डेढ़ साल से कमरे में धूल खा रही लाखों की ब्लड सेपरेशन मशीन
-डिग्रीधारी तकनीशियन नहीं होने से अटकी लायसेंस प्रक्रिया-सालभर प्रशिक्षण दिलाया तकनीशियन को, ड्रग कंट्रोलर विभाग ने किया मना-मशीन शुरू होने से होगी सुविधा, एक यूनिट ब्लड से तीन मरीजों को होगा फायदा
-डिग्रीधारी तकनीशियन नहीं होने से अटकी लायसेंस प्रक्रिया-सालभर प्रशिक्षण दिलाया तकनीशियन को, ड्रग कंट्रोलर विभाग ने किया मना-मशीन शुरू होने से होगी सुविधा, एक यूनिट ब्लड से तीन मरीजों को होगा फायदा
खंडवा.
जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में पिछले डेढ़ साल से लाखों रुपए की ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन मशीन धूल खा रही है। ब्लड बैंक में डिग्रीधारी तकनीशियन नहीं होने से भोपाल में इसकी लायसेंस प्रक्रिया अटकी हुई है। एक तकनीशियन को प्रशिक्षण भी दिलाया गया, लेकिन ड्रग कंट्रोलर विभाग द्वारा नियमों का हवाला देते हुए लायसेंस देने से मना कर दिया गया। ब्लड बैंक में ब्लड की कमी से मरीजों के परिजन अकसर परेशान होते है। ब्लड सेपरेशन मशीन शुरू होने से एक यूनिट से तीन मरीजों को फायदा हो सकता है।
करीब डेढ़ साल पहले जिला अस्पताल के ब्लड बैंक को ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन मशीन मिलने से उम्मीद जागी थी कि अब ब्लड के लिए मरीजों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। ब्लड कंपोनेंट यूनिट के हिसाब से ब्लड बैंक में तैयारी भी शुरू कर दी थी। ब्लड बैंक के तकनीशियन सुनील खेते मशीन ऑपरेट करने के लिए इंदौर में एक साल का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर आए। इसके बाद लायसेंस के लिए जब भोपाल ड्रग कंट्रोलर विभाग में प्रक्रिया आरंभ की गई तो पता चला कि इसके लिए बीएमएलटी (बैचलर ऑफ मेडिकल लैबोट्री टैक्नीशियन) का होना आवश्यक है। जबकि ब्लड बैंक और जिला अस्पताल की लैब में सारे पुराने तकनीशियन बीएमएलटी नहीं है। जिसके चलते सालभर से मशीन एक कमरे में बॉक्स में पैक कर रखी हुई है।
कई मरीजों को केवल जरूरी तत्वों की जरूरत होती है
जिला अस्पताल में सिकलसेल, मलेरिया, आग से जलने आदि के पीडि़तों के मामले भारी संख्या में आते हैं। इन पीडि़तों को ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, लेकिन कई मरीज ऐसे भी होते ही जिन्हें केवल जरूरी तत्व चढ़ाने की ही जरूरत होती है। जिला अस्पताल में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट के न होने से पूरा ब्लड चढ़ाना पड़ता है। अगर जिला अस्पताल में ब्लड बैंक में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट तैयार हो जए तो इससे 3 से 4 मरीजों को फायदा हो सकता है और जिस मरीज को जिस तत्व की जरूरत है, उसे वही मिल पाएगा। गौरतलब है कि सेपरेशन यूनिट से ब्लड से चार अलग-अलग तत्व निकालने का काम किया जा सकेगा।
क्या है कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट
ब्लड में 4 कंपोनेंट होते हैं। इनमें रेड ब्लड सेल (आरबीसी), प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और अन्य तत्व शामिल हैं। सेपरेशन यूनिट में ब्लड को घुमाया (मथा) जाता है। इससे ब्लड परत दर परत (लेयर बाई लेयर) हो जाता है और आरबीसी, प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और क्रायोप्रेसीपिटेट अलग-अलग हो जाते हैं। जरूरत के मुताबिक इनको निकाल लिया जाता है। निकले गए रक्त के प्रत्येक तत्व की अलग-अलग जीवन अवधि होती है। एक यूनिट 3 से 4 लोगों की जरूरत पूरी कर सकते हैं।
मेडिकल कॉलेज करेगा भर्ती
हमारे पास नियमानुसार ट्रेंड तकनीशियन नहीं होने से लायसेंस नहीं मिल पाया है। हमने एक तकनीशियन को प्रशिक्षण भी दिलवाया, लेकिन भोपाल से लायसेंस देने से मना कर दिया गया। अब मेडिकल कॉलेज को कहा है कि वे पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती में लैब के लिए बीएमएलटी तकनीशियन की भर्ती करें। जब डिग्रीधारी तकनीशियन की भर्ती होगी, तभी कंपोनेंट मशीन शुरू कर पाएंगे।
डॉ. अतुल माने, ब्लड बैंक प्रभारी
Home / Khandwa / डेढ़ साल से कमरे में धूल खा रही लाखों की ब्लड सेपरेशन मशीन