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हमारी विरासत : आदमगढ़ पहाडिय़ा जहां मिले हैं मानव जाति के समूह में रहने के प्रमाण

1920 में मनोरंजन घोष ने की थी शैलाश्रयों की खोज, देशभर से आज भी आते हैं शोधार्थी

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हमारी विरासत : आदमगढ़ पहाडिय़ा जहां मिले हैं मानव जाति के समूह में रहने के प्रमाण

हमारी विरासत : आदमगढ़ पहाडिय़ा जहां मिले हैं मानव जाति के समूह में रहने के प्रमाण

होशंगाबाद/आदमगढ़ स्थित पहाडिय़ा पर मानव जाति के समूह में रहने के प्रमाण मिले हैं। इतिहासकारों के अनुसार यहां के शैलचित्र 20 हजार साल पुराने हैं।वर्ष 2020 में आदमगढ़ स्थित चित्रित शैलाश्रयों की खोज के 100 वर्ष पूरे हो गए है। इनकी खोज का श्रेय मनोरंजन घोष को है जिन्होंने वर्ष 1920 मे इनकी खोज की थी। यहां कई शैलाश्रय हैं जिनमें उत्तर पाषाण युग से लगाकर मध्यकाल तक के चित्र मिलते है। ये सफेद, गहरे लाल,हल्के गेरुआ और लाल के चित्र हंै। इन चित्रों के माध्यम से मानव जीवन के क्रियाकलापों, पशुचित्रण, युद्ध के दृश्य, शिकार को दर्शाया गया है। प्रमुख चित्रों में विशालकाय भैसा, वृषभ,हिरण, नृत्य करते धनुर्धर हैं। कुछ जिराफ जैसे मिलते जुलते चित्र भी हैं। 1960 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आरवी जोशी एवं एमडी खरे के मार्गदर्शन मे पुरातात्विक उत्खनन करवाया था, जिसमें लाखों वर्ष प्राचीन आदि मानव के पाषाण उपकरण प्राप्त हुए थे। वर्तमान में यह स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल के अंतर्गत संरक्षित राष्ट्रीय महत्व कि पुरातात्विक स्थल घोषित किया है।

मानव जाति के समूह में रहने का है प्रमाण
ये शैलचित्र प्रागैतिहास से एतिहासिक काल के बीच के हैं। इतिहासकारों के हिसाब से ये शैलचित्र 20 हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहास में मनुष्य के रहने का पहला घर पहाडिय़ा रही हैं। इसलिए इन्हें शैलाश्रय कहा जाता है। उस समय भाषा का विकास नहीं हुआ था इसलिए मनुष्य अपनी भावनाओं को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करता था। इन शैलचित्रों में मानव की दैनिक दिनचर्या जैसे शिकार, घुड़सवारी, नृत्य आदि से संबंधित चित्र है। चित्रों के माध्यम से स्पष्ट है कि इस दौर में मनुष्य ने समूह में रहना शुरू कर दिया था। पूरी पहाड़ी पर ये शैलचित्र हैं लेकिन अधिकतर शैलचित्र सुरक्षा के अभाव में मिटते जा रहे हैं।

प्राकृतिक रंगों से बनाए गए हैं ये चित्र
आदमगढ़ पहाड़ी में लगभग 4 किमी क्षेत्र में 20 शैलाश्रय हैं। शैलाश्रयों में पशु जैसे वृषभ, गज, अश्व, सिंह, गाय, जिराफ, हिरण आदि योद्धा, मानवकृतियां, नर्तक, वादक तथा गजारोही, अश्वरोही एवं टोटीदार पात्रों का अंकन है। इन चित्रों को खनिज रंग जैसे हेमेटाइट, चूना, गेरू आदि में प्राकृतिक गोंद, पशु चर्बी के साथ पाषाण पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त पेड़ों के कोमल रेशों अथवा जानवरों के बालों से बनी कूची की सहायता से उकेरा गया है।

इनका कहना है
प्रागैतिहासिक से ऐतिहासिक समय के ये शैलचित्र हैं। ये शैलचित्र हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में है। इनका संरक्षण करना चाहिए। जिससे आने वाली पीढिय़ां भी इन्हें देख सकें।

डॉ. हंसा व्यास, विभागाध्यक्ष, इतिहास, नर्मदा कॉलेज