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पुस्तक चर्चा : हंसी एक प्रार्थना है, जिसे दोहराव की जरूरत नहीं…

जानी-मानी Poet Rati Saxena का हालिया प्रकाशित कविता संग्रह ‘Hansi Ek Prarthana Hai’ इस मायने में अनूठा है कि इसमें एक ओर मन की पीड़ा को मूर्त रूप देती कविताएं हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसी कविताएं भी हैं, जो जिस्मानी तकलीफ को लय में ढाल कर हल्का बना रही हैं...

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जयपुर

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Uma Mishra

Sep 26, 2019

पुस्तक चर्चा : हंसी एक प्रार्थना है, जिसे दोहराव की जरूरत नहीं...

पुस्तक चर्चा : हंसी एक प्रार्थना है, जिसे दोहराव की जरूरत नहीं...

जयपुर। इस बात को अरसा हुआ जब लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि कविता का कोई भविष्य नहीं है, लेकिन वो कविता ही है, जो अंधे कुएं से हमें खींच कर बाहर ले आती है। वो कविता ही है, जो बुरे वक्त में प्रार्थना में तब्दील होती हुई दिखाई देती है, वो भी कविता ही है, जो हमें आहिस्ता से बता देती है कि हंसी एक प्रार्थना है।

जानी-मानी कवि रति सक्सेना के इस हालिया प्रकाशित संग्रह ‘हंसी एक प्रार्थना है’ से गुजरते हुए आप जीवन के कई रंगों और तकलीफों से गुजरेंगे, जहां रंग में भी दर्द छिपे नजर आएंगे और तकलीफों में भी एक लय मिलेगी।
इस संग्रह की पहली ही कविता शीर्षक कविता है, उसकी पंक्तियां देखिए-
हंसी एक प्रार्थना है/ जिसे दोहराव की जरूरत नहीं/ आलाप से लेकर स्थाई तक पहुंचने के लिए/ सम्मिलित स्वरों की जरूरत होती है...।


एक अन्य कविता देहांतर की ये पंक्तियां देखें- स्वेटर की तरह पहन लेती हूं, खिड़कियों, अलमारियों/और दीवारों से घिरे उस कमरे को,/ आसमान मेरी देह पर बेल की तरह चढ़ जाता है...


दरअसल रति एक खास किस्म की शैली और बिम्बों के जरिए अपनी बात रखती हैं। जब वे दर्द पर बात करती हैं, तब भी एक लय उसमें कायम रहती है और बिंबों का प्रयोग इतना खूबसूरत होता है कि आप उस अनूठेपन पर रीझ जाते हैं। इस संग्रह में उन्होंने वेरिकोस वेन जैसी बीमारी पर दो कविताएं लिखी हैं। घुटनों का दर्द, माइग्रेन और साइटिका जैसे विषयों पर जब उन्होंने कलम चलाई, तो दर्द भी नाजुक सा बनकर सामने आ खड़ा हुआ।

आखिर कैसे करती हैं रति ऐसा?
संभवत: वेदों पर अध्ययन ने उन्हें वो दृष्टि दी है कि वे एक छोटी कविता को महाकाव्य का रूप दे पाती हैं। उनकी कविताओं की खासियत उनकी आधुनिक शैली, उनके विविध विषय और विराट दृष्टिकोण है। जब उनकी कविता ‘शुकराना’ से गुजरेंगे, तो आपको यकीनन यही लगेगा कि इस बारे में आपने अब तक क्यों नहीं सोचा!

वे आपके अंतर्मन के उस बिंदु तक पहुंचती हैं, जहां आप खुद पहुंच ही नहीं पाते, देखिए इस कविता से चंद पंक्तियां-
‘शुकराना, मेरे गराज़ में जच्चाखाना बनाने वाली अनाम बिल्ली को
दरवाज़े पर जब तब आ कर सुस्ताने वाले सडक़ के कुत्ते को
जो मेरे ध्यान को छोटी-छोटी समस्याओं से हटाते हैं कि
फलां देश ने फलां का जहाज मार गिराया, या फिर
जरा सी बरसात ने नगर को तालाब बनाया।...’


उनकी कविताओं में मां का बायां स्तन आता है, तो पिता की याद भी, मक्खी भी तो शरणार्थी भी, बेहतरीन फिल्म का निचोड़ भी कविता की शक्ल में वे दर्ज करती हैं, डांसिंग अरब और हानेजू ऐसी ही फिल्में हैं, जो इस संग्रह में डांसिंग अरब इन इजराइल और उस देश के देवता नाम से दर्ज है।

102 कविताओं को इस संग्रह में सहेजते हुए वे ‘कटहल का अचार’ पेश करना नहीं भूलीं कि जीवन में जरा सा स्वाद बढ़ाने के लिए अचार की जरूरत तो होती ही है।

संग्रह से एक कविता
माइग्रेन

कोई कठफोड़वा मेरी कनपटी पर
पंजे गड़ाये
भेजे में ठुकठुका रहा है
नन्हे कीड़ों के साथ
उसकी चोंच में पैठती जा रही है
मेरी अपनी सोच
मेरे मोह और वेदनाएं

यूं तो इस कठफोड़वे के आने के दिन
निश्चित नहीं
फल की जगह इसे पसंद आते हैं
सूखे लकड़ भेजे
और उनमें चोंच घुपा कर
विचारों की एंठ तक निकालना

मैं आंख बंद किये
इस ठुक ठुक को अपनी
शिराओं में लीलती हुई
खुद कठफोड़वा में विलय
होती जा रही हूं।