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यहां सुरक्षित नाला पार करने की कीमत भी 30 रुपए है.. भारी बारिश के बाद बस्तर में बने ऐसे हालात

CG Jagdalpur News : तस्वीर कुआकोण्डा ब्लॉक के मलगेर नाले की है।

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बस्तर के इन इलाकों में जीना हुआ मुश्किल, बाढ़ में जान जोखिम में डाल रहे ग्रामीण, 30 रुपए लेकर करवा रहे सुरक्षित नाला पार

बस्तर के इन इलाकों में जीना हुआ मुश्किल, बाढ़ में जान जोखिम में डाल रहे ग्रामीण, 30 रुपए लेकर करवा रहे सुरक्षित नाला पार

CG Jagdalpur News : तस्वीर कुआकोण्डा ब्लॉक के मलगेर नाले की है। इस नाले से जुड़ा जो सच है वह बस्तर के अंदरूनी इलाके में हो रहे कथित विकास की हकीकत है। (cg bastar news) दरअसल बारिश के दिनों में यह नाला उफान पर होता है और इसकी वजह से बुरगुम और रेवाली पंचायत के तीन हजार ग्रामीणों का कनेक्शन देश-दुनिया से कट जाता है। (cg jagdalpur news) ऐसे में ग्रामीणों को अगर उफनाते नाले को पार करना होता है तो वे जान की बाजी लगाकर दूसरे के कंधे पर लदकर इसे पार करते हैं। पुल पार करने के लिए ग्रामीणों को 30 रुपए तक पटाने होते हैं।

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नाले पर स्टील पुल बनाने का वादा अब तक अधूरा

जो पुल पार करवाता है और जो पुल पार करता है दोनों की जान तेज बहते नाले के बीच खतरे में होती है लेकिन बावजूद इसके ग्रामीण बेहद जरूरी काम होने पर पुल पार करते हैं। दोनों गांव में अगर बारिश के दिनों में कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे नाला पार करवाना आसान नहीं होता है। पत्रिका संवाददाता शुक्रवार को जब नाले के करीब पहुंचे तो पाया कि यहां से लोगों को कंधे पर लादकर पार करवाया जा रहा है।

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जो ग्रामीण नाला पार करवा रहा था उससे बातचीत की गई तो उसने बताया कि बारिश में नाला पार करवाने के एवज में वे 30 रुपए तक लेते हैं। हालांकि इस दौरान जान का खतरा बना रहता है। मजबूरी है इसलिए ऐसा कर रहे हैं। वहीं नाला पार कर रहे ग्रामीणों का कहना था कि पार जाना बहुत जरूरी होता है इसलिए जान का खतरा उठाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि नाले पर पुल बन गया होता तो आज इतने खतरे का सामना नहीं करना पड़ता।

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नाले की वजह से बारिश में तीन हजार ग्रामीण जाते हैं फंस

ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के दिनों में नाले की वजह से वे लगभग घर में ही कैद हो जाते हैं लेकिन रोजमर्रा के समान के लिए परिवार के किसी एक सदस्य को बाहर निकलना पड़ता है। इसके लिए उन्हें कई चुनोतियां पार करनी पड़ती है। बाजार आने के लिए पहले चार से पांच किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है जिसमें नक्सलियों के द्वारा सैकड़ों गड़ढेे खोदे गए हैं। इसके बाद उफनाते मलगेर नाला को पार करने की मजबूरी होती है। बारिश के दिनों में मलगेर नाला उफान पर होता है और बहाव इतना तेज होता है कि बड़े से बड़े पेड़ को भी बहाकर ले जाए। ऐसे में ग्रामीणों की चुनौतियां और बढ़ जाती हैं। ग्रामीण कहते हैं कि हम जब से पैदा हुए हैं तब से यही स्थिति देख रहे हैं। कुछ भी सुधार अब तक नहीं हो पाया है। आज तक प्रशाशन ने भी इन ग्रामीणों की सुध नही ली है।