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माता-पिता के घर पर बेटे का हक नहीं, चाहें मकान बनाने में योगदान दिया होः कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका रद करते हुए कहा कि माता-पिता ने लंबे समय तक, जब तक बेटे से संबंध सौहार्दपूर्ण थे उसे घर में रहने दिया। इसका मतलब यह नहीं है कि वे जीवन भर उसका बोझ उठाते रहें।

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जयपुर

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balram singh

Nov 29, 2016

Delhi High Court

Delhi High Court

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि माता-पिता के घर पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। जब तक माता-पिता की बेटे पर दया होगी तब तक ही वह उस घर में रह सकता है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका रद करते हुए कहा कि माता-पिता ने लंबे समय तक, जब तक बेटे से संबंध सौहार्दपूर्ण थे उसे घर में रहने दिया। इसका मतलब यह नहीं है कि वे जीवन भर उसका बोझ उठाते रहें।

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ के समक्ष याची सचिन ने निचली अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने घर को लेकर उसके माता-पिता (राजदेवी-झब्बू लाल) के हक में फैसला सुनाया था।

आपको बता दें कि पिता झब्बू लाल ने निचली अदालत में याचिका दायर कर आग्रह किया था कि कोर्ट उनके दोनों बेटों व उनकी पत्नियों को उनका घर खाली करने का आदेश दे। उनके बेटों व बहुओं ने उनकी जिदंगी नरक बना दी है। पुलिस को शिकायत करने व 2007 तथा 2012 में खरीदी गई अपनी संपत्ति से दोनों बेटों को बेदखल करने के बाद भी वह घर में रह रहे हैं।

उधर, दोनों बेटों व बहुओं ने झब्बू लाल के सभी आरोपों को बेबुनियाद व झूठा करार दिया था। बेटों का दावा था कि वह घर के सह-मालिक है। उनका घर के निर्माण व खरीद में भी योगदान रहा है।

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