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जयपुर में चार धाम के दर्शन एक ही जगह, आमेर रोड स्थित डूंगरी पर है अनोखा मंदिर

Char Dham Darshan : प्राचीन बद्रीनारायणजी मंदिर में भक्तों को चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, के साथ भगवान तुंगनाथ के दर्शन एक ही स्थान पर करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

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Badrinarayanji Temple

Badrinarayanji Temple

देवेंद्र सिंह

जयपुर. भगवान गोविंद की नगरी जयपुर में भगवान विष्णु व शिव को समर्पित सैंकड़ों मंदिर है जो हजारों लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए है। लेकिन आमेर रोड, डूंगरी पर एक ऐसा मंदिर है जो अपनी अनूठी परंपरा से अलग पहचान रखता है। यहां पर श्रद्धालुओं को चार धाम के दर्शन अब आपको उत्तराखंड की कठिन यात्राओं के बिना भी मिल सकते हैं। डूंगरी, आमेर रोड पर स्थित प्राचीन बद्रीनारायणजी मंदिर में भक्तों को चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, के साथ भगवान तुंगनाथ के दर्शन एक ही स्थान पर करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। यह मंदिर न केवल हजारों लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि राजस्थान की संस्कृति और परंपरा का अद्भुत प्रतीक भी बन चुका है।

मंदिर के महंत बचनदास विरक्त ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 1662 में विरक्त संत माधवदास जी ने की थी। प्रारंभ में यहां केवल बद्रीनारायण, केदार नाथ और तुंगनाथ ही विराजमान थे, लेकिन 2019 में पूर्ण हुए जीर्णोद्धार के बाद विशाल रूप दिया गया और यहां गंगोत्री और यमुनोत्री की प्रतिमाएं भी स्थापित की गईं। इसके बाद यह स्थल ..चार धाम मंदिर.. के रूप में पहचाना जाने लगा। मंदिर में लाल पत्थर का काम किया गया जिससे मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लग गए हैं।

यहां होते हैं भगवान तुंगनाथ के दर्शन

मंदिर के पुजारी जयपाल दास ब्रह्मचारी ने बताया कि इस मंदिर की एक और खास बात यह है कि यहां भगवान तुंगनाथ के दर्शन भी होते हैं, जो इसे राजस्थान का पहला तुंगनाथ स्थल बनाता है। शिव भक्तों के लिए यह स्थान और भी अधिक पावन बन जाता है। मंदिर परिसर में हनुमानजी, मां लक्ष्मी, मां गायत्री, संतोषी माता, शिवालय और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं।

समय बदला, पर आस्था आज भी अडिग

एक समय था जब इस मंदिर के पट केवल अक्षय तृतीया यानी आखातीज के दिन ही खुलते थे। उस दिन जोरावर सिंह गेट से आमेर रोड तक मेला लगता था और हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते थे। कालांतर में भक्तों की आस्था को देखते हुए मंदिर अब प्रतिदिन दर्शनार्थ खुला रहता है, लेकिन आखातीज के दिन आज भी विशेष आयोजन होते हैं और भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

12वीं पीढ़ी कर रही सेवा-पूजा

12वीं पीढ़ी कर रही सेवा मंदिर की देखरेख विरक्त माधवदास जी की 12वीं पीढ़ी के महंत बचनदास कर रहे हैं। आज मंदिर की सेवा और पूजा का कार्य पुरानी परंपरा के साथ हो रहा हैं, जो परंपरा की निरंतरता का जीवंत उदाहरण है। मंदिर परिसर में आज भी माधवदास की आठ खंभों वाली ऐतिहासिक विशाल छतरी है, जो परंपरा की गवाह है।