बताया जा रहा है कि बाबा रामदेव की कंपनी को क्लिनिकल ट्रायल के लिए इंदौर जिला कलक्टर ने अनुमति दे दी थी, लेकिन इस पर विवाद हो गया। कई संगठनों ने इसका विरोध किया, जिसके बाद इंदौर कलक्टर मनीष सिंह ने सफाई दी कि मेडिकल कॉलेज से प्राप्त आवेदन में दवा मरीजों को काढ़े की तरह देने की बात कही थी। अनुमति भी दवा बांटने की दी थी, ट्रायल की नहीं। वहीं मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. ज्योति बिंदल ने कहा है कि आवेदन में ड्रग कोरोना मरीज को देने और परिणाम टेस्ट करने की बात लिखी थी, इसलिए आवेदन प्रमुख सचिव को भेजा था। बाबा की कंपनी ने दावा किया है कि जयपुर में कुछ मरीजों पर इसे परखा गया है। गौरतलब है कि बाबा की कंपनी ने पिछले दिनों आयुर्वेदिक काढ़े को लेकर एडवाइजरी जारी होने के बाद दवा बनाने का दावा किया था। कंपनी ने अश्वगंधा से यह दवाई तैयार की है। गौरतलब है कि अश्वगंधा को हमेशा से ही सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। हालांकि ये कोरोना के इलाज में कितना कारगर है, जिस विषय में फिलहाल कोई अधिकारिक ट्रायल सामने नहीं आया है।