
Maharana Pratap Jayanti
Maharana Pratap Jayanti: राजस्थान के इतिहास में महाराणा प्रताप का एक खास ही स्थान है। उनकी बहादुरी, मातृभूमि से प्रेम और समर्पण को पूरा देश जानता है। आज भी भारत के वीर राजाओं में महाराणा प्रताप का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उल्लेखनीय है कि महाराणा ने कभी भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं की और उसका डटकर सामना किया। हल्दीघाटी के युद्ध और देवर —चप्पली की लड़ाई में महाराणा प्रताप को सर्वश्रेष्ठ राजपूत राजा और उनकी बहादुरी, पराक्रम के लिए जाना जाता था। आज के दिन ही हिंदुशिरोमणी महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जाती है।
हालांकि मेवाड़ में महाराणा के जयंती अवसर को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। और इसी उपलक्ष्य में करीब 15 दिन तक उदयपुर-चित्तौड़गढ़ व आसपास क्षेत्र में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेवाड़ में इसे हर्षोल्लास से मनाया जाता है, आज भी प्रदेश में कई जगहों पर शोभायात्राएं निकाली जाएंगी, संगोष्ठियां होंगी, उनकी जन्मस्थली, राज तिलक स्थली सहित अन्य जगहों पर लोग कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होंगे।
कुम्भलगढ़ में हुआ था वीर प्रताप का जन्म
महाराणा प्रताप का जन्म हिंदू पंचांग के मुताबिक उनका जन्म जेठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में विक्रम संवत 1597 को हुआ था इसी वजह से 22 मई को महाराणा प्रताप की जयंती है। इस वर्ष महाराणा प्रताप की 489 वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इस बार विक्रम संवत के मुताबिक, उनका जन्म दिवस मनाया जाएगा। यूं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 में कुम्भलगढ़ में हुआ था तो इस दिन भी उनका जन्म दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस दफा हिन्दु पंचांग के हिसाब से वीर शिरोमणी का जन्म दिन मनाया जा रहा है। 1541 में वह चित्तौड़गढ़ दुर्ग गए जहां 1546 तक रहे,फिर कुम्भकगढ़ में अगले 10 साल तक मां जयवंता बाई और सामंत जयमल के संरक्षण में शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा ली।
पिता की मौत के बाद उदयपुर पहुंचे
चित्तौड़गढ़ छोड़कर पिता के साथ महाराणा प्रताप उदयपुर आ गए थे, लेकिन चार साल बाद ही पिता महाराणा उदय सिंह की 28 फरवरी 1572 में निधन हो गया। इसके बाद प्रताप का राजतिलक गोगुन्दा के श्मशान क्षेत्र में महादेव मंदिर की बावड़ी के पास हुआ। गोगुन्दा जो उदयपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर है जहां आज भी उनकी राजतिलक स्थली बनी हुई है।
हल्दीघाटी का युद्ध एक अध्याय
यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार, पानरवा के ठाकुर राणा पूंजा सोलंकी थे। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया और शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को युद्ध क्षेत्र से निकाला। और इसी वजह से मुगलों के सफल प्रतिरोध के बाद, उन्हें "हिंदुशिरोमणी" माना गया। युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।
वीर महाराणा प्रताप ने चावंड में ली अंतिम सांस
साल 1576 से 1586 तक अकबर के आक्रमण होते रहे.ऐसे में महाराणा प्रताप राजपाट छोड़ अपनी सेना के साथ जंगलों में रहे, उन्होंने मायरा की गुफा, जावर माइंस, कमलनाथ सहित अन्य जगह आरमारी बना रखी थी। साल 1581 तक दिवेर से लेकर कुम्भलगढ़ तक महाराणा प्रताप ने मुगलों की 36 छावनियों को जीत था,इस दौरान यह कहा जाता था कि जहां राणा,वहीं मेवाड़ की राजधानी। कई सालों तक अकबर से युद्ध चला लेकिन अकबर मेवाड़ को जीत नहीं सका, फिर 1586 में वीर महाराणा प्रताप ने चावंड को मेवाड़ की राजधानी बनाई और 12 साल तक शासन चलाया, साल विक्रम संवत 19 जनवरी 1597 उनका निधन हो गया। चावंड उदयपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर है।
Published on:
22 May 2023 02:16 pm
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