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सीईटी देने वाले 16 हजार से ज्यादा विद्यार्थी 23 दिनों से परेशान हैं। कुलपति न होने से अफसर कोई समाधान नहीं निकाल पा रहे थे। लगातार बन रहे दबाव के बाद यूनिवर्सिटी ने विधिक राय लेने के बाद सीईटी निरस्त करने का निर्णय लिया। दरअसल, राहत ऑर्डिनेंस 14 के तहत मिली। अफसरों के अनुसार अब तक एडमिशन पर फैसला नहीं हो सकता। इस देरी से सीईटी में शामिल कोर्स के जीरो ईयर होने की स्थिति बन रही थी। ऐसे में हजारों छात्र प्रवेश से वंचित रहते व विवि को भी फीस के रूप में मिलने वाले करीब 50 करोड़ का नुकसान होता।
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फीस से सालाना मिलते हैं 50 करोड़, 15 करोड़ सिर्फ सीईटी वाले कोर्स से
सीईटी देने वाले छात्रों की तरह यूनिवर्सिटी के लिए भी एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा है। दरअसल, काउंसलिंग में जितनी देरी होगी उतनी ही सीटें खाली रहने की स्थिति बनती जाएगी। अभी 29 विभाग के सभी कोर्स से सालाना करीब 50 रुपए फीस के तौर पर मिलते हैं। सिर्फ फस्र्ट ईयर वाले यानी ताजा सत्र में एडमिशन लेने वालों से ही करीब 20 करोड़ रुपए मिलते हैं। इनमें 15 करोड़ रुपए फीस सीईटी वालों की शामिल है। इस साल जीरो ईयर होता है तो पहले ही साल 15 करोड़ का घाटा यूनिवर्सिटी को उठाना पड़ेगा। ये घाटा यूजी कोर्स में तीन साल, पीजी कोर्स में दो साल और इंटीग्रेटेड कोर्स में 5 से 6 साल तक होता रहेगा।
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विभागाध्यक्षों को प्रवेश देने का अधिकार है
ऑर्डिनेंस के अनुसार विभागाध्यक्ष अपने-अपने विभाग में प्रवेश प्रक्रिया का निर्धारण कर सकते हैं। यानी विभागाध्यक्षों को प्रवेश देने के अधिकार है। हालांकि, इसके बीच यूनिवर्सिटी का वह रेगुलेशन बाधा बन सकता है जिसमें सीईटी में शामिल कोर्स के लिए ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा और गैर-सीईटी कोर्स के लिए मेरिट या विभाग स्तर पर एडमिशन देने का प्रस्ताव मंजूर किया गया था। एडमिशन सेल की बैठक में निर्णय लिया गया कि पहले की तरह विभाग स्तर पर मेरिट के आधार पर ही एडमिशन दिए जाएं। मालूम हो, सीईटी से पहले कार्यपरिषद सदस्य आलोक डाबर ने गड़बड़ी होने पर एजेंसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने की शर्त शामिल कराई थी। इसी आधार पर अब यूनिवर्सिटी एजेंसी पर कार्रवाई करने जा रही है।
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सीईटी देने वाले विद्यार्थी कई दिनों से परेशान हो रहे है। ऑनलाइन टेस्ट कराने वाली एजेंसी के कारण यूनिवर्सिटी की साख गिरी है। एजेंसी को ब्लैक लिस्ट करने के साथ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। विभाग स्तर पर मेरिट के आधार पर एडमिशन का प्रस्ताव शासन और राजभवन को भेज रहे है। एक-दो दिन में स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है।
– अनिल शर्मा, रजिस्ट्रार
कुलपति को लेकर लालवानी ने कुलाधिपति को लिखा पत्रदेवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार 23 दिन से खाली पड़ी कुलपति की कुर्सी को लेकर सांसद शंकर लालवानी ने कुलाधिपति (राज्यपाल) को पत्र लिखा है। उन्होंने कुलाधिपति आनंदी बेन से मांग की है कि इस संबंध में वे जल्द से जल्द कुलपति की नियुक्ति को लेकर दिशा निर्देश जारी करें। लालवानी का कहना है, राज्य सरकार ने 23 जून को धारा 52 लगाकर डॉ. नरेंद्र धाकड़ को कुलपति पद से हटा दिया था और तभी से यह धारा लागू है।
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विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहला मौका है, जब इतने दिन तक धारा 52 लगी हुई है। कुलपति के न होने से विश्वविद्यालय के कई जरूरी काम अटके हुए हैं। विवि की डिग्रियां, मार्कशीट सहित अन्य प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं। संभवत: अगले माह होने वाले नेक के दौरे की तैयारियों पर भी इसका असर पड़ेगा।