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अनोखी मान्यता— देश की खुशहाली के लिए राजस्थान के इस शहर में आधी रात नाचते हुए श्मशान जाती हैं महिलाएं…

अनोखी मान्यता— देश की खुशहाली के लिए राजस्थान के इस शहर में आधी रात नाचते हुए श्मशान जाती हैं महिलाएं...

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Women of Kumhar Caste Worship in Hindu Cemetery

Women of Kumhar Caste Worship in Hindu Cemetery

जोधपुर। घने अंधेरे में लिपटी रात... चिताओं से घिरा श्मशान परिसर... और हाथों में नंगी तलवारों सहित नाचती गाती औरतें... सोच कर ही रुह कांप उठती है। इस नजारे को देखने वाले किसी भी शख्स की हालत नाजुक हो सकती है, क्योंकि ये औरतें आधी रात को चंग की थाप पर नाचती हैं। हाथों में नंगी तलवारें होती हैं और मुंह से गूंजता है आई देवी चंडिका-माथे मोटी हंडिका...

जहां लोग दिन के समय और दाह संस्कार के समय भी श्मशान जाने से बचते हैं, ये औरतें साहस के साथ आधी रात में श्मशान पहुंचती हैं। ये सब कुछ किसी बॉलीवुड हॉरर फिल्म की कहानी नहीं है, बल्कि राजस्थान के जोधपुर जिले में होने वाली सच्ची घटना है। ये नजारा वैसे तो लगभग हर साल दिखाई देता है, लेकिन इस बार पांच साल बाद दिखाई दिया। जोधपुर की कुम्हार समाज की औरतें एक अनुष्ठान के लिए श्मशान पहुंची थी। आइए आपको बताते हैं इस प्रथा के बारे में जुड़ी बातें...

जोधपुर के भीतरी शहर में कुम्हारिया कुंआ मोहल्ले में नौ मार्च 2018 की आधी रात को खासी हलचल थी। मोहल्ले में स्थित कुम्भेश्वर गणेश मंदिर के बाहर काफी महिलाएं खड़ी थीं। इनके साथ कुछ आदमी भी दिखाई दे रहे थे। इन महिलाओं में ज्यादातर अधेड़ और बुजुर्ग शामिल थीं। सभी महिलाएं एक आधे मटके के चारों तरफ खड़ी थीं। इस मटके में एक दीपक जल रहा था। पास में एक बोतल और दूसरी चीजें रखी थीं। इसी दौरान आदमियों ने चंग पर थाप देना शुरू किया और ये औरतें नाचने लगीं। महिलाओं के हाथों में नंगी तलवारें थीं। काफी देर नाचने के बाद कुम्हार समाज की महिलाओं का जत्था इन युवकों के साथ श्मशान की ओर एक विशेष अनुष्ठान के लिए निकल पड़े।

सबसे बुजुर्ग महिला के सिर मटका
इस दल की सबसे बुजुर्ग महिला चुकिया देवी के सिर पर दीपक जला आधा मटका था। एक हाथ में नंगी तलवार थी। जोधपुर शहर में उस समय गहरा सन्नाटा पसरा था। अंधेरे में डूबी गलियां और हवा के दीवार से टकराने पर सांय सांय की आवाज... इससे कोई ना डरे तो महिलाओं के शब्द आपको अंदर तक डरा दें। औरतों की ये टोली श्मशान तक गाती हुई चलती हैं—खेम कुसल-हाथ में मूसल, आई देवी चंडिका-माथे मोटी हंडिका।

श्मशान पहुंचने पर बढ़ जाता है जोश
सारे लोग गाते हुए सिवांची गेट श्मशान की ओर निकलते हैं। बीच-बीच में होली के फाग भी गाए जाते हैं। श्मशान के नजदीक पहुंचते ही इनका जोश भी बढ़ता जाता है। अंधेरा बढ़ने के साथ ही माहौल में दहशत भी बढ़तर ही जाती है। श्मशान पहुंचने पर विश्राम घाट के पास ये लोग रुके। आपको बता दें कि अंतिम संस्कार के लिए लाई जाने वाली देह को यहां थोड़ी देर के लिए रखा जाता है। ये दल मटके को वहीं रख देता है, जहां पार्थिव देह को रखा जाता है। महिलाएं नंगी तलवारों संग फिर नाचने लगती हैं। इसके बाद महिलाएं श्मशान पहुंचती हैं और एक चिता जलाने के चबूतरे पर पहुंच अनुष्ठान शुरू किया जाता है। युवकों को बाहर छोड़ दिया जाता है। अनुष्ठान शुरू होते ही दल की सबसे बुजुर्ग महिला जिसने मटका सिर पर रखा था, अपने कपड़े उतार देती है और पूजा शुरू होती है। अंत में चिता के चबूतरे पर माली पन्ना चिपका दिया जाता है। माता और भैरव की स्थापना की जाती है। फिर इनकी पूजा होती है। उन्हें शराब, दूध, मिठाई और प्रसाद चढ़ाया जाता है।

पांच साल बाद आयोजन
कुम्हार समाज इस अनुष्ठान को अंधविश्वास नहीं मानता। उनके मुताबिक वे अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन कर रहे हैं। इससे किसी का नुकसान नहीं हो रहा है। उनका कहना है कि ऐसा करके देश की खुशहाली की कामना भी कर रहे हैं। उनके अनुसार समाज के कुछ बच्चों की अकाल मौत के बाद ये परंपरा शुरू हुई।