रणमल अपने पिता राव चूण्डा की मृत्यु के बाद मेवाड़ में रह रहे थे। रणमल ने सन 1427 में मंडोर के तत्कालीन शासक सत्ता और उसके पुत्रों को मार कर मण्डोर पर अधिकार किया। मेवाड़ में रणमल के भांजे राणा मोकल की हत्या के बाद रणमल ने भांजे के हत्यारों को मारकर राणा कुंभा को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया। राणा कुंभा उस समय व्यस्क नहीं हुए थे, इसलिए रणमल मेवाड़ में रह कर शासन प्रबन्ध करने लगे। एक रात्रि रणमल खाट पर सो रहे थे, तो मेवाड़ के शस्त्रधारी योद्धाओं ने उन्हें खाट से बांध कर उन पर आक्रमण किया। रणमल चारपाई सहित उठे और मुकाबला करने लगे और अन्तत: मृत्यु को प्राप्त हुए।
आंवल-बांवल सीमा समझौता
ऐसा कहा जाता है कि जिस समय मेवाड़ी सरदार रणमल को मार रहे थे, तब उनके पुत्र जोधा दूर के स्थान पर सो रहे थे। एक नगारची ने चतुराई दिखाई और अपनी शहनाई बजाकर जोधा को कूट संकेत दिया, जोधा भाज सके तो भाज, थारो रिड़मल मारियो जाय। यह संगीतमय संकेत राजकुमार जोधा ने समझ लिया और लगभग 700 राठौड़ों सहित जगह-जगह लड़ाई करते हुए मारवाड़ पहुंचने में सफल हो गए। सन 1454 में जोधा ने अक्का को मारकर मण्डोर पर अधिकार किया। मेवाड़ से कुंभा ने सेना भेजी। लम्बी लड़ाई चली, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका। ये वो समय था, जब एक रोचक तरीके से हुए समझौते से मेवाड़ और मारवाड़ की सीमाएं तय की गई। इसे आंवल-बांवल सीमा के नाम से जाना गया। यानी जहां तक बबूल या बांवल की झाड़ियां और पेड़ थे, वहां तक मारवाड़ की सीमा तथा जहां तक आंवल के पेड़ थे, वहां मेवाड़ की सीमा निर्धारित हुई। राव जोधा ने मण्डोर से लगभग 12 किलोमीटर दूर दक्षिण में चिड़ियानाथ की टूंक नामक पहाड़ी पर 12 मई 1459 से एक किला बनवाना शुरू किया। 1460 में इस नए दुर्ग में मण्डोर से लाकर चामुण्डा देवी की मूर्ति स्थापित की गई। तब से लेकर आज तक हर साल 12 मई को जोधपुर स्थापना दिवस मनाया जाता है। कुछ लोग भारतीय कैलेण्डर के हिसाब से निर्जला एकादशी को ये दिवस मनाते हैं।