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हॉस्टल में रहने के लिए नहीं मिल रहे छात्र, देखरेख पर ही लाखों खर्च

आदिवासी विभाग ने समय पर नहीं दिया ध्यान, 600 सीट खाली

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जबलपुर . आदिवासी वर्ग के बच्चों के लिए विभाग ने बिना संख्या का आकलन किए बिना धड़ाधड़ हाॅस्टल बना दिए। अब हालत यह है कि इनमें रहने के लिए विद्यार्थी कम संख्या में आ रहे हैं। इसके चलते बने हॉस्टल खाली हैं। रिक्त सीटों की संख्या छह सौ पहुंच गई है। शासन को खाली हॉस्टल की भी देखरेख के लिए शासकीय और निजी कर्मचारियों के साथ दूसरे इंतजामों पर लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।

जिले में अलग-अलग प्रकार के 81 आदिवासी हाॅस्टल हैं। इसमें स्कूल और कॉलेज दोनों के छात्र एवं छात्राएं रहकर पढ़ाई करती हैं। ज्यादातर जिले से बाहर के विद्यार्थी हैं। उनके जिले में आवास और शिक्षा की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण वे जबलपुर आते हैं। इसलिए विभाग ने यहां हॉस्टल का निर्माण कराया। लेकिन, ज्यादातर वर्षों में वे खाली रहते हैं।

42 सौ सीट जिले के हॉस्टल में

जिले में इस वर्ग के लिए बनाए गए हॉस्टल की कुल क्षमता 4190 सीट की है। इसमें अभी 3544 ही भरी हैं। 606 खाली है। अनुसूचित जनजातीय वर्ग के छात्रावासों की संख्या 38 है। उसमें 2 हजार 5 सीट हैं। अभी केवल 1621 भरी हैं। 344 खाली हैं। अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रावासों की संख्या 34 है। इनमें कुल क्षमता 1635 सीटों की है। भरी 1416 है। अनुसूचित जनजातीय वर्ग के आश्रम की बात करें, तो इनकी संख्या नौ है। इसमें 550 सीटों की तुलना में 507 भरी हैं। 43 अभी भी खाली हैं।

आकांक्षा योजना बंद, खेल परिसर खाली

विभाग का नियम हैं कि छात्रावास केवल उस छात्र को मिल सकता है, जिसके आवास की दूरी हॉस्टल से आठ किमी है। बालिकाओं के मामले में यह दूरी तीन किमी है। हॉस्टल में उन्हें आवास के साथ ही शासन की तरफ से मुफ्त भोजन दिया जाता है। आकांक्षा योजना में पहले 200 सीट भर जाती थीं। तिलहरी में 90 सीट केवल खेल परिसर की खाली हैं। इसके अलावा दूसरे हॉस्टल में कहीं-कही 10 सीटें खाली हैं।

इनका कहना है

हॉस्टल की जितनी क्षमता है, उसके अनुरूप सीट नहीं भरी हैं। नए सत्र में प्रयास किया जाएगा कि इनका लाभ विद्यार्थियों को मिल सके।

एनएस रघुवंशी, सहायक आयुक्त, जनजातीय कार्य विभाग