मानवेन्द्र सिंह ने 2018 में पचपदरा में स्वाभिमान की रैैली की और इसके बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। 2018 में कांग्रेस ने झालरापाटन से उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने चुनाव लड़ाया, लेकिन हार गए। 2019 में लोकसभा का टिकट दिया गया, लेकिन वे फिर हार गए। 2023 में मानवेन्द्र जैसलमेर से चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन उनको सिवाना से प्रत्याशी बनाया गया और हारे। इसके बाद उनके भाजपा में शामिल होने के चर्चे थे। शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंच पर उन्होंने भाजपा ज्वाइन की। मानवेन्द्र ने यहां अपने संबोधन में कहा कि घर वापसी हुई है। घर तो घर होता है। परिवार में आकर अच्छा लग रहा है। परिस्थितियां कुछ अलग रही, लेकिन अब सबके साथ रहूंगा।
मानवेन्द्र की ज्वॉइनिंग भाजपा के लिए राजपूत कार्ड है। यहां त्रिकोण के संघर्ष में निर्दलीय रविन्द्रसिंह भाटी के साथ राजपूत वोटर्स का झुकाव है। मानवेन्द्र की वापसी के बाद आंकलन लगाया जा रहा है कि इसका कितना असर होगा? मानवेंद्र सिंह जसोल की भाजपा में वापसी पर रविन्द्र सिंह भाटी ने कहा कि वो मेरे बड़े भाई हैं। उनका व्यक्तिगत फैसला है। पहले हमेशा हम उनके साथ रहे हैं। रविंद्र सिंह भाटी ने बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से भाजपा से टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ज्वाइन करने के बाद भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने बतौर निर्दलीय ताल ठोक दी और शानदार जीत दर्ज की।
लोकसभा चुनाव से पहले रविन्द्र सिंह भाटी की भाजपा में शामिल होने को लेकर कई बड़े नेताओं से बाचतीत हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद वे बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर गए। उन्होंने अपनी दावेदारी से मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट राजस्थान की सबसे हॉट सीट बन गई है। पूरे देश की इस सीट पर नजर है। बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री और मौजूदा सांसद कैलाश चौधरी भाजपा के प्रत्याशी हैं, जबकि आरएलपी छोड़कर कांग्रेस में आए उम्मेदाराम को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। यहां भाटी ने भाजपा और कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है।
इससे पहले लोकसभा चुनाव 2014 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था। उस दौरान वसुंधरा राजे से पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल को अपनी पुरानी अदावत के चलते टिकट नहीं मिला। भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया था। वहीं कांग्रेस ने हरीश चौधरी को टिकट दिया था, जबकि जसवंत सिंह ने टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर भाजपा से बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा। उस दौरान भी पूरे देश की निगाहें बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कर्नल सोनाराम ने जीत दर्ज की थी।