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समय पर नहीं पूरे हुए 347 प्रोजेक्ट्स, सरकारी खजाने पर बढ़ा 3.2 लाख करोड़ रुपए का बोझ

347 प्रोजेक्ट्स पर कुल खर्च बढ़कर 3.2 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक हुआ।
हर प्रोजेक्ट में आैसतन 44 माह से भी अधिक की देरी।
सांख्यिकी विभाग की एक रिपोर्ट से हुआ खुलासा।

नई दिल्लीFeb 24, 2019 / 04:07 pm

Ashutosh Verma

Infrastructure Projects

समय पर नहीं पूरे हुए 347 प्रोजेक्ट्स, सरकारी खजाने पर बढ़ा 3.2 लाख करोड़ रुपए का बोझ

नर्इ दिल्ली। 150 करोड़ रुपए व उससे अधिक की खर्च वाली 347 इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का खर्च बढ़कर 3.2 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। साख्यिकी मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन परियोजनाआें पर यह बढ़ा हुआ खर्च प्रोजेक्ट्स में देरी से बढ़ी है। यह मंत्रालय 150 करोड़ रुपए व उससे अधिक खर्च वाली परियोजनाआें की माॅनिटरिंग करता है।

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करीब 360 गुना तक बढ़ा खर्च

गत नवंबर 2018 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 1,443 प्रोजेक्ट्स पर 18,30,362.42 करोड़ रुपए अनुमानित खर्च बताया गया था। लेकिन अब यह बढ़कर 21,51,136.69 करोड़ रुपए होगया है जोकि इन परियोजनाआें की देरी से हुआ है। इस प्रकार इन प्रोजेक्ट्स पर कुल 3,20,774.21 करोड़ रुपए अधिक खर्च बढ़ गया है। इन 1,443 प्रोजेक्ट्स में से 347 प्रोजेक्टरस पर खर्च करीब 360 गुना अधिक बढ़ गया है।

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61 महीनों से भी अधिक तक की देरी

इस रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2018 तक इन प्रोजेक्ट्स पर कुल 7,97,496.44 करोड़ रुपए खर्च हो चुका है जो कि अनुमानित खर्च का 37.07 फीसदी अधिक है। हालांकि, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 302 प्रोजेक्ट्स की संख्या घटकर 302 होगया है। यह हालिया कम्प्लीशन शेड्यूल पर आधारित है। 710 प्रोजेक्ट्स को पूरी होने की तारीख तय की गर्इ है। 360 प्रोजेक्ट्स में से 106 में 1 से 12 महीने की देरी है। जबकि 60 प्रोजेक्ट्स 13 से 24 महीने की देरी से पूरा होंगे। 93 प्रोजेक्ट्स 25 से 60 महीने की देरी से पूरा होंगे। 101 प्रोजेक्ट्स करीब 60 महीनों से अधिक देरी में पूरा होंगे। कुल 360 प्रोजेक्ट्स आैसतन 44.43 महीनों की देरी से पूरा होंगे।

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क्या है इन प्रोजेक्ट्स में देरी का कारण

रिपोर्ट में इन प्रोजेक्ट्स में देरी का प्रमुख कारण भूमि अधिग्रहण आैर संबंधित प्राधिकरणों से क्लियरेंस ने मिलने को बताया गया है। साथ ही कुछ प्रोजेक्ट्स के लिए समय पर इक्विपमेंट नहीं मुहैया हो पाया है। इसके अतिरिक्त, फंड की कमी, जियो माइनिंग कंडीशन, सिविल कार्यों में देरी, श्रमिकों की कमी अादि की वजह से इन प्रोजेक्ट्स में देरी हुर्इ है। साथ में यह भी देखा गया है कि प्रोजेक्ट एजेंसियों ने अनुमानित खर्च व कमिशनिंग शेड्यूल के बारे में भी कोर्इ जानकारी नहीं दी है।

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