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‘नरवैदेही’ में कठिनाइयों से जूझती दिखी सीता,‘गांधी गाथा’ में दिखाई बापू की यात्रा

- रंगकर्मियों ने बिखेरे, जयरंगम में रंग

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colors in Jayarangam

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जयपुर. कलाकारों के संघर्ष और शोषण का चित्रण करता ‘नरवैदेही’ नाटक जयपुर से राजारामपुरा गांव में रामलीला करने आई मंडली के इर्द-गिर्द नाटक घूमता है। गूंजती चैपाईयां के साथ दर्शक भी राम रंग में रंगकर जय श्री राम के जयकारे लगाते है।

कला एवं संस्कृति विभाग, जवाहर कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित जयरंगम जयपुर थिएटर फेस्टिवल का 5वां दिन जीवन के मौलिक सत्य, कलाकारों के संघर्ष और बापू के सिद्धांतों की व्याख्या करने वाले नाटकों के नाम रहा। ‘भीड़ भरा एकांत’, ‘नरवैदेही’ व ‘गांधी गाथा’ नाटक ने सीख देने के साथ ही दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। साथ ही जेकेके में लगी पेंटिंग व फोटो प्रदर्शनी में लोगों की आवाजाही रही।

राजस्थानी लेखक अनिल मारवाड़ी की कहानी में युवा नाट्य निर्देशक अभिषेक मुद्गल के निर्देशन में मंचित नरवैदेही नाटक में कलाकारों ने अभिनय से बताया कि रामलीला मंडली में सीता बना पुरुष अपने किरदार में इस कदर रमा है कि वह स्वयं को स्त्री मानने लगा है, को नुकसान न पहुंचे इसलिए वह मुखिया की अवहेलना भी करती है। नाराज मुखिया और उसके आदमी मंडली को बाहर निकालने के प्रपंच भी रचते हैं। इसी बीच नृत्यांगना दिशा की एंट्री होती है उसे मंडली में रख लिया जाता है। मंडली को बचाने के लिए दिशा मुखिया की हवेली पर भी जाती है। नाटक में मोड़ तब आता है जब सीता बने पुरुष को उसकी पत्नी भी छोड़ जाती है और मंडली वाले उसके चरित्र पर शक कर बैठते हैं। मुखिया की चहेती बनी दिशा को सीता बनाने की बात होती है, राम के साथ सीता किसी ओर को नहीं देखना चाहती है। स्वयं को दिशा से अव्वल साबित करते-करते नृत्य प्रतियोगिता के दौरान सीता का देहांत हो जाता है। दिशा नई सीता बन जाती है

आप ‘भीड़ भरे एकांत’ में तो नहीं हैं?...

कृष्णायन सभागार में वरिष्ठ नाट्य निर्देशक गोपाल आचार्य के निर्देशन में ‘भीड़ भरा एकांत’ नाटक का मंचन हुआ। भौतिक सुखों-ख्वाहिशों की पूर्ति में इंसान स्वयं से दूर और अकेला हो जाता है, यही नाटक का सार है। यह दिसंबर 2022 के पहले सप्ताह में ही लिखा गया, पर नाटक ने सदियों पुराने सत्य को दर्शकों के सामने रख दिया और बताया कि जीवन क्या है। अनुभवदराज बुजुर्ग और प्रेमपाश में बंधे युवक के संवाद के साथ नाटक शुरू होता है। युवक की बातों पर बुजुर्ग सवाल उठाता है और इसी तरह चाहतों को पूरा करने की जद्दोजहद में फंसे लोगों के दृश्य साकार होते हैं।

इंसान इतने डरे हुए क्यों हैं?...

चीजों से प्यार करते-करते, धीरे-धीरे चीज में तब्दील हो गया सलीकेदार आदमी, चारों दीवारें मैंने चुनी करके सुनी अनसुनी, जिन्हें खाने को दौड़ते हैं घर उन्हें नहीं पता असली घर का पता जैसे डायलॉग्स को संजीदगी से बयां करते हुए बताया गया कि भौतिकवाद से परे खुद की खोज ही जीवन है। नाटक के लेखक व निर्देशक गोपाल आचार्य बुजुर्ग व अनुराग सिंह राठौड़ मुख्य भूमिका में रहे।

तीन साल की रिसर्च से बना ‘गांधी गाथा’मध्यवर्ती शाम को महात्मा गांधी की जीवन गाथा का गवाह बना। तीन साल की रिसर्च के बाद तैयार नाटक ‘गांधी गाथा’ में 30 कलाकारों ने सौरभ अनंत के निर्देशन में बचपन से लेकर बापू के महानिर्वाण तक की यात्रा को किस्सागोई तरीके से गीत गाकर पेश किया। संगीत के साथ अभिनय ने दर्शकों का दिल जीत लिया।