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कोलकाता

भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगाना अब आसान

पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगा कर उसे दूर करने के लिए एक सेंसर का निर्माण किया है।

कोलकाताMay 23, 2018 / 08:38 pm

Prabhat Kumar Gupta

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भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगाना अब आसान

– पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिक ने बनाई आर्सेनिक टेस्टिंग मशीन

कोलकाता.

पश्चिम बंगाल समेत देश के कई राज्यों में लोग पेयजल में आर्सेनिक की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। जिससे कई बीमारियां भी फैल रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगा कर उसे दूर करने के लिए एक सेंसर का निर्माण किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस सेंसर के जरिए भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईईएसआर) के वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक सेंसर एंड रिमूवल किट तैयार किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी मदद से किफायदी दरों पर और आसान तरीकों से पानी में आर्सेनिक का स्तर का पता लगाया जा सकता है।
पानी में आर्सेनिक का पता लगाने वाले मौजूदा उपकरण बहुत महंगे और जटिल हैं, जिसके चलते साधारण लोग खासकर ग्रमीण घर के पानी में आर्सेनिक के स्तर का पता नहीं लगा पाते हैं। फिलहाल बाजार में उपलब्ध टेस्टिंग किटों की कीमत छह से आठ हजार रुपए के बीच है।
सेंसर किट की विशेषता
सेंसर किट को बनाने वाली टीम के प्रमुख आईआईईएसआर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और रामानुजन नेशनल फेलो राजा शनमुगम ने बताया कि नई आर्सेनिक सेंसर किट में 50 पेपर स्ट्रिप की कीमत महज 250 रुपए और कार्टिज की कीमत 500 रुपए है। स्ट्रिप से आर्सेनिक का पता चल पाएगा और कार्टिज के जरिए ही उसे दूर किया जा सकेगा। सूत्रों ने बताया कि पानी में मौजूद आर्सेनिक की मात्रा और पानी की खपत के आधार पर एक परिवार के लिए सालभर में दो से तीन कार्टिज की जरूरत पड़ सकती है।
आईआईईएसआर के एक प्रोफेसर ने बताया कि स्ट्रिप से आर्सेनिक का पता चलेगा और कार्टिज के जरिए ही उसे दूर किया जा सकेगा। वहीं आईआईईएसआर के निदेशक सौरभ पाल का कहना है कि यह सेंसर एक लीटर पानी से 0.02 मिलीग्राम आर्सेनिक हटाने में भी सक्षम है।
क्या है आर्सेनिक सीमा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भूमिगत पानी में आर्सेनिक की तकरीबन सीमा 0.01 मिलीग्राम तक है, लेकिन भारत में डीप ट्यूबवेलों के जरिए भारी मात्रा में भूमिगत पानी की खपत की वजह से यह सीमा 0.05 मिलीग्राम है। पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने से शरीर पर लाल दाने और चकत्ता बन जाता हैं जो धीरे-धीरे बढ़ता रहता है। इसके साथ त्वचा कैंसर, डायरिया, पेट संबंधी बीमारियों की समस्या भी तेजी से शरीर के अंदर बढऩे लगती है।
कैसे काम करेगी किट
सेंसर किट से पानी में आर्सेनिक का पता लगाने के लिए फ्लूरो-पालीमर लगा एक फिल्टर पेपर होता है। जिसे एक लीटर पानी में डुबोने पर मामूली आर्सेनिक होने की स्थिति में भी स्ट्रिप का रंग बदल कर गुलाबी हो जाता है। आर्सेनिक होने की पुष्टि पर उस पानी को एक कार्टिज से निकाल कर आर्सेनिक-मुक्त किया जा सकता है।

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