मारीजों में इससे जुड़ी समस्या ज्यादा होती हैं। डायबिटिक रेटिनोपैथी इसमें अहम है। आयु बढऩे के साथ ही इन दिनों एआरएमडी यानी एज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेटिव रोग सामने आ रहे हैं जिसमें आंख की संरचना धीरे-धीरे प्रभावित होने लगती है। डायबिटीज के सभी मरीजों (युवा या बुजुर्ग) को आंखों के ख्याल रखने की विशेष सलाह दी जाती है। जानें इस बारे में…
डायबिटिक रेटिनोपैथी में आंखों में रक्त कम पहुंचने से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जिससे धमनियां सिकुडऩे लगती हैं और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होने से आंख के पर्दे (रेटिना) पर गलत असर पड़ता है।
प्रमुख लक्षण
आंखों में दर्द और दिखने में दिक्कत होना प्रमुख लक्षण हैं। इसके अलावा कई बार आंखों के अंदर सूक्ष्म नसों के फटने से रेटिना से खून आने लगता है। चश्मे का नम्बर बार-बार बढ़ता है और आंखों में जल्दी-जल्दी और बार-बार इंफेक्शन होता है। सुबह उठने के बाद कम दिखाई देता है साथ ही सफेद व काला मोतियाबिंद होता है। कुछ लक्षणों को नजरअंदाज बिल्कुल नहीं करना चाहिए। जैसे सिर में दर्द रहना, अचानक आंखों की रोशनी में कमी और आंखों में या आंखों से जुड़ी खून की शिराओं में रक्त के थक्के जमना।
रोग की आशंका
प्रसव पूर्व बच्चों में अंगों के पूर्ण रूप से विकसित न होने से दिक्कतें बढ़ जाती हैं। आंखों बेहद नाजुक होती हैं इसलिए इनमें आरओपी यानी रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी की शिकायत रहती है। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले ऐसे लोग जिनका काम आंख से जुड़ा ज्यादा हो और ऐसे युवा जिनमें गैजेट्स आदि के अधिक प्रयोग से चश्मे का नम्बर बार-बार तेजी से घट या बढ़ रहा हो।
इन 3 बातों पर दें ध्यान
चश्मा हटाने के लिए मरीज लेसिक लेजर तकनीक अपना सकता है। इसमें तीन बातें अहम हैं-
1. 21 वर्ष की उम्र तक चश्मे का नम्बर स्थिर होता है। इससे पहले चश्मे का नम्बर घटता-बढ़ता रहता है इसलिए चश्मा हटाने में जल्दबाजी न करें।
2. 20-21 साल की उम्र के बाद चश्मे का नम्बर एक साल से स्थिर है तो ही लेसिक लेजर अपनाएं।
3. आंख के पर्दे में ऐसी कोई दिक्कत न हो जिससे कि लेसिक करवाने के बाद दिक्कत बढ़े।
मधुमेह के मरीज
5 साल से मधुमेह है तो आंख के पर्दे की जांच कराएं। इनमें कोई दर्द या आंख में लालिमा नहीं होती लेकिन रोग के दुष्प्रभाव आंख पर बढ़ते हैं। यदि देखने में समस्या, बार-बार चश्मे का नम्बर बदले, अचानक देखने के बीच काले धब्बे, देखने के दौरान बीच के बजाय आसपास का भाग दिखे तो डायबिटोलॉजिस्ट को दिखाएं।
लालिमा में है अंतर
एलर्जी या प्रदूषण के कारण आंख में एलर्जी होने पर सामान्य नेत्र विशेषज्ञ को दिखाएं। वहीं आंख की छोटी नस यदि बाहर से फट जाए तो लालिमा आती है। ब्लड पे्रशर की जांच कराएं और नियमित दवाएं लें।
सही हो खानपान
विटामिन ए, सी, ई के लिए मौसमी फल व हरी सब्जियां खाएं। टमाटर, गाजर, अमरूद, ककड़ी, खीरा, अनार, पालक, लौकी, दलिया आदि लें।
क्या है इलाज
70-80 % मरीज जिनकी डायबिटीज नियंत्रित है, रेटिनोपैथी से नुकसान नहीं होता। शुरुआती स्टेज में स्वत: खत्म हो जाती है। कुछ में लेजर सर्जरी व सूजन कम करने के इंजेक्शन आंख के पर्दे पर लगाते हैं। सर्जरी भी करते हैं।
20-20-20 रूल
गैजेट्स के प्रयोग से कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम (आंखों में दर्द व थकान) होता है। 20 मिनट बाद 20 फुट दूर रखी वस्तु देखें व 20 बार पलकें झपकाएं।
एक्सपर्ट : डॉ. विनीत प्रधान, वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ

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