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एक चुनाव में खर्च हो जाती है करोड़ों रुपए की स्याही, यहां मिलेगी वोटर इंक के बारे में पूरी जानकारी

भारत में सिर्फ दो कंपनियां बनाती हैं वोटर इंक
वोटर इंक का निशान नहीं जाता एक हफ्ते तक
हैदराबाद और मैसूर की ये कंपनियां पूरे देश में भेजती हैं वोटर इंक

Apr 10, 2019 / 12:45 pm

Priya Singh

know about voter ink used in elections

एक चुनाव में खर्च हो जाती है इतने करोड़ रुपए की स्याही, यहां जानें वोटिंग के बाद लगने वाली स्याही के बारे में

नई दिल्ली। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनावों ( lok sabha election ) में करीब 90 करोड़ लोग मतदान करेंगे। यही लोग तय करेंगे कि इस बार किसे सत्ता मिलेगी। हर बार की तरह इस बार भी वोटिंग के बाद लोग सोशल मीडिया ( Social media ) उंगली पर लगी स्याही वाली फोटो डालेंगे। लेकिन कभी आपने सोचा है कि वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली स्याही कहां बनती है? कैसे बनती है? और यही स्याही ही क्यों वोटिंग में इस्तेमाल की जाती है? इस स्याही के बारे में ये सब जानकारी देने से पहले हम आपको बता दें कि भारत में केवल दो ही कंपनियां हैं जो वोटर इंक ( election ink ) बनाती हैं। जिनका नाम है हैदराबाद ( Hyderabad ) के रायडू लैब्स और मैसूर ( Mysore ) के मैसूर पेंट्स ऐंड वॉर्निश लिमिटेड।

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voter ink used in elections

यही दोनों कंपनियां हैं जो पूरे देश को वोटिंग के लिए इंक सप्लाइ करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह इंक विदेशों में भी सप्लाई की जाती है। इस इंक को बनाते समय केवल कंपनी के स्टाफ और अधिकारी ही वहां मौजूद रहते हैं। इस इंक में सिल्वर नाइट्रेट मिलाया जाता है। सिल्वर नाइट्रेट को इंक में इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि इसका रंग अल्ट्रावॉइलट लाइट के पड़ते ही पक्का हो जाता है।

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voter ink

एक रिपोर्ट के अनुसार, इस स्याही को पहली बार 1962 में इस्तेमाल किया गया था। तब 3.74 लाख बोतलों की कीमत 3 लाख रुपए रही गई थी। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 4.5 लाख ज्यादा बोतलें मंगाई गई हैं। 2009 में 12 करोड़ रुपए की स्याही खरीदी गई थी। इस तथ्य से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि एलेक्शंस में इस इंक की कीमत क्या होती होगी।

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