दरअसल करौली के राज्य पशु मेले से पहले हिण्डौन में दिसम्बर माह में पशु मेला लगता था। जिसका आयोजन नगर परिषद की ओर से किया जाता। बुजर्गों के अनुसार शहर का पशुमेला करीब 8 दशक पुराना है। जिसमें दिसम्बर से पहले प्रदेश के दूसरे जिलों में लगने वाले मेलों से भी पशु व्यापारी आते थे। जो यहां से ऊंट व बछड़ा आदि लेकर आगाम मेले में शामिल होते। वर्ष 2018 के बाद नगर परिषद से स्वयं की ओर से मेले का आयोजन बंद कर दिया। इसके बावजूद पीढिय़ों से आ रहे पशुपालकों के आने का क्रम बना हुआ है। करीब 40 वर्ष से हिण्डौन के पशु मेले में आ रहे लालसोट निवासी ऊंट पालक रास्वरूप भांड ने बताया कि आधिकारिक तौर पर चाहे मेला नहीं लगा, लेकिन पशु पालक खूब जुटे। 15 दिसम्बर से पशु डेरा डाल कर रहे रहे व्यापारियों की करीब 400 ऊंटों का खरीद-बेचान किया। परम्परा के अनुसार 25 दिसम्बर से व्यापारियों की वापसी शुरू होने से अब 5-7 डेरा ही बचे है। ऐसे में स्थानीय ऊंट पालक खरीदारी को आ रहे हैं। रावण की रुंडी के बाहर करौली मार्ग पर पशुपालकों की आवाक के कारण करौली के व्यापारियों ने लाठी आदि की दुकानें भी लगाई हुई हैं।
लालसोट निवासी ऊंट व्यापारी सुरेश भांड व गिर्राज ने बताया कि नगर परिसर की ओर से मेला बंद होने से मेला स्थल पर ठहरना परेशानी भरा रहा। ऊंटों को पानी पिलाने के लिए सडक़ मार्ग पर पास नलकूपों पर जाना पड़ा। डेरा में रहे परिवार को अंधेरा और अन्य असुविधाओं के बीच रखना पड़ा।
घाटा होने लगा तो किया बंद
नगर परिषद सूत्रों अनुसार पशु मेला घाटा होने की वजह से बंद किया गया। तत्कालीन सभापति अरविंद जैन ने बताया कि उनके कार्यकाल में पशु मेला बंद करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि पूर्व में पशुमेला आयोजन के ठेका की बोली 3 से 4 लाख रुपए की होती थी। जो वर्ष 2018 में गिर कर महज 90 हजार रुपए रह गई थी। जबकि मेला आयोजन में नगर परिषद का 8-10 लाख रुपए खर्च होता था।
इनका कहना है-
पशु मेले का आयोजन 5 वर्ष से बंद है। मेला स्थल पर मुख्यमंत्री जनआवास योजना के फ्लैट्स बने रहे हैं। पशु व्यापारियों की ज्यादा संख्या में आवक है तो नगर परिषद की आगामी बोर्ड बैठक में नए स्थान चयन और मेला आयोजन को प्रस्ताव रखा जाएगा।
नगर परिषद, हिण्डौनसिटी