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जैसलमेर

सरस्वती की खोज की यादगार फिजूलखर्ची का स्मारक बना! जिम्मेदारों को नहीं सुध लेने की फुर्सत

सरकारी तंत्र की बेपरवाही से जैसलमेर मुख्यालय से महज चार किलोमीटर की दूरी पर खुदवाया गया नलकूप और बनाया गया छोटा उद्यान पूरी तरह से उजाड़ हो गया है। इस कार्य पर खर्च की गई करीब पचास लाख रुपए की धनराशि बर्बाद नजर आ रही है और करोड़ों रुपए की जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर बाड़मेर मार्ग स्थित इस स्थल पर भारत सरकार की प्रमुख तेल-गैस खोज कम्पनी ओएनजीसी ने नलकूप का निर्माण वेदकालीन और अब लुप्त सरस्वती नदी की खोज की यादगार के तौर पर करवाया था।

जैसलमेरJul 27, 2019 / 11:51 am

Deepak Vyas

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सरस्वती की खोज की यादगार फिजूलखर्ची का स्मारक बना! जिम्मेदारों को नहीं सुध लेने की फुर्सत

जैसलमेर@चन्द्रशेखर व्यास.सरकारी तंत्र की बेपरवाही से जैसलमेर मुख्यालय से महज चार किलोमीटर की दूरी पर खुदवाया गया नलकूप और बनाया गया छोटा उद्यान पूरी तरह से उजाड़ हो गया है। इस कार्य पर खर्च की गई करीब पचास लाख रुपए की धनराशि बर्बाद नजर आ रही है और करोड़ों रुपए की जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर बाड़मेर मार्ग स्थित इस स्थल पर भारत सरकार की प्रमुख तेल-गैस खोज कम्पनी ओएनजीसी ने नलकूप का निर्माण वेदकालीन और अब लुप्त सरस्वती नदी की खोज की यादगार के तौर पर करवाया था। इसके बाद नलकूप स्थल को एक छोटे उद्यान के तौर पर विकसित किया गया। कार्य करवाने के बाद संबंधित सरकारी विभागों ने इसकी ओर झांकना भी मुनासिब नहीं समझा और समय की मार के चलते यहां लाखों रुपए का खर्च बेकार हो गया।
कलाम के आह्वान पर हुआ था कार्य
जानकारी के अनुसार ओएनजीसी ने जैसलमेर में अत्यंत गहरा नलकूप तकालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के आह्वान पर करवाया था। बताया जाता है कि ओएनजीसी के एक कार्यक्रम में शामिल हुए डॉ. कलाम ने कहा था कि वह चूंकि सीमावर्ती जैसलमेर-बाड़मेर में तेल व गैस की खोज के कार्य में जुटी हुई है तो उसे वहां के बाशिंदों की मदद के लिए पानी निकालने के लिए भी काम करना चाहिए।
रिकॉर्ड गहराई में हुई खुदाई
जानकारी के अनुसार वर्ष 2008-09 में ओएनजीसी ने बाड़मेर-जैसलमेर मार्ग पर एक खुले स्थान का चयन कर 650 मीटर तक रिकॉर्ड खुदाई कर नलकूप का निर्माण करवाया। जानकारी के अनुसार जैसलमेर जिले में नलकूप के लिए अमूमन हद से हद 150 मीटर तक की खुदाई ही करवाई जाती है। इतने गहरे नलकूप के पानी का विगत कई सालों से कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा और वह बंद ही पड़ा है। जबकि जानकारों के अनुसार इस पानी का इस्तेमाल गड़ीसर सरोवर में किया जा सकता है और पशुधन के लिए भी उपयोग में लिया जा सकता है। उनके अनुसार डाबला नलकूपों से आने वाले पानी में इसका मिश्रण कर आमजन के पीने में भी यह काम लाया जाना चाहिए।
पार्क अब हुआ उजाड़
नलकूप बनाने के बाद ओएनजीसी ने भारत सरकार के उपक्रम वापकोस जो वर्तमान में जल संसाधन नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है, के माध्यम से इस स्थान पर पार्क का निर्माण करवाया। 2009-10 में नलकूप के आसपास 5 बीघा जमीन पर दूब लगाने के साथ पैदल चलने वालों के लिए वॉक-वे बनाया गया। ऐसे ही यहां निर्माण नलकूप संधारण के लिए पम्प रूम और महिला-पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रसाधन कक्ष, चारदीवारी, द्वार तथा तारबंदी के कार्य करवाए गए। जिन पर आज से करीब 10 साल पहले 17.28 लाख रुपए का खर्च आया। जानकारी के अनुसार कुछ कार्य बीएडीपी के तहत भी यहां करवाए गए। समय की मार और जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते ये सभी कार्य अनुपयोगी साबित हुए।
यह है मौजूदा मंजर
सदर पुलिस थाना और जिला परिवहन कार्यालय के ठीक बीच में अवस्थित इस नलकूप स्थल का जायजा लेने जब पत्रिका टीम पहुंची तो निराशाजनक तस्वीर सामने आई। इस जमीन पर हरियाली का एक तिनका नहीं है। चारदीवारी के केवल अवशेष ही बचे हैं। मुख्य द्वार का पता तक नहीं चलता। वॉक-वे के भी केवल कुछ पत्थर ही नजर आते हैं, बाकी वह ओझल हो चुका है। प्रसाधन कक्ष किसी काम के नहीं रह गए। वहां किसी के रजाई-बिस्तर आदि सामान रखे हैं। जानकारी के अनुसार ओएनजीसी ने इस जगह को विकसित कर उसे जलदाय विभाग के सुपुर्द कर दिया। बताया जाता है कि 2013-14 में जब जैसलमेर शहर की जलापूर्ति व्यवस्था नगरपरिषद के हवाले की गई तो यह नलकूप और जमीन भी उसके हिस्से में आ गई।
फैक्ट फाइल –
– 10 साल पहले विकसित किया गया पार्क
– 50 लाख रुपए की राशि हुई खर्च
– 05 बीघा का है कुल क्षेत्रफल
– 04 किलोमीटर जैसलमेर शहर से दूर

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