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जैसलमेर

उदासीनता का शिकार नोख का ऐतिहासिक किला

जिले के अंतिम छोर पर स्थित उपतहसील मुख्यालय नोख का ऐतिहासिक किला सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है। वर्षों पूर्व रजवाड़ा के राज के समय बनाया गया किला आज भी ग्रामीणों के लिए बहुउपयोगी है। साथ ही इस किले में उपतहसील कार्यालय सहित कई सरकारी कार्यालयों का संचालन भी होता है।

जैसलमेरDec 05, 2019 / 05:43 pm

Deepak Vyas

victim of apathy Historical fort of Nokh,jaisalmer

उदासीनता का शिकार नोख का ऐतिहासिक किला

जैसलमेर/नोख. जिले के अंतिम छोर पर स्थित उपतहसील मुख्यालय नोख का ऐतिहासिक किला सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है। वर्षों पूर्व रजवाड़ा के राज के समय बनाया गया किला आज भी ग्रामीणों के लिए बहुउपयोगी है। साथ ही इस किले में उपतहसील कार्यालय सहित कई सरकारी कार्यालयों का संचालन भी होता है। हालांकि वर्षों पूर्व निर्मित इस किले की एक बार मरम्मत की गई थी, लेकिन करीब 10 वर्ष पूर्व की गई मरम्मत के बाद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जिससे यह किला जर्जर हालत का शिकार हो रहा है। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचाने जाने वाले इस किले को लेकर सरकार और प्रशासन उदासीन बने हुए है।
शासन व्यवस्था का संचालन
गांव में स्थित ऐतिहासिक किले में आजादी से पूर्व जहां राजा रजवाड़ों का शासन व्यवस्था का संचालन होता था। जबकि अब लोकतंत्र की स्थापना के बाद वर्तमान शासन व्यवस्था के चलते उपतहसील मुख्यालय के कार्यालय का संचालन होता है। किले में उपतहसील कार्यालय के अलावा डाक विभाग, संचार विभाग के कार्यालय भी स्थित है। इससे पूर्व इस किले में टीडी नियंत्रण विभाग का कार्यालय भी संचालित होता था। ऐसे में आगामी समय में तहसील कार्यालय के संचालन के लिए भी यह किला उपयोगी साबित होगा। किले में बने वर्षों पुराने भवन सरकारी कार्यालयों के संचालन के लिए उपयोगी साबित होंगे।
नोख वासियों की है शरणस्थली
वर्ष 1996 व 2000 में नोख क्षेत्र में आई बाढ़ के समय नोख गांव के निचले इलाकों में निवास करने वाले लोगों के लिए यह ऐतिहासिक किला शरणस्थली के रूप में उपयोग लिया गया। यहां गांव में निचली बस्तियों में पानी भर जाने के कारण सैंकड़ों ग्रामीणों को किले में लाकर ठहराया गया तथा पानी की निकासी तक उनके लिए प्रशासन की ओर से यहीं पर खाने पीने की व्यवस्था भी की गई।
अव्यवस्थित निर्माण, तो सौंदर्यकरण का प्रयास
इस ऐतिहासिक किले में आजादी के बाद से समय-समय पर सरकार की ओर से करवाए गए विभिन्न निर्माण कार्य अव्यवस्थित व कई अधूरे होने से इसके सौंदर्य की राह में रोड़ा बने हुए है। किले के अंदर बीचों-बीच बना एक अधूरा भवन है, जिसकी छत नहीं है, यह भवन आज भी अधूरा पड़ा है तथा इसकी चारदीवारें ही खड़ी है। साथ ही एक टांके का निर्माण, जो कि किले के मुख्य द्वार के सामने बीचों-बीच किया गया है। वह भी राह में रोड़ा बना हुआ है। इसके अलावा उपतहसील के भंडार भवन का निर्माण भी किले के परिसर में बीचोंबीच किया गया। जबकि किले के निर्माण के समय से बड़ी संख्या में छोटे व बड़े कमरे आज भी विद्यमान है। जिनका उपयोग नहीं किया जाकर इस तरह भवनों का निर्माण किले के सौंदर्यकरण में बाधक बना हुआ है। इसके अलावा किले के अंदर रहने वाले कर्मचारियों की ओर से यहां लगाए गए पेड़ पौधे सौंदर्य में चार चांद लगा रहे हैं। आज से करीब एक दशक पूर्व जिले के तत्कालीन जिला कलक्टर केके पाठक किले के अवलोकन के समय किले के मरम्मत के लिए पांच लाख रुपए की राशि आवंटित की थी। जिससे किले के मुख्य द्वार आगे के भाग की मरम्मत की गई थी, लेकिन उसके बाद किले की ओर ना तो प्रशासन और ना ही सरकार ने कोई ध्यान दिया। जिससे ऐतिहासिक किला दिन-ब-दिन जर्जर होता जा रहा है।

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