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जीन थेरेपी से हीमोफीलिया का इलाज संभव! डॉक्टरों ने जगाई आशा

हीमोफीलिया नामक रक्त विकार से ग्रस्त लोगों के लिए जीन थैरेपी एक उम्मीद की किरण लेकर आई है। यह एक वंशानुगत रोग है, जिसमें व्यक्ति के खून में जन्म से ही एक क्लॉटिंग फैक्टर की कमी होती है। इस फैक्टर की वजह से ही खून में थक्का बन पाता है।

जयपुरApr 17, 2024 / 06:18 pm

Manoj Kumar

haemophilia

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हीमोफीलिया नामक रक्त विकार से ग्रस्त लोगों के लिए जीन थैरेपी एक उम्मीद की किरण लेकर आई है। यह एक वंशानुगत रोग है, जिसमें व्यक्ति के खून में जन्म से ही एक क्लॉटिंग फैक्टर की कमी होती है। इस फैक्टर की वजह से ही खून में थक्का बन पाता है।

17 अप्रैल को विश्व हिमोफीलिया दिवस

हर साल 17 अप्रैल को विश्व हिमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। इस दिन इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है। हीमोफीलिया की वजह से शरीर में खून का थक्का जम नहीं पाता और जरा सी चोट लगने पर भी खून बहने लगता है। गंभीर मामलों में इससे जान का खतरा भी रहता है। मामूली सी चोट के कारण भी जोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे आगे चलकर जोड़ों में अकड़न और चलने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

हिमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी

डॉक्टर तन्मय देशपांडे का कहना है कि यह एक आनुवंशिक बीमारी है। इसमें खून के थक्के जमने के लिए जरूरी फैक्टर की कमी होती है। हीमोफीलिया A में फैक्टर VIII और हीमोफीलिया B में फैक्टर IX की कमी होती है। यह बीमारी X गुणसूत्र से जुड़ी होती है, इसलिए यह आमतौर पर लड़कों में ही ज्यादा देखने को मिलती है। लड़कियां वाहक होती हैं या उनमें हल्के लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि उनके शरीर में दो X गुणसूत्र होते हैं।
हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों और उनके डॉक्टरों के लिए रोग के आनुवंशिक कारणों को समझना बहुत जरूरी है। जीन काउंसलिंग से इस बीमारी के वंशानुक्रम के खतरे का पता लगाया जा सकता है।

हीमोफीलिया फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में हीमोफीलिया A से ग्रस्त लगभग 1,36,000 लोग रहते हैं। यह दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। इनमें से अभी तक केवल 21,000 लोगों को ही रजिस्टर्ड किया गया है।
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भारत में 80 फीसदी से ज्यादा हीमोफीलिया के मामले सामने नहीं आ पाते क्योंकि कई अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में खून के थक्के जमने की जांच की सुविधा नहीं होती है।

हीमोफीलिया के इलाज में जीन थैरेपी एक नई उम्मीद

हीमोफीलिया के इलाज में जीन थैरेपी एक नई उम्मीद के रूप में सामने आई है। इस थैरेपी में मरीज के शरीर में एक खास तरह का वायरस डाला जाता है, जो जरूरी जीन को शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचाता है। यह जीन शरीर में खून के थक्के जमने वाले फैक्टर को बनाने का काम करता है।
हाल ही में हुए क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। इन ट्रायल में इस थैरेपी को सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है। इसका ट्रायल भारत के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC) वेल्लोर में भी किया गया है।
अभी तक हीमोफीलिया का इलाज फैक्टर VIII इंजेक्शन लगाकर किया जाता है। नियमित रूप से यह इंजेक्शन लेने से मरीज की स्थिति को काबू में रखा जा सकता है, लेकिन यह इंजेक्शन काफी महंगा होता है। जीन थैरेपी इस बीमारी को जड़ से खत्म करने में मदद कर सकती है।

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