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 Human Story: अंधे मां-बाप जीने के लिए कर रहे संघर्ष, बेटों ने छोड़ा साथ

बालसागर के विस्थापित बुजुर्ग दंपत्ति भीख मांगकर कर रहे गुजारा, नहीं मिलती पेंशन तक

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neeraj mishra

Jan 19, 2017

blind couple

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जबलपुर। जन्म से अंधे मां-बाप पर उस वक्त पहाड़ टूट पड़ा जब उनके एक बेटे की मौत हो गई। मौत के सदमे से उबर पाते उसके पहले ही दूसरे बेटों ने साथ छोड़ दिया। लाचारी के आलम में दंपत्ति भीख मांगने लगे। जिस झोपड़ी में रहते थे उसे भी प्रशासन ने तोड़ दिया। अब बेचारे मुफलिसी में दिन काट रहे हैं।

जन्म से अंधे नाथूलाल चढ़ार की 11 साल की उम्र में गोमती से शादी हुई थी। गोमती भी नेत्रहीन है। शादी के बाद लगा कि बच्चे उनका सहारा बनेंगे। बच्चे बड़े होते ही हाथ से निकल गए। अपना-अपना अलग घर बसा लिया। एक बेटा साथ था उसकी भी असमय मौत हो गई। अब वे बुजुर्ग हो गए हैं। हाथ-पैर भी चलना बंद हो चुके हैं। बेचारे दंपित्त नर्मदा घाटों पर भीख मांगकर गुजारा कर रहे हैं।

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नहीं मिला किसी योजना का लाभ

नाथूलाल ने बताया कि उनकी पत्नी गोमती को 300 रुपए वृद्धावस्था पेंशन मिलती थी। जिससे वे घर चलाते थे। लेकिन पिछले दो वर्ष से वो पेंशन भी नहीं मिल रही है। उन्हें खुद आज तक शासन की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है। कार्य करने में अक्षम होने के कारण उन्हें मजबूरी में भीख मांगना पड़ती है। कभी रामायण मंदिर, तो कभी मेले, तो कभी नर्मदा घाटों पर वे दोनों भीख मांगते हैं।

टूट गया घर, अब झोपड़ी में गुजारा

नाथूलाल पहले अपने परिवार के साथ बालसागर में रहते थे। विस्थापन के बाद वे पत्नी के साथ परसवाड़ा बस्ती में आ गए। अब वे झोपड़ी बनाकर यहां अपना गुजारा करते हैं। उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते कि दो वक्त का राशन जुटा पाएं।

मोक्ष करेगी मदद

मानव मोक्ष एवं जन उत्थान संस्थान के आशीष ठाकुर ने बताया कि बुजुर्ग दंपत्ति बेहद दयनीय स्थिति में हैं। उनकी मदद के लिए मोक्ष संस्था हर संभव प्रयास करेगी।

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