राज्य का मुख्य पर्यटन स्थल जैसलमेर अपने सोनार दुर्ग, गड़ीसर तालाब और सम के धोरों के लिए तो जाना जाता ही है, इस शहर के बीचो-बीच है पांच हवेलियों का समूह, जिन्हें पटवा हवेली कहते है। बताते हैै कि 1805 ईस्वी सन् में सेठ गुमानचंद पटवा ने अपने पांच बेटों के लिए आलीशान हवेलियां बनाने का निर्णय किया। उन्होंने वीरान रेगिस्तान में तब तीन बातों का ख्याल रखा। पहला 50 डिग्री तापमान की लू व अंगारे बरसाने वाली हवा को कैसे ठण्डा किया जाए ? लिहाजा उन्होंने यहां कलात्मक जालियां पूरी हवेलियों में इस कदर लगाई कि हवा भीतर आते ही गर्म मिजाज छोडकऱ शीतल होने लगे। वाटर हार्वेस्टिंग का ऐसा सिस्टम दिया कि पानी की बचत हो और यही पानी हवेली में बने निर्माण से हवाओं को भी ठण्डा रखे। हवेलियां एक दूसरे से ऐसे सटी हुई लगती है मानो एक दूजे को स्पर्श कर रही हों। झरोखे और कमरों में भी यही इंतजाम रहे।
अधिग्रहण किया गया
-1976 प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर अधिग्रहण
पटवा हवेलियों का समूह संरक्षित स्मारक घोषित
– 03हवेलियां व एक हवेली का 42 प्रतिशत भाग खरीदकर अधिग्रहण
-3013 संख्या हवेली आगे की ओर झुक गई, जिसका बाद में जीर्णोद्धार
-02 हवेलियां सैलानियों के लिए अभी खुली है
-01 का संचालन राजकीय संग्रहालय
-01 निजी फर्म कर रही संचालन
-08 लाख लोग देखने आते है
पुरातत्व विभाग के अधीनस्थ इन हवेलियों को देसी-विदेशी 8 लाख पर्यटक देखने आते है। करीब 10 सालों में हवेली की राजस्व आय पांच गुणा बढ़ी है। फोटोग्राफी के लिलए तो ये हवेलिया लाजवाब है।
2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने की थी यूं तारीफ
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पटवा हवेली की तारीफ करते हुए कहा था कि हो सकता है आप में से कुछ लोग जैसलमेर में पटवों की हवेली में गए होंगे। पांच हवेलियों के इस समूह को इस तरह बनाया गया था कि यह नेचुरल एयरकंडीशनिंग की तरह काम करता है। यह सारी आर्किटेक्चर न केवल लोंग सस्ट्रेनिंग होता था, बल्कि एनवारयमेंटली संस्ट्रेबल भी होता था। यानि पूरी दुनिया के पास भारत के आर्ट एंड कल्चर से बहुत कुछ जानने सीखने का अवसर हैै।
एक्सपर्ट व्यू
पटवों की हवेली में तीन संस्कृतियों हिन्दू, जैन व मुस्लिम की झलक दिखती है। तत्कालीन समय में हिन्दू शासक थे, जैन निर्माणकर्ता थे और कारीगर मुस्लिम थे। हवेली यानी हवादार घर। गर्मी में भी शीतलताण्ण् इसकी खास पहचान है। सात मंजिला हवेली में दो तल हैए जिन्हें स्थानीय भाषा में भंवरा कहा जाता है। हवेली के भीतर वाटर हार्वेस्टिंग का बेहतर प्रबंध है, क्योंकि तब पानी की काफी कमी थी। मुख्य द्वार जमीन से पांच फुट ऊंचाई पर बना है, ताकि आंधी के दिनों में रेत घर में घुस न सके। हवेली का कलात्मक सौन्दर्य इसको खास पहचान दिलाता है।
-विजय बल्लाणी, विशेषज्ञ कला-संस्कृति