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जालोर

आउटडोर से डॉक्टर नदारद, मरीजों ने मचाया हंगामा

पीएमओ से भी मिले पर कोई नतीजा नहीं निकला

जालोरMay 19, 2018 / 10:26 am

Dharmendra Kumar Ramawat

Patients make turbulence

No doctor in outdoor, Patients make turbulence

जालोर. जिला अस्पताल में चिकित्सकों की गैर मौजूदगी से मरीज आए दिन परेशानी झेल रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार मानों मूकदर्शक बने हुए हैं।घंटों तक आउटडोर से गायब रहने से मरीज इधर-उधर भटक कर निराश लौटने को मजबूर होते हैं।
शुक्रवार को भी यहां यही स्थिति रही।आउटडोर में अस्थिरोग विशेषज्ञ नदारद थे।कक्ष खुला दिखा व नर्सिंगकर्मी जरूर बैठे।इससे मरीजों को उम्मीद थी कि डॉक्टर जल्द ही आएंगे, लेकिन ग्यारह बजे तक भी उनके दर्शन नहीं हुए।ऐसे में आक्रोशित मरीजों ने हंगामा मचा दिया।नर्सिंगकर्मियों ने प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास भेज, लेकिन वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।ऐसे में मरीज निराश होकर लौट आए। डॉक्टर के आने की उम्मीद में मरीजों ने आउटडोर समय पूरा होने तक वहीं जमे रहने का निर्णय किया। करीब साढ़े ग्यारह बजे अस्थिरोग विशेषज्ञ पहुंचे, लेकिन कुर्सीपर बैठने से पहले लोगों का आक्रोश झेलना पड़ा।डॉ.विकास मीणा ने बताया कि उनके पास दूसरे विभाग का चार्ज भी है इसलिए उपचार कक्ष से बाहर जाना पड़ता है। एक ही चार्ज रखा जाए तो वे पूरे समय मरीजों को सेवा दे सकते हैं।इस सम्बंध में जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉ.एसपी शर्मा से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
मरीज बोले:आखिर हम कहां जाएं
डॉक्टर के इंतजार में बैठे एक मरीज ने बताया कि घुटनों में दर्द होने से चलना मुश्किल हो रहा है।उपचार के लए यहां आया था, लेकिन डॉक्टर ही नहीं मिला।अब इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं।अन्य दो-तीन मरीजों ने भी यही बताया।उनका कहना था कि अस्पताल में डॉक्टर कक्ष खुला होने के बावजूद समय पर उपचार नहीं मिल रहा है। ऐसे में कहां जाए।
व्यवस्थाओं में खामियों से लडऩे की विवशता
सरकारी अस्पताल में दवाइयां, जांच आदि निशुल्क होने से अस्थिरोग की जांच करवाने मरीज आते हैं, लेकिन समय पर उपचार ही नहीं मिल रहा। अस्पताल में डॉक्टर कक्ष खुला रहने एवं नर्सिंगकर्मियों को देखकर लोगों को उनके आने की उम्मीद भी बनी रहती है। इससे अस्थिरोगों से जूझ रहे एवं चलने-फिरने से लाचार मरीज भी बरामदे में बैठकर उनका इंतजार करने को विवश होते हैं, लेकिन घंटों तक बैठना भी भारी पड़ता है। निजी अस्पतालों में जाने से जेब पर भार बढ़ जाता है सो अलग।लिहाजा आर्थिक रूप से कमजोर लोग अस्पताल की व्यवस्थाओं में खामियों से लडऩे को विवश होते हैं।
प्रयास कर रहे हैं…
अस्थिरोग विशेषज्ञ अस्पताल में ड्यूटी पर थे, आउटडोर समय में वे कहां थे यह पता नहीं। मरीजों को सेवा देने के पूरे प्रयास कर रहे हंै।
-डॉ.रमेश चौहान, डिप्टी कंट्रोलर, जिला अस्पताल, जालोर

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