
Acharya Prashant
त्यौहार का मतलब होता है- 'आप राम की ओर वापस गए।' त्यौहार का मतलब होता है कि अंधेरे को रोशनी की सुध आ गई और अंधेरा जब रोशनी की तरफ मिटता है तभी उसके कदम बढ़ते हैं। दिवाली (Diwali) राम (Lord Ram) की कोई घर वापसी नहीं होती, आप की राम वापसी होती है। दिवाली क्या है ये जान लो फिर दिवाली अपने-आप सही तरीके से मनेगी, वर्ष भर रहेगी। रोशनी मतलब समझ रहे हो- 'समझ में नहीं आता था, उलझे हुए थे, अंधेरा था, कुछ दिखाई नहीं पड़ता था, लडख़ड़ा कर गिरते थे, उलझते थे; अब चीज साफ है, अब ठोकरें नहीं लग रही, अब चोट नहीं लग रही। वो आपको किसी एक दिन नहीं चाहिए, वो आपको लगातार चाहिए। या ऐसा है कि एक दिन चोट ना लगे और बाकी दिन लगती रहे? या ऐसा है कि रोशनी एक दिन रहे और बाकी दिन ना रहे?
अंधेरा, अंधेरे को पोषण देता है
अंधेरे के पास अंधेरे के तर्क होते हैं। रोशनी की तरफ बढऩे का कोई तर्क नहीं होता है। रोशनी की तरफ़ बढऩे का यही मतलब होता है कि अंधेरे की जो जंजीरें थीं, अंधेरे के जो तर्क थे, अंधेरे के जो एजेंट थे, जो दूत थे उनको कीमत देना छोड़ा। त्यौहार का मतलब ही यही है कि सत्य को जानो और सत्य कोई बाहरी बात नहीं है, आप जानते हैं सत्य को, त्यौहार का मतलब ही यही है कि सत्य को कीमत दी। इधर-उधर के प्रभावों से हमेशा दबे रहे थे, अब उन प्रभावों से बचे। अंधेरे की जंजीरों को, अंधेरे के षड्यंत्र को काट डाला। हो उल्टा जाता है। जितना ज्यादा आप दूसरों से वर्ष भर प्रभावित नहीं रहते, उतना आप त्यौहारों में हो जाते हैं। बच्चे पटाखे फोड़ रहे हैं और वो देख रहे हैं कि पड़ोसी ने कितने फोड़े। आप घर सजा रहे हैं, आप देख रहे हैं कि आपका घर पिछले वर्ष की तुलना में कैसा लग रहा है। खरीददारी हो रही है और खरीददारी हो ही इसीलिए रही है कि हर कोई और खरीद रहा है। बाजारें सजी हुई हैं, क्यों सजी हुई हैं? क्योंकि सबको खरीदना है। ये तो अंधेरा और सघन हो रहा है न? ये रोशनी थोड़े ही है।
रोशनी तो निजी होती है। अंधेरा सामूहिक होता है
त्यौहार कोई सामूहिकता की बात हो ही नहीं सकती। हां, प्रेम दूसरी बात है लेकिन प्रेम सामूहिक नहीं होता। समूह तब है जब आप अलग-अलग बने रहें लेकिन झुण्ड में नजर आएं। प्रेम तब है जब आप भले ही अलग-अलग हैं, नजर आते हैं अलग-अलग लेकिन अलगाव जैसा कुछ महसूस नहीं होता। समूह में करीबी दिखाई देती है, लगता है सब निकट है - 'देखा न, साथ मिल कर के त्यौहार मना रहे हैं।' लेकिन दिलों में दूरी तब भी बनी रहती है। प्रेम में साथ-साथ दिखाई भले ही ना दें लेकिन एक एकत्व आ चुका होता है।
त्यौहार को, पहली बात तो किसी दिन विशेष से ना जोड़ें, त्यौहार संकेत है आपके होने का। यह रोशनी, यह दिये, यह राम, यह रावण ये सब आपसे कुछ कहना चाहते हैं और जो ये आपसे कहना चाहते हैं, यह कोई एक दिन की बात नहीं है। वो जीवन की बात है- जीवन पूरा ऐसा हो कि अंधेरा हावी नहीं होने देंगे। जीवन पूरा ऐसा हो कि लगातार उतरोत्तर राम की ओर ही बढ़ते रहेंगे। अंधेरे की साजिशों में शुमार हो कर के कौन सी दिवाली मन जानी है? यह पिस्ते, यह मेवे, यह उपहार, यह अलंकार - ये थोड़े ही हैं दिवाली। जब मन रोशनी हुआ तब दिवाली जानना।
पटाखे नहीं फोडऩे होते, झूठ फोडऩा होता है। किसी को आप क्या उपहार दोगे सच्चाई के अलावा? किशमिश में थोड़े ही सच्चाई है। मीठा तो स्नेह होता है, तो इस दिवाली वो सब छोड़ ही दो जिसमें अप्रेम है। बजा दो बम, गूंज बहुत देर और दूर तक सुनाई देगी। यह जो चिटपिटियां छोड़ते रहते हैं इन्हें कोई बम कहते हैं? पांच सौ की लड़ी जलाई, लड़ी ऐसी जलाओ, जो जिंदगी भर जले।
वो पांच सौ और पांच हजार की नहीं हो सकती; फिर बजती ही रहे। जैसे सत्य अनंत है और ब्रह्म अनंत है वैसे ही 'बजना' अनंत है! वरना देखा है दिवाली के अगले दिन कैसा होता है? धुआं सा और सड़कों पर पटाखों के अवशेष पड़े हुए हैं, कागज के अधजले टुकड़े, हवा में बारूद की गंध है। ऐसा लगता है सुहागरात के बाद तुरंत कोई विधवा हो गया हो! और फिर चिड़चिड़ाहट और फिर सफाई घर की। बड़े शौक से सजाया था और इधर-उधर दीये रखे थे और जो दीये बुझ गए हैं और दीवारों पर कालिख के निशान छोड़ गए हैं। तेल गिर गया है और वो गंधा रहा है। अब कह तो किसी से सकते नहीं पर मन में उठ रहा है शोक, और खूब खा ली हैं पूरियां, गुजिया और मिठाइयां; गुडग़ुड़ा रहा है पेट।
यह दिवाली का अगला दिन है या नहीं? ये धोखा नहीं हुआ? ये कौन सा उत्सव था जो अपने पीछे मातम छोड़ गया है? धोखा हुआ कि नहीं? दिवाली अच्छी बीती या नहीं यह दिवाली के अगले दिन को तय करने दो, और अगले हफ्ते को और अगले महीने को और काल की पूरी श्रृंखला को क्योंकि यदि असली से तुम्हारा परिचय एक बार हो तो सदा के लिए हो जाता है, वो फिर छूटेगा नहीं। उत्सव के बाद आर्तनाद नहीं आ सकता। वास्तविक उत्सव अपने पीछे उत्सवों की एक अनंत श्रृंखला छोड़ कर जाएगा। उत्सव के बाद अनजानापन और अकेलापन नहीं आ सकता।
आचार्य प्रशान्त वेदांत
मर्मज्ञ, लेखक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी संस्थापक, प्रशान्त अद्वैत फाउंडेशन
Published on:
09 Nov 2023 04:16 pm
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